ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

जीव विचार प्रश्नोत्तरी

Image may contain: outdoor, nature and text
जीव विचार प्रश्नोत्तरी
प्रश्न-1 जीव कीसे कहते है ?
जवाब-1 जो प्राणोको धारण करता है वह जीव ।
प्रश्न-2 प्राण किसे कहते है ?
जवाब-2 जिस शक्ति से जीव जीता है, उसे प्राण कहते है ।
प्रश्न-3 समस्त जीवो को कितने भागो में विभाजित किया जा सकता है ?
जवाब-3 समस्त जीवो के दो भेद है. – 1. संसारी जीव 2. मुक्त जीव ।
प्रश्न-4 संसारी जीव किसे कहते है ?
जवाब-4 वे जीव, जो कषाय और राग-द्वेष से युक्त है और उसके परिणाम स्वरुप बार-बार जन्म-मरण को प्राप्त होते है और घोर दुःख पाते है, वे संसारी जीव कहलाते है ।
प्रश्न-5 मुक्त जीव किसे कहते है ?
जवाब-5 वे जीव , जीनका राग-द्वेष समाप्त हो चुका है । कर्मबंधन ओर जन्म – मरण के चक्रव्यूह से मुक्त होकर सिद्धशिला पर बिराजमान हो चुके है, वे मुक्त जीव कहलाते है ।
प्रश्न-6 संसारी जीव के कितने भेद होते है ?
जवाब-6 संसारी जीव के प्रमुख 2 भेद है – 1. स्थावर जीव 2. त्रस जीव ।
प्रश्न-7 स्थावर जीव किसे कहते है ?
जवाब-7 वे जीव, जो सुख-दुःख एवं अनुकुल-प्रतिकुल संयोगोमें इच्छानुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जा सकते हैं, वे स्थावर जीव कहलाते है ।
प्रश्न-8 स्थावर जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-8 स्थावर जीवो के पांच भेद होते है ।
1. पृथ्वीकाय, 2. अप्काय, 3. तेउकाय, 4. वायुकाय, 5. वनस्पतिकाय ।
प्रश्न-9 स्थावर जीवोका अपर नाम क्या है ?
जवाब-9 एकेन्द्रिय ।
प्रश्न-10 पृथ्वीकायादि पंचक की व्याख्या स्पष्ट करो ?
जवाब-10 1. जिस जीव की काया पृथ्वी रुप हो, वह पृथ्वीकायिक जीव कहलाता है ।
2. जिस जीव की काया जल रुप हो, वह अप्कायिक जीव कहलाता है ।
3. जिस जीव की काया अग्नि रुप हो, वह तेउकायिक जीव कहलाता है ।
4. जिस जीव की काया वायु रुप हो, वह वाउकायिक जीव कहलाता है ।
5. जिस जीव की काया वनस्पति रुप हो,वह वनस्पतिकायिक जीव कहलाता है ।
प्रश्न-11 त्रस जीव किसे कहते है ?
जवाब-11 वे जीव, जो सुख-दुःख के प्रसंगोमें इच्छानुसार एक स्थानसे दूसरे स्थान पर जा सकते है, वे त्रस जीव कहलाते हैं ।
प्रश्न-12 त्रस जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-12 त्रस जीवो के चार भेद होते है।1.द्वीन्द्रिय 2.त्रीन्द्रिय 3.चतुरिन्द्रिय4. पंचेन्द्रिय
प्रश्न-13 इन्द्रिय किसे कहते है ?
जवाब-13 जिससे जीव ज्ञान प्राप्त करता है, उसे इन्द्रिय कहते है ।
प्रश्न-14 इन्द्रियाँ कितनी हैं ?
जवाब-14 1.स्पर्शनेन्द्रिय 2.रसनेन्द्रिय 3.घ्राणेन्द्रिय 4.चक्षुरिन्द्रिय 5.श्रोतेन्द्रिय ।
प्रश्न-15 स्पर्शनेन्द्रिय किसे कहते है ?
जवाब-15 जिस इन्द्रिय से जीव उष्ण, शीत आदि स्पर्शों को अनुभव करता है, उसे स्पर्शनेन्द्रिय कहते है
प्रश्न-16 स्पर्शनेन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-16 स्पर्शनेन्द्रिय के आठ विषय होते है 1. मृदु 2. कर्कश 3. गुरु 4. लघु 5. स्निग्ध 6.रुक्ष 7. शीत 8. उष्ण ।
प्रश्न-17 रसनेन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-17 रसनेन्द्रिय के पांच विषय होते है 1.मधुर 2. आम्ल 3. कषाय 4. कटु 5. तिक्त ।
प्रश्न-18 घ्राणेन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-18 घ्राणेन्द्रिय के दो विषय होते है 1. सुरभि 2. दुरभि ।
प्रश्न-19 चक्षुरिन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-19 चक्षुरिन्द्रिय के पांच विषय होते है 1. सफेद 2. पीला 3. लाल 4. नीला 5. काला ।
प्रश्न-20 श्रोतेन्द्रिय के कितने विषय होते है ?
जवाब-20 श्रोतेन्द्रिय के तीन विषय होते है 1. जीव शब्द 2. अजीव शब्द 3.मिश्र शब्द
प्रश्न-21 एक, दो, तीन, आदि संख्या की अपेक्षा से जीवों का वर्गीकरण कीजिये ?
जवाब-21 एक अपेक्षा से – चैतन्य ( आत्मा ) की अपेक्षा से सभी जीव समान है ।
दो की अपेक्षा से – 1. त्रस 2. स्थावर ।
1.सांव्यावहारिक 2.असांव्यावहारिक ।
1.संज्ञी 2.असंज्ञी ।
1.सिद्ध 2.संसारी
तीन की अपेक्षा से – 1. पुरुष वेदी 2. स्त्री वेदी 3. नपुंसक वेदी ।
1. भव्य 2. अभव्य 3. जातीभव्य ।
चार की अपेक्षा से – 1. नारकी 2. तिर्यंच 3. मनुष्य 4. देव
पांच की अपेक्षा से – 1.एकेन्द्रिय 2.द्वीन्द्रीय 3.त्रीन्द्रीय 4.चतुरिन्द्रिय 5.पंचेन्द्रीय ।
छह की अपेक्षा से – 1. पृथ्वीकायिक 2. अप्कायिक 3. तेउकायिक 4. वाउकायिक 5. वनस्पतिकायिक 6. त्रसकायिक ।
आठ की अपेक्षा से – 1. अण्डज 2. पोतज 3. जरायुज 4. रसज 5. संस्वेदज 6. संमूर्च्छिमज 7. उद्भवज 8. उपपातज ।
नौ की अपेक्षा से – 1. पृथ्वीकायिक 2. अप्कायिक 3. तेउकायिक 4. वाउकायिक 5 वनस्पतिकायिक 6.द्वीन्द्रिय 7.त्रीन्द्रिय 8.चतुरिन्द्रिय 9.पंचेन्द्रिय ।
चौदह की अपेक्षा से – 1.अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय 2. पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय ।
3 अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय 4. पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय ।
5 अपर्याप्त द्वीन्द्रिय 6. पर्याप्त द्वीन्द्रिय ।
7 अपर्याप्त त्रीन्द्रिय 8. पर्याप्त त्रीन्द्रिय ।
9. अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय 10. पर्याप्त चतुरिन्द्रिय ।
11. अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय 12. पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय ।
13. अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय 14. पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय ।
प्रश्न-22 प्रत्येक वनस्पतिकाय के कितने भेद है ?
जवाब-22 प्रत्येक वनस्पतिकाय के फल, फुल, छाल, काष्ट, मुल, पत्ता, और बीज रुप सात भेद होते है ।
प्रश्न-23 वनस्पतिकाय के संदर्भ में विस्तार करे ?
