आनंद श्रावक
एक बार उस शहर में भगवान महावीर स्वामी पधारे | आनंद भी उनके प्रवचन को सुनने पहुंचा | भगवान के प्रवचन को सुनकर उसने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया | चौदह वर्ष तक श्रावक धर्म का पालन करने के पश्चात उसने सारे सांसारिक कार्यों से विरक्त होने का निश्चय किया | उसने अपने पुत्रों को अपने व्यापार तथा परिवार की ज़िम्मेदारी देकर कहा की अब उसके धर्मध्यान में किसी तरह का व्यवधान न डाला जाए | इस प्रकार वो अपना शेष जीवन धर्मध्यान में व्यतीत करने लगा| धर्म का आचरण करते हुए उसे अवधिज्ञान की प्राप्ति हो गई|
कुछ समय पश्चात् वहां पर भगवान महावीर का पुन: पधारना हुआ| जब उनके शिष्य गौतम स्वामी गोचरी के लिए शहर में घूम रहे थे तब उन्होंने आनंद के गिरते हुए स्वास्थ्य तथा उसके अवधिज्ञान के बारे में सुना तो उससे मिलने का निश्चय किया|
गौतम स्वामी को अपने घर आया देख आनंद बड़ा प्रसन्न हुआ तथा अपने बिस्तर पर लेटे लेटे उनको वंदन किया| जब दोनों में चर्चा होने लगी तब आनंद ने अपने अवधिज्ञान के बारे में गौतम स्वामी को बताया तथा कहा की वो बारहवे देवलोक तक देख सकता है, इस पर गौतम स्वामी बोले की गृहस्थ को अवधिज्ञान होना तो संभव है परन्तु वो इतनी दूर तक नहीं देख सकता, अत : तुम्हें असत्य बोलने के लिए प्रायश्चित करना चाहिए |
यह सुनकर आनंद अचम्भित हो गया, क्यों की वह सत्य बोल रहा था| उसने गौतम स्वामी को पुछा “ हे भगवन ! क्या सत्य बोलने पर भी प्रायश्चित किया जाना आवश्यक है ?”
गौतम स्वामी को कुछ शंका हुई और इसे दूर करने वे महावीर स्वामी के पास पंहुचे तथा अपना व आनंद का वृतांत उनको सुनाया, तब महावीर स्वामी बोले “आनंद सत्य कह रहा है, आप जैसा ज्ञानी व्यक्ति ऐसी भूल कैसे कर सकता है ?” यह सुनकर गौतम स्वामी वापस आनंद के पास पंहुचे तथा अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी|
आनंद को यह देख कर बड़ा सुख मिला के गौतम स्वामी इतने बड़े ज्ञानी महात्मा होकर भी भूल होने पर एक साधारण गृहस्थ से भी क्षमा मांगने में नहीं हिचकिचाते, अपने ज्ञान का उनको कोई अहंकार नहीं था| उसने सोचा, ऐसा धर्म तथा ऐसे ज्ञानी की संगति मिलने से वह धन्य हो गया|
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