१:- जिन मंदिर मे जाने का विचार मन मे आने पर एक उपवास का फल मिलता है । जिन परमात्मा के मंदिर की और चलने पर रेले की तपस्या का लाभ मिलता है ।दर्शन करने से एक मास की तपस्या का लाभ मिलता है । पूजा करने से एक हजार वर्ष की तपस्या का फल मिलता है । तथा स्तुति इत्यादि से अनंतगुणा फल मिलता है । परमात्मा की भक्ति से रावण, श्रैणीक, कृष्ण जी आदि ने तीर्थंकर गोत्र का उपार्जन किया है । अतः मंदिर मे जाने से भी प्रभु भक्ति के द्वारा तप तथा पुण्य का उपार्जन होता है ॥
२:- परमात्मा की अंग पूजा करने से समस्त विध्न शांत होते है अग्र पूजा से सांसारिक सुखो की प्राप्ती होती है । तथा भाव पूजा से मोक्ष पद की प्राप्ति होती है । श्रध्दायुक्त सविधि पूजा करने से जीव सांसारिक सुख तथा स्वर्ग आदि की प्राप्ति करके अंत मे मोक्ष प्राप्त करता है क्योंकि पूजा से मानसिक शांती प्राप्त होती है, तदंनतर शुभ ध्यान होता है तथा शुभ ध्यान से मोक्ष मिलता है ॥
३:- मंदिर जी मे जय वीयराय पढते समय ""लोग विरुद्धच्चाओं"" आदि शब्द आते है अर्थात् लोक विरुद्ध चिजो का त्याग, गुरुजनों की पूजा परोपकार आदि करुंगा, एसी भावना मन मे आने से अपने दुष्कृत्यों का पश्चाताप होता है । तथा आगे से पाप न करने की प्रेरणा प्राप्त होती है । स्वयं को लज्जा आने लगती है अपने मस्तक पर चंदन का तिलक लगाते समय यह भाव उत्पन्न होते है की वीतराग परमात्मा की आज्ञा को शिरोधर्य करता हु इस प्रकार प्रभु दर्शन से ह्रदय पाप भीरु बनता है तथा बदलना शुरु हो जाता है ॥
४:- मंदिर जी मे जाने से शुद्ध वातावरण मिलता है जिससे वहा रहने तक मन मे पाप के विचार नही आते है शुध्द वातावरण के कारण मन भक्ति मे लगता है । शुभ विचार आते है मन धर्म ध्यान मे लीन होता है जब तक मन्दिर मे रहते है तब तक प्राणी अठारह पाप स्थानों से बचा रहता है, दुर्गुण दुर होकर सदगुणों की प्राप्ति होती है ॥
५:- परमात्मा प्रतिमा की शांत मुद्रा देखकर मन मे विचार आता है की परमात्मा बारह गुणो से युक्त तथा अठारह दुषणों से रहित है इस प्रकार उनके दर्शन व स्मरण से उनके गुण ह्रदय मे चित्रित हो जाते है तथा उनके समान बनने की भावना मन मे प्रकट होती है ॥
६:- परमात्मा की प्रतिमा के दर्शन से सम्यग्-दर्शन निर्मल होता है दानशील आदि की तरह जिन दर्शन भी कर्म क्षय मे सहायक है तथा आत्मा को दुर्गति मे जाने से रोक कर क्रमशः मोक्ष की प्राप्ति करवाता है ॥
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ASHOK SHAH & EKTA SHAH२:- परमात्मा की अंग पूजा करने से समस्त विध्न शांत होते है अग्र पूजा से सांसारिक सुखो की प्राप्ती होती है । तथा भाव पूजा से मोक्ष पद की प्राप्ति होती है । श्रध्दायुक्त सविधि पूजा करने से जीव सांसारिक सुख तथा स्वर्ग आदि की प्राप्ति करके अंत मे मोक्ष प्राप्त करता है क्योंकि पूजा से मानसिक शांती प्राप्त होती है, तदंनतर शुभ ध्यान होता है तथा शुभ ध्यान से मोक्ष मिलता है ॥
३:- मंदिर जी मे जय वीयराय पढते समय ""लोग विरुद्धच्चाओं"" आदि शब्द आते है अर्थात् लोक विरुद्ध चिजो का त्याग, गुरुजनों की पूजा परोपकार आदि करुंगा, एसी भावना मन मे आने से अपने दुष्कृत्यों का पश्चाताप होता है । तथा आगे से पाप न करने की प्रेरणा प्राप्त होती है । स्वयं को लज्जा आने लगती है अपने मस्तक पर चंदन का तिलक लगाते समय यह भाव उत्पन्न होते है की वीतराग परमात्मा की आज्ञा को शिरोधर्य करता हु इस प्रकार प्रभु दर्शन से ह्रदय पाप भीरु बनता है तथा बदलना शुरु हो जाता है ॥
४:- मंदिर जी मे जाने से शुद्ध वातावरण मिलता है जिससे वहा रहने तक मन मे पाप के विचार नही आते है शुध्द वातावरण के कारण मन भक्ति मे लगता है । शुभ विचार आते है मन धर्म ध्यान मे लीन होता है जब तक मन्दिर मे रहते है तब तक प्राणी अठारह पाप स्थानों से बचा रहता है, दुर्गुण दुर होकर सदगुणों की प्राप्ति होती है ॥
५:- परमात्मा प्रतिमा की शांत मुद्रा देखकर मन मे विचार आता है की परमात्मा बारह गुणो से युक्त तथा अठारह दुषणों से रहित है इस प्रकार उनके दर्शन व स्मरण से उनके गुण ह्रदय मे चित्रित हो जाते है तथा उनके समान बनने की भावना मन मे प्रकट होती है ॥
६:- परमात्मा की प्रतिमा के दर्शन से सम्यग्-दर्शन निर्मल होता है दानशील आदि की तरह जिन दर्शन भी कर्म क्षय मे सहायक है तथा आत्मा को दुर्गति मे जाने से रोक कर क्रमशः मोक्ष की प्राप्ति करवाता है ॥
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