जवाब-23 1.शब्द ग्रहण शक्ति – कंदल, कुंडल आदि वनस्पतियाँ मेघ गर्जनासे पल्लवित होती है ।
2.आश्रय ग्रहण शक्ति – बेल, लताएँ, दीवार वृक्ष आदिका सहारा लेकर वृद्धिको प्राप्त करती है ।
3.सुगंध ग्रहण शक्ति – कुछ वनस्पतियाँ सुगंध पाकर जल्दी पल्लवित होती है । 4.रस ग्रहण शक्ति – उख आदि वनस्पतियाँ भूमि से रस ग्रहण करती है ।
5.स्पर्श ग्रहण शक्ति – कुछ वनस्पतियाँ स्पर्श पाकर फैलती है एवं कुछ वनस्पतियाँ संकुचित्त होती है ।
6.निद्रा एवं जागृति – चंद्रमुखी फुल चंद्र खिलने के साथ खिलते है उसके अभाव में संकुचित हो जाते है सुर्यमुखी फुल सुर्य खिलने के साथ खिलते है सुर्यास्त के बाद सिमट जाते है ।
7.राग – पायल की रुनझुन की मधुर अवाज सुनकर रागात्मक दशामें अशोक, बकुल, कटहल, आदि वृक्षो के फुल खिल उठते है ।
8.संगीत – मधुर सुरावलीयाँ सुनकर कई वृक्षो के फुल जल्दी पल्लवित पुष्टित और सुरभित होते है ।
9.लोभ – सफेद आक, पलास, बिल्लि, आदिकी जडे भूमि में दबे हुए धनपर फैल कर रहती है ।
10.लाज - छुईमुई आदी कई वनस्पतियाँ स्पर्श पाकर लाज भय से संकुचित हो जाती है ।
11.मैथुन – अनेक वनस्पतियाँ आलिंगन, चुम्बन, कामुक हाव भाव एवं कटाक्ष से जल्दी फलीभूत होती है, पपीते आदी के वृक्ष नर और मादा साथ साथ हो तो ही पल्लवित होते हैं ।
12.क्रोध – कोकनद का वृक्ष क्रोध में हुंकार की आवाज करता है ।
13.मान – अनेक वृक्षों में अभिमान का भाव भी पाया जाता है ।
14.आहार संज्ञा – वृक्षों,पौधो को जब तक आहार पानी मिलता है तब तक जीवीत रहते है आहार पानी के अभाव में सूखकर मर जाते है ।
15.शाकाहारी, मांसाहारी – वनस्पतिकायिक जीवों में कुछ वनस्पतियाँ पानी, खाद आदि का आहार करती हैं और कुछ वनस्पतियाँ मनुष्य, जलचर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय के मांस, रुधिर का भक्षण करती है । सनड्रयू और वीनस फ्लाइट्रेप आदि वनस्पतियाँ संपातिम ( उडने वाले ) जीवो का भक्षण करती हैं ।
16.आकर्षण – कई वनस्पतियाँ फैल कर पास में गुजरते हुए मनुष्य, तिर्यंच आदि को अपने कसे हुए शिंकजेमें फंसा देती है ।
17.माया – कई लताएँ अपने फलों को पत्तों के नीचे दबाकर रखती हैं और फल रहित होनेका दिखावा करती हैं ।
18.जन्म – वनस्पतिकाय बोने पर जन्म को प्राप्त करती है वर्षाकाल में चारो तरफ वनस्पति उग आती है ।
19.मृत्यु – वनस्पतियाँ हिमपाल, शीत एवं उष्ण की अधिकता, आहार पानी की कमी, रोग, भय, अन्य जीवो के प्रहार, आयुष्य समाप्ति पर मृत्यु को प्राप्त करती हैं ।
20.वृद्धि – वनस्पति वृद्धि को भी प्राप्त करती है बीज धीरे-धीरे वृद्धि को प्राप्त होता है वटवृक्ष का स्वरुप धारण करने में कई वर्ष व्यतीत हो जाते है ।
21.रोग – अन्य जीवों की भाँति वनस्पति भी रोगग्रस्त होती है । पानी, हवा, धूप, आहार आदि की अल्पता-अधिकता कारण रोग होते है और पुनःस्वयं औषधोपचार प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर लेती है ।
प्रश्न-24.निगोद के जीवो के कितने प्रकार है ?
जवाब-24.निगोद के जीवो के दो भेद है 1.व्यवहार राशि वाले 2. अव्यवहार राशि वाले
प्रश्न-25.व्यवहार राशि के जीव किसे कहते है ?
जवाब-25.जिन जीवात्माओं ने निगोद को छोडकर एक बार भी बादर पर्याय प्राप्त की हो वे व्यवहार राशि के जीव कहलाते हैं । प्रश्न-26. अव्यवहार राशि के जीव किसे कहते है ?
जवाब-26.वे जीव, जो अनन्तकाल-अनादिकाल से निगोद में ही स्थित है, एक बार भी बादरकायिक स्थिति को प्राप्त नही किया है वे अव्यवहार राशि के जीव किसे कहलाते है।
प्रश्न-27.किसके प्रभाव से अव्यवहार राशि का जीव व्यवहार राशि में आता है ?
जवाब-27.जब एक जीवात्मा सकल कर्मों का क्षय करके सिद्ध पद को प्राप्त करता है तब एक जीवात्मा अव्यवहार राशि में से व्यवहार राशि में आता हैं ।
प्रश्न-28.निगोद के जीवो की काय स्थिति कितने प्रकार की होती हैं ?
जवाब-28.निगोद के जीवो की काय स्थिति तीन प्रकार की होती है
1.अनादि अनन्त - वे जीव, जो अनादिकाल से निगोद में ही स्थित है, और निगोद में से बहार कभी निकलेंगे भी नहीं । जातिभव्य जीवो की स्थिति अनादि अनन्तकाल की होती हैं ।
2.अनादि सांत - वे जीव, जो अनादिकाल से निगोद में ही स्थित है, निगोद में से बहार निकले नही है, परंतु भवितव्यता के अनुसार कभी न कभी जरूर बहार निकलेंगे। इसमें भव्य और अभव्य दोनो प्रकार के जीव होते है ।
3.सादि सांत – वे जीव, जो एक बार त्रस पर्याय को प्राप्त हो चुके हैं परन्तु कर्म बंधन करके पुनः निगोद में चले गये है, एक बार त्रस पर्याय प्राप्त कर चुके है अतः उनकी सादि स्थिति है और वे कभी न कभी मोक्ष में जायेंगे अतः सान्त स्थिति है । भव्य जीव ही इस स्थिति को प्राप्त करते हैं ।
प्रश्न-29. सूक्ष्म निगोद के जीव कितने प्रकार के होते हैं ?
जवाब-29.दो प्रकार के 1.सांव्यवहारिक निगोद 2.असांव्यवहारिक निगोद ।
प्रश्न-30.सांव्यवहारिक सूक्ष्म निगोद किसे कहते है ?
जवाब-30. एक जीव जब समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्ष को प्राप्त करता है तब एक जीव अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आता हैं । वह जीव मृत्यु पाकर पुनः सूक्ष्म निगोद में उत्पन्न हो जाये तो वह सांव्यवहारिक जीव कहलाता है ।
प्रश्न-31.असांव्यवहारिक सूक्ष्म निगोद किसे कहते है ?
जवाब-31.वे जीव, जो अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में नहीं आये है, अनादिकाल से सूक्ष्म निगोद में ही हैं उन्हें असांव्यहारिक जीव कहते हैं ।
प्रश्न-32.निगोद के जीवों के भव बताईये ?
जवाब-32.निगोद के जीव –
1. एक श्वासोच्छ्वास में साढे सत्रह भव करते हैं ।
2. एक मुर्हूत्त में 65,536 भव करते हैं ।
3. एक दिन में 19,66,080 भव करते हैं ।
4. एक मास में 5,89,82,400 भव करते हैं ।
5. एक वर्ष में 70,77,88,700 भव करते हैं।
प्रश्न-33.बादर जीव से क्या अभिप्राय है ?
जवाब-33.जिस एक जीव का एक शरीर हो अथवा अनेक जीवों के शरीर एकत्र हो, उन्हें चर्मचक्षुओं से अथवा किसी यंत्र के द्वारा देखा जा सके, वे बादर जीव कहलाते है। ये जीव शस्त्र से कट जाते हैं, इनका छेदन-भेदन होता है, अग्नि जला सकती है एवं पानी बहा सकता हैं । इनकी गति में रुकावट होती है और दूसरो की गति में रुकावट का कारण भी बनते हैं ।
प्रश्न-34 सूक्ष्म जीव से क्या अभिप्राय है ?
जवाब-34 जिन जीवो का एक शरीर अथवा अनेक शरीर इकट्ठे होने पर भी चर्मचक्षु अथवा यंत्र के द्वारा दिखाई नहीं देते है, वे सूक्ष्म जीव कहलाते हैं । ये जीव संपूर्ण चौदह राजलोक में व्याप्त है । ये मनुष्य, तिर्यंच के हलन-चलन से, शस्त्र, अग्नि, जलादि से मृत्यु को प्राप्त नहीं होते हैं ।
प्रश्न-35 सूक्ष्म जीवों का अस्तित्व कहाँ तक है ?
जवाब-35 जिस प्रकार अंजन की डिब्बी में अंजन भरा हुआ रहता है, उसी प्रकार संपूर्ण चौदह राजलोक में सूक्ष्म जीव ठुंस-ठुंस के भरे हुए हैं । सुई की नोंक जितना भाग भी खाली नही हैं । सुई की नोंक जितने स्थान में असंख्य श्रेणियाँ होती हैं । एक-एक गोलक में असंख्य औदारिक शरीर होते हैं और एक एक शरीर में अनन्त-अनन्त जीव होते हैं ।
प्रश्न-36 किन-किन प्रसंगो में त्रसनाडी के बहार भी त्रसकायिक जीवों का अस्तित्व विद्यमान होता हैं ?
जवाब-36 1. जब कोइ तीर्थंकर भगवंत या केवली भगवंत समुद्घात् करते हैं तब उनके आत्म प्रदेश सम्पूर्ण चौदह राजलोक में व्याप्त हो जाते हैं । उस वक्त त्रस नाडी के बहार भी त्रस जीव की विद्यमानता होती हैं ।
2. जिस त्रस जीवने त्रस नाडी के बाहर स्थावर नामकर्म का बंध कर लीया है, वह जीव जब मारणान्तिक समुद्घात करता है तब उसके आत्मप्रदेश त्रस नाडी के बाहर भी व्याप्त होने से त्रस नाडी के बाहर उसका अस्तित्व होता हैं ।
प्रश्न-37 पर्याप्ता जीव किसे कहते है ?
जवाब-37 जो जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण कर चुका है, वह पर्याप्ता जीव कहलाता है । जैसे एकेन्द्रिय जीव चार पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के पश्चात् पर्याप्ता कहलाता है ।
प्रश्न-38 अपर्याप्ता जीव किसे कहते है ?
जवाब-38 स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करने से पूर्व जीव अपर्याप्ता कहलाता है । जैसे एकेन्द्रिय जीव चार पर्याप्तियाँ पूर्ण करने से पूर्व अपर्याप्ता कहलाता हैं ।
प्रश्न-39 पर्याप्ता जीवों के कितने भेद होते है ?
जवाब-39 दो भेदः- 1. करण पर्याप्ता 2. लब्धि पर्याप्ता.
प्रश्न-40 अपर्याप्ता जीवों के कितने भेद होते है ?
जवाब-40 दो भेदः- 1. करण अपर्याप्ता 2. लब्धि अपर्याप्ता.
प्रश्न-41 करण पर्याप्ता किसे कहते है ?
जवाब-41 जिस जीवने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण कर ली है, वह करण पर्याप्ता कहलाता है ।
प्रश्न-42 लब्धि पर्याप्त किसे कहते है ?
