ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

*आयुष्य कर्म...*

Image may contain: 1 person, smiling

*आयुष्य कर्म...*

अशुभ भाव.....
अशुभ सोच.....
अशुभ वचन....
अशुभ कार्य....
*सावधान........*

जीवन में हमारे, कर्म का बंध अविरत चलता रहता है , मन द्वारा ,वचन या काया द्वारा। विविध कर्म बांधते रहते हैं, परंतु, एक आयुष्य कर्म है जो एक ही बार बंधता है।

काल का छोटे से छोटा भाग समय है।
आत्मा जो समय पर कर्म बांधती है, वो ही समय उस कर्म की ताकत, उसके फल, सब तय हो जाता है।
आत्मा, जैसे भाव से कर्म बांधती है, उसके ही आधार से उसका फल आदि तय हो जाता है। 

यद्यपि कर्म उपार्जन के बाद भी कुछ कर्म का बोज हम धर्म पालन से और प्रायश्चित द्वारा उतार सकते हैं परंतु कुछ निकाचित कर्म का बंध होता है वो अवश्य भुगतने ही पड़ते हैं।

इसलिए ये ध्यान रखना है कि एक मिनिट के अशुभ विचार से अनंतानंत कर्मों का ढग हो जा सकता है। परिणाम यह आता है कि असंख्य बरसो के लिए हम दुःख की परंपरा खड़ी कर देते है।

यह सब न हो इसलिए हमें सावधान होना है।

श्रेणिक महाराजा जब धर्म को नही समझे थे , तब वो शिकार के शौकीन थे। एक दिन एक ही तीर से उसने गर्भवती हरिणी का शिकार किया। एक साथ दो जीव की हत्या। उसके उपरांत अपनी निशानेबाज़ी का गर्व के साथ आनंद किया। 
और!!!!उसी ही समय उसका आयुष्य बंध हुआ। 
८४००० वर्ष की नरक की पीड़ा निश्चित हो गयी।
हर पल दुःख ही दुःख, वेदना का पार नही, सुख का अंश तक नही।

हम बिना कारण किसी को दुःख देंगे तो क्या हमको दुःख नही आएगा??? 
प्रकृति के न्याय में कोई फर्क नहीं आता, कोई भी कर्म , शुभ या अशुभ,बिना फल के नहीं छूट सकता।

आयुष्य का कोई पता नहीं,कब समाप्त हो जाय और कर्म से बचने का कोई अवसर ही शायद हमे न दे ।
इसलिए कर्म के बंध का हर पल ध्यान रखना,ये ही हमारे हित मे है।

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
LIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/
THANKS FOR VISITING.

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.