आरती शब्द की व्युत्पत्ति " अर्ति " शब्द से हुई। त्रिषष्ठी श्लाका पुरूष चरित्र में कलिकाल सर्वज्ञानुसार अर्ति याने दुख। दुख व कर्मों को उतारने ( क्षय करने) की प्रक्रिया आरती कहलाती है।
दूसरा अर्थ :— आरात्रिक ( उपर से) , आ = मर्यादा ( आरंभ) , रात = रात की, ईक = होने वाली। अर्थात् संध्याकाल में ( रात के प्रारंभ) की जाने वाली आरती कहलाती ।अपभ्रंश में आरात्रिक का आरतिय रूप बनता है।
आरती का आकार जागृति का प्रेरक है। यह हमें हमारी आत्मा पर छाये मोहनीय कर्म के बादलों के आवरण को छिन्न - भिन्न करने के भावों को मन में जाग्रत करने की प्रेरणा देता है।
आरती में पांच दीपक :—
१. दीपक ज्ञान का प्रतीक रूप है। अतः प्रतिकात्मक रूप से मति, श्रुत, आदि पांच ज्ञान की अपेक्षा से पांच दीपक होते हैं। जिस प्रकार एक द्रव्य दीपक चारों ओर फैले अंधकार को नष्ट कर प्रकाश फैलाता है उसी प्रकार से सम्यक् ज्ञान अंतर के अज्ञान का नाश करके केवलज्ञान का भाव दीप प्रज्वलित करता है।
२. पांच का अंक मांगलिक है और ज्ञान को नंदी सूत्र में मांगलिक कहा है। इस अपेक्षा से अारति में पांच दीपक होते हैं।
दीपक के स्टैण्ड का आकार सर्पनुमा क्यों ���
शास्त्रों में मोह को सर्प से उपमित किया है। मोहनीय कर्म सर्प के समान घातक होता है। अतः सर्वप्रथम आत्मघातक मोहनीय कर्म का क्षय करना है यह बात प्रतिपल स्मरण रहे इस हेतु से दीपक के स्टैण्ड का आकार सर्पनुमा है।
कर्पूर प्रज्वलित करने का कारण
दीपक के आसपास रहे छोटे - छोटे जीव - जन्तु कर्पूर की सुगंध से दूर भाग जाते हैं। अतः इन जीवों की विराधना से बचने के उद्देश्य से कर्पूर प्रज्वलित करते है।
आरती में दीपक प्रज्वलित करने का प्रयोजन
जैसे दीपक प्रज्वलित होने के पश्चात शांत हो जाता है वैसे ही मेरे अंतर मन - मानस में धधकती कषाय रूपी अग्नि शांत हो जाए।
दृष्टि दोष निवारण हेतु आरती की जाती है।
आरती उतारते समय हमें
१. कपाल पर तिलक अवश्य होना चाहिए।
२. सिर ढका अर्थात् पुरूष वर्ग को सिर पर टोपी, पगड़ी आदि धारण करनी चाहिए और स्त्री वर्ग का सिर भी दुपट्टे अथवा साडी के पल्लु से ढका होना चाहिए।
३. कंधे पर खेस ( उतरासंग) धारण करना चाहिए।
इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
मंगल दीपक को थाली में रखने के पश्चात आरती को थाली से बाहर निकालना चाहिए।
आरती और मंगल दीपक घी, और कर्पूर के करने चाहिए। लौकिक कथन है कि कर्पूर का दीपक करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है और कुल का उद्घार होता है।
આરતી- મંગળદીવો ....ડાબી બાજુએ થી ઉંચે લઇ જઈ જમણી બાજુએ ઉતારવો તથા મસ્તક ની ઉપર કે નાભિથી નીચે ન જવો જોઈએ.
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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