जवाब-42 जिस जीवने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण कर ली है या भविष्य में स्वयोग्य पर्याप्तियाँ अवश्यमेव पूर्ण करेगा, वह लब्धि पर्याप्ता कहलाता है ।
प्रश्न-43 करण अपर्याप्ता किसे कहते है ?
जवाब-43 जिस जीवने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं की है, वह करण अपर्याप्ता कहलाता है ।
प्रश्न-44 लब्धि अपर्याप्ता किसे कहते है ?
जवाब-44 जिस जीवने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं की है और पूर्ण करने से पहले ही मर जायेगा, उसे लब्धि अपर्याप्ता कहते है ।
प्रश्न-45 पर्याप्ति किसे कहते है ?
जवाब-45 जिस शक्ति के द्वारा जीव आहार ग्रहण करके उसे रस में परिणमित करता है, रस को शरीर एवं इन्द्रियों में रुपान्तरित करता है, एवं श्वासोच्छवास, भाषा और मन योग्य पुद्गल वर्गणाओं को ग्रहण कर श्वासोच्छवास, भाषा और मन रुप बनाता है, जीव की उस शक्ति को पर्याप्ति कहते है ।
प्रश्न-46 पर्याप्तियाँ कितनी होती है ?
जवाब-46 पर्याप्तियाँ 6 होती हैः- 1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोच्छवास
5. भाषा 6. मन
प्रश्न-47 एकेन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती हैं ?
जवाब-47 4 पर्याप्तियाँ -1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोच्छवास पर्याप्ति ।
प्रश्न-48 द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?
जवाब-48 5 पर्याप्तियाँ -1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोच्छवास 5.भाषा पर्याप्ति।
प्रश्न-49 संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य, देवता, नारकी और तिर्यंच जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?
जवाब-49 6 पर्याप्तियाँ - 1. आहार 2. शरीर 3. इन्द्रिय 4. श्वासोच्छवास
5. भाषा 6. मन पर्याप्ति ।
प्रश्न-50 असंज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य एवं तिर्यंच के कितनी पर्याप्तियाँ होती है ?
जवाब-50 मन पर्याप्ति के अतिरिक्त पांच पर्याप्तियाँ होती है ।
प्रश्न-51 कौन-कौन से जीव पर्याप्त अपर्याप्त होते है ?
जवाब-51 एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, देव, नारकी, गर्भज-संमूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच एवं गर्भज मनुष्य पर्याप्ता और अपर्याप्त दोनों होते हैं परन्तु संमूर्च्छिम मनुष्य नियमतः अपर्याप्त ही होते हैं ।
प्रश्न-52 प्राण और पर्याप्ति में क्या अंतर है ?
जवाब-52 जिस शक्ति से जीव जीता है, उसे प्राण कहते है । जिस शक्ति से जीव आहार ग्रहण कर क्रमशः रस,शरीर और इन्द्रिय रुप में परिणत करता है एवं श्वासोच्छवास, भाषा, मन योग्य पुद्गल ग्रहण कर उन्हें उस रुप में परिवर्तित करता है, उसे पर्याप्ति कहते है ।
प्रश्न-53 संज्ञी और असंज्ञी में क्या अन्तर है ?
जवाब-53 मन वाले जीव को संज्ञी कहते है । मन रहित जीव को असंज्ञी कहते है ।
प्रश्न-54 जीव की उत्पत्ति के प्रमुख कितने भेद है ?
जवाब-54 तीन भेदः- 1. गर्भज 2. संमूर्च्छिम 3. औपपातिक.
प्रश्न-55 गर्भज जीव किसे कहते है ?
जवाब-55 वे जीव, जो माता-पिता (नर एवं नारी) के संयोगसे उत्पन्न होते हैं, वे गर्भज कहलाते हैं ।
प्रश्न-56 संमूर्च्छिम जीव किसे कहते है ?
जवाब-56 वे जीव, जो माता-पिता के संयोग के बिना अन्य बाह्य संयोग प्राप्त होने पर उत्पत्ति स्थान में स्थित औदारिक पुद्गलों को शरीर में परिणत करके उत्पन्न होते हैं, उनको संमूर्च्छिम जीव कहा जाता हैं ।
प्रश्न-57 गर्भज जीवों के कितने प्रकार है ?
जवाब-57 तीन प्रकारः- 1. जरायुज 2. अण्डज 3. पोतज.
प्रश्न-58 जरायुज गर्भज किसे कहते है ?
जवाब-58 वे जीव, जो रक्त और मांस से युक्त जाल के आवरण में लिपटे हुए पैदा होते हैं, वे जरायुज गर्भज कहलाते हैं । जैसे मनुष्य, गाय, भैंस, बकरी आदि ।
प्रश्न-59 अण्डज गर्भज किसे कहते है ?
जवाब-59 वे जीव, जो अण्डों से पेदा होते हैं, वे अण्डज गर्भज कहलाते हैं । जैसे सांप, तोता, कबूतर, मूर्गी आदि ।
प्रश्न-60 पोतज गर्भज किसे कहते है ?
जवाब-60 वे जीव, जो बिना किसी आवरण से पेदा होता हैं । वे पोतज गर्भज कहलाते हैं । जैसे हाथी, शशक, नेवला, चूहा आदि ।
प्रश्न-61 औपपातिक जन्म किसे कहते है ?
जवाब-61 देवशय्या पर दिव्य वस्त्रों से आच्छादित स्थान उपपात कहलाता है । उस उपपात स्थान पर स्थित वैक्रिय पुद्गलों को ग्रहण करके शरीरमें परिवर्तित करना औपपातिक जन्म कहलाता है । इस प्रकार का जन्म देवताओं का होता है । नारकी जीव चौडे मुँह वाली कुंभी में स्थित वैक्रिय पुद्गलों को शरीर रुप में परिणत करके जन्म लेते हैं ।
प्रश्न-62 किन-किन जीवों का गर्भज जन्म होता है
?
जवाब-62 1.पंचेन्द्रिय तिर्यंच 2.पंचेन्द्रिय मनुष्य ।
प्रश्न- 63 किन-किन जीवों का संमूर्च्छिम जन्म होता है ?
जवाब-63 एकेन्द्रिय (पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, अगर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच, अपर्याप्ता असंज्ञी मनुष्य ।
प्रश्न-64 किन-किन जीवों का औपपातिक जन्म होता हैं ?
जवाब-64 1. देवता 2. नारकी ।
प्रश्न-65 एकेन्द्रिय एवं विकलेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति किस प्रकार होती हैं ?
जवाब-65 एकेन्द्रिय और द्वीन्द्रिय जीव उत्त्पति के योग्य संयोग मिलने पर स्वजातीय जीवों के आस पास उत्पन्न हो जाते है । त्रीन्द्रिय जीव स्वजातीय जीवों के मल आदि में एवं चतुरिन्द्रिय जीव स्वजातीय जीवों के मल, लार आदि में संयोगानुसार उत्पन्न हो जाते हैं । वहाँ स्थित औदारिक शरीर के पुद्गलों को शरीर रुप परिणत करके उत्पन्न होते हैं ।
प्रश्न-66 संमूर्च्छिम मनुष्य एवं तिर्यंचों की उत्पत्ति के चौदह अशुचि स्थान कौनसे हैं ?
जवाब-66 1.मल, 2.पेशाब, 3. कफ, 4. नाक का मल, 5. वमन 6.पित्त,7. पीब-मवाद्, 8. रूधिर, 9. वीर्य, 10. त्याग किये गये वीर्य के पुद्गल, 11. मुर्दा शरीर, 12. पुरुष-स्त्री का परस्पर संयोग, 13. मेल, 14. पसीना ।
प्रश्न-67 अवगाहना किसे कहते है ?
जवाब-67 जीव के शरीर की ऊंचाई को अवगाहना कहते हैं ।
प्रश्न-68 आयुष्य किसे कहते है ?
जवाब-68 अमुक नियत काल तक एक शरीर में जीव को रोकने वाला आयुष्य कहलाता है ।
प्रश्न-69 स्वकाय स्थिति किसे कहते है ?
जवाब-69 एक ही पर्याय में जीव जितनी बार जन्म लेता है एवं मरता है, उसे स्वकाय स्थिति कहते है ।
प्रश्न-70 प्राण कितने प्रकार के होते है ?
जवाब-70 दस प्रकार के - 1.स्पर्शनेन्द्रिय प्राण 2.रसनेन्द्रिय प्राण 3.घ्राणेन्द्रिय प्राण 4.चक्षुरिन्द्रिय प्राण 5.श्रोतेन्द्रिय प्राण 6. मन बल प्राण 7. वचन बल प्राण 8. काया बल प्राण 9.श्वासोच्छ्वास प्राण 10. आयुष्य प्राण ।
प्रश्न-71 योनि किसे कहते है ?
जवाब-71 जीव के जन्म लेने के स्थान को योनि कहते है । स्थूल शरीर बनाने के लिये उसके योग्य पुद्गलों को प्रथम बार ग्रहण करना योनि कहलाता है ।
प्रश्न-72 योनि कितनी है ?
जवाब-72 चौरासी लाख ।
प्रश्न-73 जीव अनन्त होने से उनके उत्पत्ति स्थान भी अनन्त हैं, फीर चौरासी लाख ही योनियाँ क्यों कही गयी ?
जवाब-73 जिन जिन योनि स्थानों का वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान समान होते हैं वह एक योनि ही कही जाती है । इन वर्णादिक पांचों की तरतमता के आधार पर जीव की कुल 84 लाख योनियाँ कही गयी हैं ।
प्रश्न-74 पृथ्वीकायीक जीवो के कितने भेद होते है
?
जवाब-74 चार भेद 1.पर्याप्त सूक्ष्म 2. पर्याप्त बादर 3. अपर्याप्त सूक्ष्म 4. अपर्याप्त बादर
प्रश्न-75 स्फटिक क्या है एवं उसका क्या उपयोग है
?
