भगवान की मूर्ति तो जड है, फिर भी उसकी पूजा का उपदेश क्यो दिया जाता है ❓
हे आत्मन् , अभी तू जड़-चेतन को समझ ही कहा पाया है ? तेरे स्त्री-पुत्रादि भी तो जड़ है, फिर उनसे राग क्यों करता है ? आत्मा स्त्री-पुत्रादि रूप नहीं है , तू उनके आत्मा को तो जानता नहीं है , केवल शरीर में ही तू स्त्री-पुत्रादिपना मान बैठा है । यह शरीर तो जड़ है, फिर भी तू उससे राग करके पाप बांधता है; तब कहना होगा कि तुझे देव-गुरु की पहचान ही नहीं है ।
इसी प्रकार जिनेन्द्र देव की प्रतिमा जड़ होते हुए भी पूजा का उपदेश दिए जाते है क्योंकि उन् प्रतिमाओं में साक्षात् जिनेन्द्र भगवान के अभाव में प्रतिमाजी में उनकी स्थापना की जाती है । जिनेन्द्रदेव के अनुसार उनकी मूर्ति में जिनेन्द्रदेव का आरोप करना स्थापना है । जिनदेव की प्रतिमा में जिनदेव की ही स्थापना होती है ; इसलिए उस प्रतिमा की पूजा का उपदेश दिया जाता है ।
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ASHOK SHAH & EKTA SHAHहे आत्मन् , अभी तू जड़-चेतन को समझ ही कहा पाया है ? तेरे स्त्री-पुत्रादि भी तो जड़ है, फिर उनसे राग क्यों करता है ? आत्मा स्त्री-पुत्रादि रूप नहीं है , तू उनके आत्मा को तो जानता नहीं है , केवल शरीर में ही तू स्त्री-पुत्रादिपना मान बैठा है । यह शरीर तो जड़ है, फिर भी तू उससे राग करके पाप बांधता है; तब कहना होगा कि तुझे देव-गुरु की पहचान ही नहीं है ।
इसी प्रकार जिनेन्द्र देव की प्रतिमा जड़ होते हुए भी पूजा का उपदेश दिए जाते है क्योंकि उन् प्रतिमाओं में साक्षात् जिनेन्द्र भगवान के अभाव में प्रतिमाजी में उनकी स्थापना की जाती है । जिनेन्द्रदेव के अनुसार उनकी मूर्ति में जिनेन्द्रदेव का आरोप करना स्थापना है । जिनदेव की प्रतिमा में जिनदेव की ही स्थापना होती है ; इसलिए उस प्रतिमा की पूजा का उपदेश दिया जाता है ।
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