मन की चंचलता को,
तिलाजंली देकर,
प्रभु चरणों में अर्पित,
तन, मन, धन, जीवन।
जाना पड़ता है इक दिन,
इस दुनिया को तजकर,
फिर क्यों दुविधा में,
उलझा है ये पागल मन।
संत भगवन् कहते है, सात ग्रहों से बलवान अगर कोई है तो वह आंठवा ग्रह परिग्रह है। परिग्रह का जाल संसार में परिभ्रमण करने वाला है, इससे जो अलिप्त रहा वह संत होगया। महावीर, राम, बुद्ध हो गया।
श्री रामकृष्ण परम हंस को उनके एक भक्त ने मूल्यवान वस्त्र भेंट किया, उन्होंने बहुत प्रसन्न व सहजभाव से वस्त्र को स्वीकार कर लिया। उन्होंने वस्त्र को धारण किया किन्तु कुछ ही देर बाद उन्हें लगा कि वस्त्र का ध्यान बार बार उनके चित्त को एकाग्र नहीं होने दे रहा है। उठते बैठते सोते उन्हें वस्त्र का ध्यान सता रहा। उन्हें चिंतन किया वस्त्र अभी नया है इसलिए बाधक बन रहा है।
अगले दिन वे मंदिर गये और प्रभु के समक्ष साष्टांग नमस्कार करने लगे तो उन्हें पुन्ह: वस्त्र का ध्यान आया कि वस्त्र मैला हो जायेगा उनकी साधना, ध्यान, पूजा अर्चना सभी में वस्त्र बाधक बनने लगा। तुरंत ही उठकर उन्होंने वस्त्र को फेक दिया और कहने लगे यह यह वस्त्र का छोटा सा परिग्रह प्रभु मिलन मे मेरी साधना में बाधक बन रहा है। चित्त को चंचल कर रहा है इसमें आसक्ति बेकार है और वे वस्त्र का परिग्रह उतार कर तन और मन से परिग्रह रहित होकर ध्यान साधना में लीन हो गए। उन्होंने जीवन सार्थक कर लिया और वे सामान्य से संत हो गये।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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