जवाब- 75 स्फटिक एक पारदर्शी (जिसके आर पार दिखाई देता है) पत्थर है । इसकी मूल्यवान प्रतिमाएँ, चश्में आदि अनेक वस्तुएँ निर्मित होती हैं ।
प्रश्न-76 जलकायिक जीवो के भेद बताओ ?
जवाब-76 नदी, सागर, तालाब, कुएँ, एवं बरसात का पानी, ओस, बर्फ, ओले, कोहरा, हरी वनस्पतियों के उपर फूटकर निकला हुआ पानी, घनोदधि, आदि
जलकायिक जीवो के भेद है ।
प्रश्न-77 घनोदधि से क्या तात्पर्य है ?
जवाब-77 चौदह राजलोक में स्थित देव विमानों एवं नरक पृथिवियों के नीचे घी के समान जमा – ठसा हुआ पानी घनोदधि कहलाता है ।
प्रश्न-78 अग्निकायिक जीवो के उदाहरण दीजिये
?
जवाब-78 अंगारा, ज्वाला, मुर्मर, उल्कापात, अशनि, आकाश से गिरने वाले अग्नि कण, बिजली इत्यादि अग्निकायिक जीवों के भेद है ।
प्रश्न-79 समुद्र में लगने वाली आग को क्या कहते है ?
जवाब-79 वडवानल ।
प्रश्न-80 दावानल किसे कहते हैं ?
जवाब-80 बांस आदि के आपस में टकराने घिसने से उत्पन्न होने वाली आग दावानल कहलाती है ।
प्रश्न-81 वायुकायिक जीवों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिये ?
जवाब-81 उद्भ्रामक, उत्कलिका, मंडलाकार, आंधी, शुद्ध, गुंजवायु, घनवात, तनवात, इत्यादि वायुकायिक जीवों के भेद है ।
प्रश्न-82 उद्भ्रामक और उत्कलिका वायु में क्या भेद है ?
जवाब-82 ऊँचाई की तरफ बहने वाली वायु उद्भ्रामक कहलाती है जबकि नीचे की ओर प्रवाहित होने वाली वायु उत्कलिका कहलाती है ।
प्रश्न- 83 मंडलाकार वायु एवं गूंजवायु को स्पष्ट करो? जवाब-83 वह वायु, जो गोल-गोल घूमती हुई बहती है, मंडलाकार(गोलाकार)वायु कहलाती है । वह वायु, जो गूंजती हुई बहती है, गूंजवायु कहलाती हैं ।
प्रश्न-84 उद्भ्रामक वायु का दुसरा क्या नाम है ?
जवाब-84 संवर्तक वायु ।
प्रश्न-85 घनवात – तनवात से क्या आशय है ?
जवाब-85 घनवात का अर्थ गाढी वायु है और तनवात का अर्थ पतली वायु है । चौदह राजलोक में देवविमानो एवं नरक पृथिवियों के नीचे जो घनोदधि स्थित है, उसके नीचे घनवात एवं तनवात स्थित है ।
प्रश्न-86 अप्काय जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-86 चार भेदः- पर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर, अपर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर ।
प्रश्न-87 तेउकाय जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-87 चार भेदः- पर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर, अपर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर ।
प्रश्न-88 वायुकाय जीवो के कितने भेद होते है ?
जवाब-88 चार भेदः- पर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर, अपर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर ।
प्रश्न-89 वनस्पतिकाय जीवो के कितने भेद होते है
?
जवाब-89 वनस्पतिकाय के छह भेद होते है, जिनमें से चार भेद साधारण वनस्पतिकाय के होते है – पर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर, अपर्याप्ता सूक्ष्म एवं बादर और दो भेद प्रत्येक वनस्पतिकाय के होते है – पर्याप्ता बादर और अपर्याप्ता बादर ।
प्रश्न-90 किस वैज्ञानिक ने पानी की एक बूंद में 36450 त्रस जीव यंत्र के द्वारा प्रामाणित किये ?
जवाब-90 केप्टन स्कोर्सबी ने ।
प्रश्न-91 वनस्पतिकाय में सर्वप्रथम किसने यंत्र की सहायता से जीव सिद्धि की ?
जवाब-91 डाँ. जगदीशचन्द्र बसु ।
प्रश्न-92 एकेन्द्रिय जीवों की स्वकाय स्थिति कितनी होती हैं ?
जवाब-92 पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय और प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीवों की स्वकाय स्थिति असंख्य उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी होती हैं जब की साधारण वनस्पतिकाय के जीवों की स्वकायस्थिति अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी होती है ।
प्रश्न-93 एकेन्द्रिय जीवोंकी अवगाहना कितनी होती है ?
जवाब-93
एकेन्द्रिय प्राणी जघन्य अवगाहना उत्कृष्ट अवगाहना
1 पृथ्वीकाय सूक्ष्म-बादर अंगुलका असंख्यातवां भाग अंगुलका असंख्यातवां भाग
2 अप्काय सूक्ष्म-बादर अंगुलका असंख्यातवां भाग अंगुलका असंख्यातवां भाग
3 तेउकाय सूक्ष्म-बादर अंगुलका असंख्यातवां भाग अंगुलका असंख्यातवां भाग
4 वाउकाय सूक्ष्म-बादर अंगुलका असंख्यातवां भाग अंगुलका असंख्यातवां भाग
5 साधारण वनस्पतिकाय सूक्ष्म-बादर
अंगुलका असंख्यातवां भाग अंगुलका असंख्यातवां भाग
6 प्रत्येक वनस्पतिकाय सूक्ष्म-बादर
अंगुलका असंख्यातवां भाग एक हजार योजन से कुछ अधिक
प्रश्न- 94 एकेन्द्रिय जीवों का जघन्य-उत्कृष्ट आयुष्य बताईए ?
जवाब-94
एकेन्द्रिय जघन्य उत्कृष्ट
1 पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म पृथ्वीकाय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
2 पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म अप्काय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
3 पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म तेउकाय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
4 पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म वाउकाय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
5 पर्याप्ता-अपर्याप्ता सूक्ष्म साधारण वनस्पतिकाय
अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
6 अपर्याप्ता बादर पृथ्वीकाय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
7 अपर्याप्ता बादर अप्काय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
8 अपर्याप्ता बादर तेउकाय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
9 अपर्याप्ता बादर वाउकाय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
10 अपर्याप्ता बादर साधारण वनस्पतिकाय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
11 अपर्याप्ता बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
12 पर्याप्ता बादर साधारण वनस्पतिकाय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
13 पर्याप्ता बादर पृथ्वीकाय अन्तर्मुहूर्त 22,000वर्ष
14 पर्याप्ता बादर अप्काय अन्तर्मुहूर्त 7,000 वर्ष
15 पर्याप्ता बादर तेउकाय अन्तर्मुहूर्त 3 दिवस
16 पर्याप्ता बादर वाउकाय अन्तर्मुहूर्त 3,000 वर्ष
17 पर्याप्ता बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय अन्तर्मुहूर्त 10,000वर्ष
प्रश्न- 95 पृथ्वीकायिक जीवों के विभिन्न भेदों की आयु बताओ ?
जवाब-95 पृथ्वीकायिक जीवों के विभिन्न भेदों की उत्कृष्ट आयु निम्नलिखित हैं-
1 पीली मिट्टी की 600 वर्ष
2 सफेद मिट्टी की 700 वर्ष
3 लाल मिट्टी की 900 वर्ष
4 काली मिट्टी की 1,000 वर्ष
5 हरी मिट्टी की 1,000 वर्ष
6 कोमल पृथ्वी की 1,000 वर्ष
7 खारी मिट्टी की 11,000 वर्ष
8 नमक की 12,000 वर्ष
9 ताम्बे की 13,000 वर्ष
10 लोहे की 14,000 वर्ष
11 शीशे की 14,000 वर्ष
12 रुपा की 15,000 वर्ष
13 सोने की 16,000 वर्ष
14 हरताल की 16,000 वर्ष
15 मणसील की 16,000 वर्ष
16 हिंगुल की 17,000 वर्ष
17 कंकर की 18,000 वर्ष
18 भूखरां पत्थरों की 19,000 वर्ष
19 कालमीढ पत्थरों की 20,000 वर्ष
20 आरसपहाण पत्थरों की 21,000 वर्ष
21 हीरा, माणिक, मोती की 22,000 वर्ष
प्रश्न- 96 स्थावर (एकेन्द्रिय) जीवों के शरीर का आकार कैसा होता है ?
जवाब-96 पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय और वनस्पतिकाय के जीवों के शरीर का आकार क्रमशः मसूर, बुलबुले, सुईओं का समूह, ध्वजा एवं विविध प्रकारका होता है।
प्रश्न- 97 एकेन्द्रिय जीवों में कितने प्राण होते है ?
जवाब- 97 चार प्राणः-1.स्पर्शनेन्द्रिय 2.काय बल प्राण 3.श्वासोच्छवास 4.आयुष्य ।
प्रश्न- 98 एकेन्द्रिय जीव किस किस गुणठाणे में होते हैं ?
जवाब- 98 अपर्याप्त पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय के जीवों में पहला एवं दूसरा गुणठाणा पाया जाता हैं । तेउकाय एवं वाउकाय के जीवों में मात्र पहला गुणठाणा ही पाया जाता है ।
प्रश्न- 99 एकेन्द्रिय जीव संज्ञी होते हैं या एसंज्ञी ?
जवाब- 99 एकेन्द्रिय जीव असंज्ञी ही होते है ।
प्रश्न- 100 एकेन्द्रिय जीवों की कितनी योनियाँ होती है ?
जवाब- 100 पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वाउकाय की सात-सात लाख योनियाँ होती है । प्रत्येक वनस्पतिकाय एवं साधारण वनस्पतिकाय की क्रमशः दस लाख एवं चौदह लाख योनियाँ होती है । कुल मिलाकर बावन लाख योनियाँ एकेन्द्रिय जीवों की होती है
प्रश्न-101 विकलेन्द्रिय से क्या तात्पर्य है ?
जवाब- 101 विकल – न्यून, जीस जीवको एक से अधिक एवं पांच से कम इन्द्रियाँ प्राप्त होती है उसे विकलेन्द्रिय कहते है ।
प्रश्न- 102 द्वीन्द्रिय जीवों के कुछ उदाहरण दीजिए ?
जवाब- 102 शंख, कौडी, गंडोल, जौंक, अक्ष, भूनाग, केंचुएँ, लालयक, मेहरि,कृमि पूरा, मातृवाहिका, सीप, नाहरु, द्विदल आदि द्वीन्द्रिय जाति के जीव है ।
प्रश्न- 103 लालयक किसे कहते है ?
जवाब- 103 बासी रोटी, अन्न आदि में पैदा होने वाले जीव लालयक कहलाते है ।
प्रश्न- 104 द्विदल जीव किसे कहते है ?
जवाब- 104 जिस अन्न (धान) के दो बराबर भाग होते हैं, उनके साथ कच्चा दूध, दही,छाछ लेने से जिन द्वीन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति होती है वे द्विदल के जीव कहलाते है।
प्रश्न- 105 द्वीन्द्रिय जीवों के कितने भेद होते हैं ?
जवाब- 105 दो भेदः- पर्याप्ता द्वीन्द्रिय और अपर्याप्ता द्वीन्द्रिय.
प्रश्न- 106 घी में उत्पन्न होने वाले जीव क्या कहलाते हैं ?
जवाब- 106 घृतेलिका ।
प्रश्न- 107 त्रीन्द्रिय जीवों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिये ?
जवाब- 107 कानखजूरा, खटमल, जूं, लीख, चींटी, दीमक, चींटा, इल्ली, घृतेलिका, चर्मयूका, गोकिट, गर्दमल, विष्टा के कीडे, कुन्थु, अनाज में पैदा होने वाले कीडे, गोपालिका, सुरसली, इन्द्रगोप इत्यादि त्रीन्द्रिय जाति के जीव है ।
प्रश्न-108 चतुरिन्द्रिय जीवों के कुछ भेद बताईये ?
जवाब- 108 बिच्छू, ढिंकूण, भ्रमर, भ्रमरिका, टिड्डी, मक्खी-मधुमक्खी, डांस, मच्छर, कंसारिका, मकडी, डोलक, आदि चतुरिन्द्रिय जाति के जीव है ।
प्रश्न- 109 चतुरिन्द्रिय जीवों के कितने भेद होते है
?
जवाब- 109 दो भेदः- 1. पर्याप्ता चतुरिन्द्रिय 2. अपर्याप्ता चतुरिन्द्रिय ।
प्रश्न- 110 विकलेन्द्रिय जीवों के कितने पाँव होते है ?
जवाब- 110 द्वीन्द्रिय जीवों के पाँव नही होते हैं । त्रीन्द्रिय जीवों के चार या छह अथवा इससे अधिक भी पाँव होते है । चतुरिन्द्रिय जीवों के छह, आठ या इससे भी अधिक पाँव होते हैं ।
प्रश्न-111 एक समयमें कितने विकलेन्द्रिय जीव जन्म लेते हैं ?
जवाब- 111 संख्यात अथवा असंख्यात ।
प्रश्न-112 एक समयमें कितने विकलेन्द्रिय जीव च्यव (मर) सकते है ?
जवाब- 112 संख्यात अथवा असंख्यात ।
प्रश्न-113 विकलेन्द्रिय जीवों की अवगाहना कितनी होती है ?
जवाब- 113
विकलेन्द्रिय जघन्य उत्कृष्ट
1 द्वीन्द्रिय अंगुल का असंख्यातवां भाग 12 योजन
2 त्रीन्द्रिय अंगुल का असंख्यातवां भाग 3 गाऊ
3 चतुरिन्द्रिय अंगुल का असंख्यातववां भाग 1 योजन
प्रश्न-114 विकलेन्द्रिय जीवों का आयुष्य द्वार समजाईये ?
जवाब- 114
विकलेन्द्रिय जघन्य उत्कृष्ट
1 द्वीन्द्रिय अन्तर्मुहूर्त 12 वर्ष
2 त्रीन्द्रिय अन्तर्मुहूर्त 49 दिवस
3 चतुरिन्द्रिय अन्तर्मुहूर्त 6 मास
प्रश्न-115 विकलेन्द्रिय जीवों की स्वकाय स्थिति बताओ ?
जवाब- 115 संख्यात वर्ष ।
प्रश्न-116 विकलेन्द्रिय जीवोमें कितने प्राण पाये जाते है ?
जवाब- 116 द्वीन्द्रिय जीवोमें 6 प्राणः- 1.स्पर्शनेन्द्रिय 2.रसनेन्द्रिय 3.काय बल 4. वचन बल 5.श्वासोच्छवास 6.आयुष्य ।
त्रीन्द्रिय जीवोमें 7 प्राणः 1.स्पर्शनेन्द्रिय 2.रसनेन्द्रिय 3.घ्राणेन्द्रिय 4.काय बल 5. वचन बल 6.श्वासोच्छवास 7.आयुष्य ।
चतुरिन्द्रिय जीवोमें 8 प्राणः- 1.स्पर्शनेन्द्रिय 2.रसनेन्द्रिय 3.घ्राणेन्द्रिय 4.चक्षुरिन्द्रिय 5.काय बल 6.वचन बल 7.श्वासोच्छवास 8.आयुष्य ।
प्रश्न-117 विक्लेन्द्रिय जीवों के कितनी योनियाँ होती है ?
जवाब- 117 1. द्वीन्द्रिय की - दो लाख
2. त्रीन्द्रिय की - दो लाख
3. चतुरिन्द्रिय की - दो लाख कुल 6 लाख
प्रश्न-118 पंचेन्द्रिय जीवों के कितने भेद होते है ?
जवाब- 118 चार भेदः- 1.मनुष्य 2.देवता 3.तिर्यंच 4.नारकी ।
प्रश्न-119 नारकी किसे कहते है ?
जवाब- 119 नरकवासी जीवों को नारकी कहते है ।
प्रश्न-120 नरक किसे कहते है ?
जवाब- 120 जीव के द्वारा किये गये बुरे-पापकारी कार्य, हिंसा, महारंभ आदि के कारण जो कर्मबंधन होता है, उनके परिणाम स्वरुप अतिशय दुःख भोगने के स्थान को नरक कहते है ।
प्रश्न-121 नरक किस लोक में स्थित है ?
जवाब- 121 अधोलोक (मर्त्यलोक) में ।
प्रश्न-122 नरक कितने है ?
जवाब- 122 सात ।
प्रश्न-123 सात नरक पृथ्वीओं के क्या नाम है ?
जवाब- 123 1.रत्नप्रभा 2.शर्कराप्रभा 3.वालुकाप्रभा 4.पंकप्रभा 5.धूमप्रभा 6.तमःप्रभा 7.तमस्तमः प्रभा ।
प्रश्न-124 सातों पृथिविओं के नामकरण की विशेषता बताओ ?
जवाब- 124 प्रथम रत्नप्रभा नरकमें रत्नों की, दूसरी शर्कराप्रभा नरकमें कंकर की, तीसरी वालुकाप्रभा नरकमें रेती-मिट्टी की, चौथी पंकप्रभा नरकमें पंक-कीचड की, पांचवी धूमप्रभा नरक में धुएं की, छट्ठी तमःप्रभा नरकमें अंधकार की, सातवीं तमस्तमः प्रभा नरकमें गाढे-घने अंधकारकी प्रधानता-बहुलता होती है । अतः इस प्रकार नरकों का नामकरण किया गया ।
प्रश्न-125 नारकी जीवों के रहने के स्थान को क्या कहते है ?
जवाब- 125 नरकावास ।
प्रश्न-126 प्रत्येक नरकमें कितने कितने नरकावास है
?
जवाब- 126 पहली नरक में तीस लाख, दूसरी नरक में पच्चीस लाख, तीसरी नरक में पन्द्रह लाख, चौथी नरक में दस लाख, पांचवीं नरक में तीन लाख, छट्ठी नरक में निन्यान्वें हजार नौ सौ पिच्यानवें, सातवीं नरक में पांच नरकावास है । इस प्रकार सातों नरको में कुल चौराशी लाख नरकावास हैं ।
प्रश्न-127 प्रथम नरक में कौनसा नरकावास है ? वह कितने योजन प्रमाण का है ?
जवाब- 127 प्रथम नरक में सीमन्तक नामक नरकावास हैं जो पैंतालीस लाख योजन प्रमाण का है ।
प्रश्न-128 सबसे बडा नरकावास कौनसा है ?
जवाब- 128 पहली नरक में स्थित सीमन्तक नामक नरकावास है ।
प्रश्न-129 सबसे छोटा नरकावास कौनसा है ?
जवाब- 129 सातवीं नरक में स्थित अप्रतिष्ठान नाम का नरकावास है ।
प्रश्न-130 नरक और नारकी में क्या अंतर है ?
जवाब- 130 कठोर पाप कर्म करने वाले जीव जिन स्थानों पर उन कर्मों का अशुभ फल भोगने के लिए पैदा होते हैं, उसे नरक कहते हैं । नरक स्थान है और उस स्थान विशेष में रहने वाले जीवों को नारकी कहा जाता है ।
प्रश्न-131 सातों नरकों के बीच बीच में क्या है ?
जवाब- 131 प्रथम रत्नप्रभा नरक भूमि के नीचे बीस हजार योजन तक घनोदधि है । उसके नीचे असंख्यात योजन तक घनवात है । घनवात के नीचे असंख्यात योजन तक तनवात है । तनवात के नीचे असंख्यात योजन तक आकाश है । उसके नीचे दूसरा नरक है । प्रत्येक दो नरक भूमि के बीच इसी तरह घनोदधि, घनवात, तनवात, आकाश है ।
प्रश्न-132 सातवीं नरक के नीचे क्या है ?
जवाब- 132 सातवीं नरक के नीचे बीस हजार योजन तक घनोदधि है । घनोदधि के नीचे असंख्यात योजन तक घनवात है । घनवात के नीचे अंख्यात योजन तक तनवात है । तनवात के नीचे असंख्यात योजन तक लोकाकाश है । और उसके नीचे अनन्त अलोकाकाश है ।
प्रश्न-133 नारकी जीव कितने प्रकारके होते है ?
जवाब- 133 लम्बाई, चौडाई, आयुष्य के आधार पर नारकी जीव अनेक प्रकार के होते है पर द्रष्टी के आधार पर नारकी जीव दो प्रकार के होते हैः- 1. सम्यग्द्रष्टि नारकी 2. मिथ्याद्रष्टि नारकी ।
प्रश्न-134 नरकवासो का विस्तार कैसा है ?
जवाब- 134 कोइ ऋद्धि संपन्न महान् देव तीन चुटकी बजाने जितने समय में एक लाख योजन लम्बे और एक लाख योजन चौडे जम्बूद्विप की इक्किस बार प्रदक्षिणा दे सकता है । इतनी महान् शक्ति वाले देव को भी एक नरकावास पूर्ण वेग से पार करने में एक मास से यावत् छह मास का वक्त लग जाता है । सातवीं नरकके अप्रतिष्ठान नरकावास का अन्त छह मास में प्राप्त होता है । अन्य सीमन्तक आदि नरकावासों को पार करने में इससे भी ज्यादा समय लगता है ।
प्रश्न-135 नरकमें कितने प्रकारकी वेदनाएँ होती है
?
जवाब- 135 तीन प्रकारकीः- 1.क्षेत्र-स्वभावजन्य 2.परस्परजन्य 3.परमाधामी देव जन्य।
प्रश्न-136 क्षेत्र स्वभाव जन्य वेदना के स्वरुप को स्पष्ट कीजिए ?
जवाब- 136 1. नारकी जीव प्रतिपल खतरनाक सर्दी का अनुभव करते है । वहाँ इतनी ज्यादा शीतलता होती है कि उन नारकी जीवों को भयंकर शीत ऋतु में यदि हिमालय पर्वत की चोटी पर निर्वस्त्र लेटाया जाये तो भी वे आनंद पूर्वक सो जाये ।
2. नरकमें असह्य उष्णता होती हैं । उन नारकी जीवों को यदि मनुष्य लोकमें आग के धधकते अंगारो के मध्य रखा जाये तो भी वे आनंद और सुख का अनुभव करें और निद्राधीन हो जाये ।
3. नारकी जीवों को प्रतिपल इतनी ज्यादा भूख सताती है कि संसार का सारा भोज्य पदार्थ उन्हें दिये जाये तो भी तृप्ति का अहसास न हो पर उनको खाने के लिए नरक में अन्न का एक दाना भी प्राप्त नहीं होता हैं ।
4. नरकी जीवों को इतनी ज्यादा प्यास लगती है कि संसार का सारा जल अगर उन्हें पिलाया जाये तो भी शांति की अनुभूति न हो । वे हर समय प्यास के कारण तडपते है पर पीने के लिये पानी की एक बूंद भी नसीब नही होती है ।
5. नारकी जीव हर समय शोक, संताप और दुःख का अनुभव करते है ।
6. वे परमाधामी देवो की यातनाओं से प्रतिपल भयभीत रहते है । वहाँ उन्हें अभय देने वाला कोइ नही होता है ।
7. वे परमाधामी देवो के वशमें ही होते है । कभी वे भागकर छिप जातें है तो परमाधामी देव तुरन्त खोजकर उन्हें मरणान्तिक उपसर्ग देते है ।
8. उन्हें इतनी तेज खुजली आती है कि छुरे की तीक्ष्ण धार से भी शांत नही हो । वहाँ खुजली मिटाने का कोई उपाय नहीं होता है । खुजलाने से खुजली उत्तरोत्तर बढती जाती है ।
9. हर समय वे बुखार से पीडित रहते हैं । उनका शरीर अंगारो की भाँति दहकता रहता है ।
10. नारकी जीवों के शरीर की दुर्गन्ध मृत गाय आदि के कलेवर से भी कई गुणा अधिक होती है । उनका स्पर्श बिच्छु के डंक, अंगारा, ज्वाला से भी अधिक कष्ट देने वाला होता है ।
11. नारकी जीवों की शारीरिक संरचना अत्यन्त भयावह होती है । उनकी आकृति दिखने में बडी डरावनी होती है । उस रौद्र, खूंखार रुप को देख ले तो डर के मारे थर-थर कांपने लगे । शरीर अत्यन्त कठोर होने से अस्पर्शनीय होता है ।
12. उनके रहने का स्थान भी अत्यन्त भयानक होता है । वे मल-मूत्र से भरे हुए दुर्गंन्धित स्थान पर रहते हैं । चारों तरफ मांस-हड्डीयों का ढेर लगा हुआ होता है । उनकी स्थिति बडी दयनीय होती है । परवश होने से वे हर वक्त डरावनी आवाज निकालते रहते है ।
प्रश्न-137 किस किस नरक में उष्ण और शीत वेदना होती है ?
जवाब- 137 पहली तीन नरकोमें उष्ण वेदना, चौथी में उष्ण-शीत वेदना, पांचवीं में शीत-उष्ण वेदना, और छट्टी-सातवीं नरक में शीत वेदना होती हैं । ये उत्तरोत्तर तीव्र एवं अधिक होती है ।
प्रश्न-138 परस्परकृत वेदना किसे कहते है ?
जवाब- 138 नारकी जीवों का आपस में सिंह-बकरी और सांप-नेवला की भांति जन्म से वैर एवं द्वेष भाव होता है । वे एक दूसरे को देखकर कुत्तों की तरह आपस में लडते हैं, काटते हैं । परमाधामी देव मल्लों की तरह उन्हें आपस में लडाते है ।
प्रश्न-139 नारकी जीवों को यातना-दुःख कौनसे देव देते है ?
जवाब- 139 परमाधामी ।
प्रश्न-140 परमाधामी देवो के कितने भेद होते है ?
जवाब- 140 पन्द्रह भेदः- 1.अम्ब 2.अम्बरिश 3.श्याम 4.शबल 5.रुद्र 6.उपरुद्र 7.काल 8.महाकाल 9.असिपन्न 10.वण 11.कुंभी 12.वालुका 13.वैतरणी 14.खरस्वर 15.महाघोष ।
प्रश्न-141 परमाधामी देव कौनसे कार्य करते है ?
जवाब- 141 1.अम्ब- ये देव नारकी जीवों को पांच सौ योजन ऊपर तक आकाश में उछालते है । नीचे गिराते है ।
2.अम्बरीश- तीक्ष्ण शस्त्रोंसे नारकी जीवों के शरीर के छोटे छोटे टुकडे करते है ।
3.श्याम- नारकी जीवों को रस्सी, लातों, घूंसों से पीटते हैं । महाकष्टकारी स्थानों में पटकते है ।
4.शबल- नारकी जीवों की शरीरकी आंते, नसें,कलेजे आदि को बहार निकालते है।
5.रौद्र- नारकी जीवों को भाले आदि से पिरोते है ।
6.महारौद्र- नारकी जीवों के अंगोपांगों को क्षत-विक्षत करते है ।
7.काल- नारकी जीवों को कढाईमें पकाते है ।
8.महाकाल- नारकी जीवों के मांस के टुकडे-टुकडे करते है । उन्हें जबरदस्ती मांस के टुकडे खिलाते हैं ।
9.असिपत्र- नारकी जीवों पर असि-तलवार के समान तेज धार वाले पत्ते गिराते हैं । तिल के आकारमें शरीर के छोटे छोटे टुकडे करते हैं ।
10.धनुष(वण)- विक्रिया से निर्मित धनुष से बाण चलाकर नारकी जीवों के कान, नाक आदि शारीरिक अंग काट डालते है ।
11.कुंभी- असि पत्रो के द्वारा काटे हुए नारकी जीवों को कुम्भियों में पकाते है ।
12.वालुका- वज्र के समान आकार वाली उष्ण रेत में नारकी जीवों को चनों की भांति भुंजते है ।
13.वैतरणी- रुधिर, ताम्बे, सीसे इत्यादि गर्म पदार्थो से उबलती हुई वैतरणी नदीमें नारकी जीवों को फैंककर तैरने के लिये मजबुर करते हैं ।
14.खरस्वर- नारकी जीवों को शाल्मली वृक्षो के उपर चढाकर कठोर स्वर करते हुए उन्हें खींचते हैं ।
15.महाघोष- भागते हुए नारकी जीवों को पशुओं की भाँति चार दीवारी में बंद कर देते हैं ।
प्रश्न- 142 किस किस नरकमें कौनसी वेदना होती है ?
जवाब- 142 प्रथम तीन नरकोमें परमाधामी देव जन्य वेदना, सातों नरकोमें परस्परजन्य वेदना एवं क्षेत्र जन्य वेदना होती है ।
प्रश्न- 143 नारकी जीवों का जन्म किसमें होता है
?
जवाब- 143 नारकी जीवों का जन्म कुंभी में होता है । जिसका मुँह संकडा एवं पेट चौडा होता है ।
प्रश्न- 144 नारकी जीव कब-कब सुखका अनुभव करते है ?
जवाब- 144 1. तीर्थंकर परमात्मा के पांचो कल्याणकों के शुभ अवसर पर नारकी जीव कुछ समय के लिये सुख का अनुभव करते है ।
2. अल्पकाल के लिये शाता वेदनीय कर्म के उदय से भी नारकी जीव शांति का अहसास करते है ।
3. किसी मित्र देव की सहायता से भी कुछ पलों के लिए सुख प्राप्त करता है पर वह भी तीसरी नरक तक ही हो सकता है ।
4. तीर्थंकर आदि महापुरुषों के स्मरण, वंदन के समय शुभ अध्यवसाय होने से अल्पकालीन सुखानुभूति होती है ।
प्रश्न- 145 तीर्थंकर परमात्मा के पांचों कल्याणकों के अवसर पर नरक में कैसा प्रकाश होता हैं ?
जवाब- 145 पहली नरक में सूर्य जैसा, दूसरी नरक में मेघाच्छादित सूर्य जैसा, तीसरी नरक में चन्द्र जैसा, चौथी नरकमें मेघाच्छादित चन्द्र जैसा, पांचवीं नरक में ग्रह जैसा, छट्ठी नरक में नक्षत्र जैसा, सातवीं नरक में तारे जैसा अल्पकालिन प्रकाश होता है ।
प्रश्न- 146 नारकी जीवों के शरीर की ऊंचाई कितनी होती हैं ?
जवाब- 146 प्रथम नरक 7 धनुष 78 अंगुल
द्वितीय नरक 15 धनुष 60 अंगुल
तृतीय नरक 31 धनुष 24 अंगुल
चतुर्थ नरक 62 धनुष 48 अंगुल
पंचम नरक 125 धनुष
षष्ठम नरक 250 धनुष
सप्तम नरक 500 धनुष
उपरोक्त पर्याप्ता नारकी जीवों की अवगाहना है । अपर्याप्त नारकी जीवों की जघन्य एवं उत्कृष्ट रुप से अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी ऊँचाई होती है ।
प्रश्न- 147 नारकी जीवों का आयुष्य कितना होता हैं ?
जवाब- 147
पर्याप्ता नारकी जघन्य उत्कृष्ट
प्रथम नरक 10,000 वर्ष 1 सागरोपम
द्वितीय नरक 1 सागरोपम 3 सागरोपम
तृतीय नरक 3 सागरोपम 7 सागरोपम
चतुर्थ नरक 7 सागरोपम 10 सागरोपम
पंचम नरक 10 सागरोपम 17 सागरोपम
षष्ठम नरक 17 सागरोपम 22 सागरोपम
सप्तम नरक 22 सागरोपम 33 सागरोपम
प्रश्न- 148 क्या नारकी जीव मरकर पुनः नरक में उत्पन्न हो सकता है ?
जवाब- 148 नारकी जीव मरकर पुनः नरक में नहीं जा सकता हैं । बीच में मनुष्य या तिर्यंच का भव करके ही नरक में जा सकता है ।
प्रश्न- 149 नारकी जीवों में कितने प्राण होते है ?
जवाब- 149 दसों ही प्राण होते है ।
प्रश्न- 150 नारकी जीवों की कितनी योनियाँ होती हैं ?
जवाब- 150 चार लाख योनियाँ ।
प्रश्न- 151 नरक आयुष्य बंध के कारण बताइए ?
जवाब- 151 प्रमुख चार कारणः-
1. महारंभ करना
2. महापरिग्रह करना
3. परस्त्री-वेश्यागमन एवं शील का हरण करना
4. पंचेन्द्रिय प्राणी का वध एवं मांसाहार का सेवन करना ।
अन्य कारण- 1.रात्रिभोजन 2.अनन्तकाय भक्षण 3.मद्यपान, शहद का सेवन 4.तीव्र क्रोध आदि कषाय करना 5.रौद्र ध्यान 6.पाप कार्यमें रुचि आदि ।
प्रश्न- 152 नरक में कौन कौन जाते है ?
जवाब- 152 संख्याता वर्ष के आयुष्य वाले पंचेन्द्रिय मनुष्य एवं तिर्यंच ही मरकर नरक में जाते हैं ।
प्रश्न- 153 प्रथम नरक तक कौन कौन जाते है ?
जवाब- 153 जघन्य दस हजार तथा उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यात्वें भाग की आयुष्य वाले संमूर्च्छिम तिर्यंच प्राणी ।
प्रश्न- 154 दूसरी नरक तक कौन कौन जाते है ?
जवाब- 154 गर्भज भुजपरिसर्प ।
प्रश्न- 155 तीसरी नरक तक कौन कौन जाते है ?
जवाब- 155 गर्भज खेचर ।
प्रश्न- 156 चौथी नरक तक कौन कौन जाते है ?
जवाब- 156 गर्भज चतुष्पद ।
प्रश्न- 157 पांचवीं नरक तक कौन कौन जाते है ?
जवाब- 157 गर्भज उरपरिसर्प ।
प्रश्न- 158 छट्ठी नरक तक कौन कौन जाते है ?
जवाब- 158 स्त्री ।
प्रश्न- 159 सातवीं नरक तक कौन कौन जाते है ?
जवाब- 159 गर्भज मनुष्य एवं गर्भज जलचर ।
प्रश्न- 160 कौन कौन मरकर नियमतः नरक में ही जाते है ?
जवाब- 160 वासुदेव एवं प्रतिवासुदेव मरकर नरक में ही जाते हैं । चक्रवर्ती दीक्षा न ले तो 7 वीं नरक में ही जाता है ।
प्रश्न- 161 सातवीं नरक का जीव नियमतः किस गति में जाता है ?
जवाब- 161 तिर्यंच गति में ।
प्रश्न- 162 नरक से आने वाले जीव क्या-क्या हो सकते है ?
जवाब- 162 1. प्रथम नरक से आने वाला जीव ही चक्रवर्ती हो सकता हैं, शेष नरको से नहीं ।
2. प्रथम दो नरको से आने वाला जीव ही वासुदेव या बलदेव हो सकता है, शेष नरकों से नहीं ।
3. प्रथम तीन नरकों से आने वाला जीव ही तीर्थंकर हो सकता है,
शेष नरको से नहीं ।
4. प्रथम चार नरकों से आने वाला जीव ही केवली हो सकता है,
शेष नरको से नहीं ।
5. प्रथम पांच नरकों से आने वाला जीव ही साधु हो सकता है,
शेष नरको से नहीं ।
6. प्रथम छह नरकों से आने वाला जीव ही श्रावक हो सकता है,
शेष नरको से नहीं ।
7. सातों ही नरकों से आने वाला जीव सम्यक्तवी हो सकता है ।
प्रश्न- 163 नारकी जीवों के कितने भेद होते है ?
जवाब- 163 सातों नरक के नारकी जीव पर्याप्त एवं अपर्याप्त दोनो होते हैं, अतः नारकी जीवों के कुल चौदह भेद होते है ।
प्रश्न- 164 किन कारणों से नारकी मनुष्य लोक में नहीं आ सकते है ?
जवाब-164 चार कारणो सेः- 1.अत्यधिक दुःख होने से 2.नरकपाल के रोकने से 3.नरकायु के समाप्त नही होने से 4.नरक-कर्मो का क्षय नही होने से ।
प्रश्न- 165 समकित युक्त जीव कितनी नरक तक जा सकता है ?
जवाब- 165 प्रथम छह नरकों में जीव समकित सहित जा सकता है । सातवीं नरक में समकित का वमन करके अर्थात् मिथ्या दर्शन सहित ही जाता है ।
प्रश्न- 166 वर्तमान में जीव किस नरक तक जा सकता है ?
जवाब- 166 वर्तमान में जीव छेवट्ठु संघयण होने से दूसरी नरक तक जा सकता है ।
प्रश्न- 167 पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों के कितने भेद होते है ?
जवाब- 167 तीन भेदः- 1.जलचर 2.स्थलचर 3.खेचर ।
प्रश्न- 168 जलचर किसे कहते है ?
जवाब- 168 जल में रहने वाले जीवों को जलचर कहते है ।
प्रश्न- 169 स्थलचर किसे कहते है ?
जवाब- 169 जमीन-भूमि पर रहने वाले जीवों को स्थलचर कहते है ।
प्रश्न- 170 खेचर किसे कहते है ?
जवाब- 170 आकाश में उडने वाले जीवों को खेचर कहते है ।
प्रश्न- 171 जलचर जीवों के कुछ उदाहरण दीजिये ?
जवाब- 171 सूंस, कछुआ, घडीयाल मछली,मगरमच्छ आदि जलमें रहने वाले जीव हैं।
प्रश्न- 172 शास्त्रो में कितने आकार के जलचर प्राणी बताये है ?
जवाब- 172 चुडी एवं नलिया के अतिरिक्त समस्त आकारों में जलचर प्राणी होते है ।
प्रश्न- 173 स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचो के कितने भेद होते है ?
जवाब- 173 तीन भेदः- 1.उरपरिसर्प 2.भुजपरिसर्प 3.चतुष्पद ।
प्रश्न- 174 उरपरिसर्प किसे कहते है ?
जवाब- 174 पेट-उदर के बल पर चलने वाले प्राणियों को उरपरिसर्प कहते है ।
प्रश्न- 175 भुजपरिसर्प किसे कहते है ?
जवाब- 175 भुजाओं-हाथों के बल पर चलने वाले प्राणियों को भुजपरिसर्प कहते है ।
प्रश्न- 176 चतुष्पद किसे कहते है ?
जवाब- 176 चार पाँव वाले प्राणियों को चतुष्पद कहते है ।
प्रश्न- 177 उरपरिसर्प प्राणियों के कुछ उदाहरण दीजिये ?
जवाब- 177 सांप, अजगर आदि ।
प्रश्न- 178 भुजपरिसर्प प्राणियों के कुछ उदाहरण दीजिये ?
जवाब- 178 चुहा, बंदर, लंगुर, छिपकली, चन्दनगोह आदि ।
प्रश्न- 179 चतुष्पद प्राणियों के कुछ उदाहरण दीजिये ?
जवाब- 179 हाथी, घोडा, गधा, बैल, गाय, कुत्ता, बकरी, बिल्ली, जिराफ आदि ।
प्रश्न- 180 पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की अवगाहना कितनी होती है ?
जवाब- 180
पर्याप्ता पंचेन्द्रिय तिर्यंच जघन्य उत्कृष्ट
1 संमूर्च्छिम जलचर अंगुल का असंख्यातवां भाग एक हजार योजन
2 गर्भज जलचर अंगुल का असंख्यातवां भाग एक हजार योजन
3 संमूर्च्छिम चतुष्पद अंगुल का असंख्यातवां भाग दो से नौ कोस
4 गर्भज चतुष्पद अंगुल का असंख्यातवां भाग छह कोस
5 संमूर्च्छिम उरपरिसर्प अंगुल का असंख्यातवां भाग दो से नौ योजन
6 गर्भज उरपरिसर्प अंगुल का असंख्यातवां भाग एक हजार योजन
7 संमूर्च्छिम भुजपरिसर्प अंगुल का असंख्यातवां भाग दो से नौ धनुष्य
8 गर्भज भुजपरिसर्प अंगुल का असंख्यातवां भाग दो से नौ कोस
9 संमूर्च्छिम खेचर अंगुल का असंख्यातवां भाग दो से नौ धनुष्य
10 गर्भज खेचर अंगुल का असंख्यातवां भाग दो से नौ धनुष्य
पंचेन्द्रिय अपर्याप्ता गर्भज एवं संमूर्छिम तिर्यंचो की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी होती है ।
प्रश्न- 181 पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों का आयुष्य कितना होता है ?
जवाब- 181
पंचेन्द्रिय तिर्यंच जघन्य उत्कृष्ट
1 संमूर्च्छिम जलचर अन्तर्मुहूर्त करोड पूर्व
2 गर्भज जलचर अन्तर्मुहूर्त करोड पूर्व
3 संमूर्च्छिम चतुष्पद अन्तर्मुहूर्त चौरासी हजार वर्ष
4 गर्भज चतुष्पद अन्तर्मुहूर्त तीन पल्योपम
5 संमूर्च्छिम उरपरिसर्प अन्तर्मुहूर्त तिरपन हजार वर्ष
6 गर्भज उरपरिसर्प अन्तर्मुहूर्त करोड पूर्व
7 संमूर्च्छिम भुजपरिसर्प अन्तर्मुहूर्त बयालीस हजार वर्ष
8 गर्भज भुजपरिसर्प अन्तर्मुहूर्त करोड पूर्व
9 संमूर्च्छिम खेचर अन्तर्मुहूर्त बहत्तर हजार वर्ष
10 गर्भज खेचर अन्तर्मुहूर्त पल्योपम का असंख्यातवां भाग
प्रश्न- 182 पंचेन्द्रिय तिर्यंचो की स्वकाय स्थिति कितनी होती है ?
जवाब- 182 सात या आठ भव ।
प्रश्न- 183 पंचेन्द्रिय तिर्यंच में कितने प्राण पाये जाते है ?
जवाब- 183 संमूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों में पांच इन्द्रियाँ (स्पर्श-रस-घ्राण-चक्षु-श्रोत) दो बल (वचन-काय बल), श्वासोच्छवास और आयुष्य रुप नौ प्राण पाये जाते है और गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचो में इन नव प्राणों के अतिरिक्त दसवां मनोबल प्राण भी पाया जाता हैं ।
प्रश्न- 184 पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की कितनी योनियाँ होती हैं ?
जवाब- 184 चार लाख योनियाँ ।
प्रश्न- 185 जलचर जीवों के कितने भेद होते है ?
जवाब- 185 जलचर जीवों के संमूर्च्छिम एवं गर्भज रुप दो भेद होते हैं । ये दोनो पर्याप्ता-अपर्याप्ता की अपेक्षा से कुल चार भेद होते है ।
प्रश्न- 186 स्थलचर तिर्यंच जीवों के कितने भेद होते है ?
जवाब- 186 चतुष्पद, उरपरिसर्प एवं भुजपरिसर्प के संमूर्च्छिम एवं गर्भज की अपेक्षा छह भेद होते है । ये छह भेद पर्याप्त और अपर्याप्ता की अपेक्षा से कुल बारह भेद होते है ।
प्रश्न- 187 खेचर तिर्यंच जीवों के कितने भेद होते है
?
जवाब- 187 संमूर्च्छिम एवं गर्भज दोनों पर्याप्ता एवं अपर्याप्ता होने से कुल चार भेद होते है ।
प्रश्न- 188 पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों के कुल कितने भेद होते है ?
जवाब- 188 बीस भेद ।
प्रश्न- 189 असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच एक मुहूर्त में उत्कृष्ट कितने भव करता है ?
जवाब- 189 24 भव ।
प्रश्न- 190 पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों के बीस भेदों में से गर्भज-संमूर्च्छिम के कितने कितने भेद होते है ?
जवाब- 190 दस भेद संमूर्च्छिम के और दस भेद गर्भज के होते है ।
प्रश्न- 191 मनुष्यों के मुख्य कितने भेद होते है ?
जवाब- 191 तीन भेदः- 1.कर्मभूमिज 2.अकर्मभूमिज 3.अन्तर्द्वीपज ।
प्रश्न- 192 कर्मभूमि किसे कहते है ?
जवाब- 192 जिस भूमि में असि-मसि और कृषि का कार्य होता है, उसे कर्म भूमि कहते है ।
प्रश्न- 193 असि-मसि और कृषि से क्या तात्पर्य है ?
जवाब- 193 1. असि – अस्त्र, शस्त्रादि का कार्य ।
2. मसि – पठन, लेखन का कार्य ।
3. कृषि – खेती, व्यापार का कार्य ।
प्रश्न- 194 अकर्मभूमि किसे कहते है ?
जवाब- 194 जिस भूमि में असि-मसि-कृषि का कार्य नहीं होता है, उसे अकर्मभूमि कहते है ।
प्रश्न- 195 अन्तर्द्वीप किसे कहते है ?
जवाब- 195 जिसके चारो तरफ जल हो, उसे अन्तर्द्वीप कहते है ।
प्रश्न- 196 कर्मभूमियों के कितने भेद होते है ?
जवाब- 196 पन्द्रह भेदः- पांच भरत, पांच महाविदेह, पांच ऐरावत ।
प्रश्न- 197 अकर्मभूमियों के कितने भेद होते है ?
जवाब- 197 तीस भेदः- पांच हिमवन्त, पांच हिरण्यवंत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यक्, पांच देवकुरु, पांच उत्तरकुरु ।
प्रश्न- 198 अन्तर्द्वीप कितने है ?
जवाब- 198 छप्पन ।
प्रश्न- 199 छप्पन अन्तर्द्वीप कहाँ पर है ?
जवाब- 199 भरत क्षेत्र की उत्तर दिशा में हिमवन्त नामक पर्वत है और ऐरावत क्षेत्र की उत्तर दिशा में शिखरी नामक पर्वत है । दोनों पर्वत पूर्व एवं पश्चिम दिशा में लवण समुद्र तक फैले हुए हैं । दोनों पूर्व एवं दोनो पश्चिम दिशाओं (प्रत्येक दिशा) में दो-दो दंष्ट्राकार भूमियाँ है । इस प्रकार कुल आठ दंष्ट्राकार भूमियाँ हुई । प्रत्येक दंष्ट्रा में सात-सात अन्तर्द्वीप स्थित हैं । इस प्रकार कुल छप्पन अन्तर्द्वीप हुए । भरत क्षेत्र की उत्तर दिशा में जो अट्ठावीस अन्तर्द्वीप हैं, उसी नाम के अट्ठावीस अन्तर्द्वीप ऐरावत क्षेत्र की उत्तर दिशा में स्थित हैं ।
प्रश्न- 200 मनुष्य की अवगाहना कितनी होती है
?
जवाब- 200 पांच भरत एवं पांच ऐरावत कर्मभूमियों में अवसर्पिणी काल में उत्कृष्ट अवगाहना ।
1. पहले आरे में - 3 गाऊ
2. दूसरे आरे में - 2 गाऊ
3. तीसरे आरे में - 1 गाऊ
4. चौथे आरे में - 500 धनुष्य
5. पांचवें आरे में - 7 हाथ
6. छट्ठे आरे में - 2 हाथ
पांच भरत एवं पांच ऐरावत कर्मभूमियों में उत्सर्पिणी काल में उत्कृष्ट अवगाहना ।
1. पहले आरे में - 2 हाथ
2. दूसरे आरे में - 7 हाथ
3. तीसरे आरे में - 500 धनुष्य
4. चौथे आरे में - 1 गाऊ
5. पांचवें आरे में - 2 गाऊ
6. छट्ठे आरे में - 3 गाऊ
पांच महाविदेह क्षेत्र के मनुष्यों की उत्कृष्ट अवगाहना 500 धनुष्य प्रमाण की होती है ।
पांच देवकुरु एवं पांच उत्तरकुरु के मनुष्यों की उत्कृष्ट अवगाहना तीन गाऊ की होती है ।
पांच हरिवर्ष एवं पांच रम्यक् के मनुष्यों की उत्कृष्ट अवगाहना दो गाऊ की होती है ।
पांच हिमवन्त एवं पांच हिरण्यवंत के मनुष्यों की उत्कृष्ट अवगाहना एक गाऊ की होती है ।
छप्पन अन्तर्द्वीप के मनुष्यों की उत्कृष्ट अवगाहना 800 धनुष्य की होती है ।
ये सारी अवगाहना गर्भज पर्याप्ता मनुष्यों की कही गयी है ।
गर्भज अपर्याप्ता मनुष्यों की, संमूर्च्छिम मनुष्यो की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी होती है ।


BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
LIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/
THANKS FOR VISITING.

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.