ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

Jamnagar tirth Shree neminath Bhagwan

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श्री नेमिनाथजी तीर्थंकर प्रभु के सांसारिक अवस्था में जो बारात जा रही थी, उसके मांसाहार के लिए पशुओं को नही लाया गया था, पढ़िए इस पर्वचन में...
पूज्य गुरुदेव खरतर गच्छाधिपति श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की मंगल वाणी से...
चैबीस तीर्थंकरों का आन्तरिक जीवन एक जैसा है। बाह्य जीवन भले अलग-अलग हों। उनके माता पिता के नाम, जन्मभूमि, जन्म तिथि यह सब अलग होंगे। परन्तु उनके अन्तर में बहता हुआ ज्ञान का झरणा एक है। उसमें कोई भेद नहीं है। सभी तीर्थंकर तीन ज्ञान के साथ ही जन्म लेते हैं। सभी तीर्थंकर दीक्षा लेते ही है। सभी तीर्थंकरों को दीक्षा लेते ही चैथा ज्ञान हो जाता है। सभी तीर्थंकरों को घाती कर्म के बाद केवल ज्ञान प्राप्त होता है। सभी तीर्थंकर मोक्ष पधारते हैं।
चौबीस तीर्थंकरों का जीवन अपने आप में आदरणीय और अनुकरणीय है। पुरूषार्थ का परिणाम देखना हो तो हमें परमात्मा महावीर स्वामी का जीवन पढना चाहिये। कितने कर्मों का बंधन किया किन्तु उन्हें तोडने के लिये कितनी अनूठी साधना की।
द्वेष की परम्परा का इतिहास जानना हो तो हमें पार्श्वनाथ प्रभु का जीवन पढना चाहिये। कमठ और मरूभूति के मध्य जो वैर और शत्रुता की परम्परा चली और उस शत्रुता के कारण कमठ ने अपनी दुर्गति कर ली।
कर्म बंधन के परिणाम को समझना हो तो परमात्मा आदिनाथ का जीवन पढना चाहिये। उससे बोध होता है कि एक छोटा सा कर्म बंधन कितनी बडी सजा देता है। उन्होंने पूर्व भव में एक बैल के मुख पर छींका बांधा था कुछ पलों के लिये। परिणाम स्वरूप उनको चार सौ दिन तक आहार पानी कुछ नहीं मिला। उपवास करने पडे।
यदि राग की विशुद्ध परिणति देखनी हो तो हमें परमात्मा नेमिनाथ प्रभु के जीवन का अवलोकन करना चाहिये। वे भगवान् श्री कृष्ण के भ्राता थे। कहा जाता है कि जब वे शादी के लिये बारात के लिये जा रहे थे। उन सभी के लिये मांसाहार का भोजन बनाने के लिये पशुओं को बाडे में बांधा गया था। जिसे नेमिनाथ प्रभु ने छुडाये थे। नेमिनाथ प्रभु ने पशुओं को बंधन से मुक्त किया, यह बात बराबर है।
रन्तु उन पशुओं को मांसाहार के लिये नहीं बांधा गया था। नेमिनाथ प्रभु स्वयं अहिंसा के अवतार थे। उनके समधी भी अहिंसा के पुजारी थे। मांसाहार करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। परन्तु पशु शाम के समय अपने अपने घर लौट रहे थे। रास्ता वही राजमार्ग वाला था। इधर बारात का समय हो गया था। मुहूर्त टल न जाय इसलिये राजकर्मचारियों ने पशुओं को तब तक एक अस्थायी बाडे में डाल दिया, जब तक बारात राज महल में नहीं पहुॅच जाती। बाडे में डालने के कारण पशु भयभीत हो गये। उनके आर्त्तनाद को प्रभु नेमिनाथ ने सुना, और कहा कि पशुओं को थोडी देर के लिये भी बंधन में डालना हिंसा है। और उन्हें बंधन मुक्त कर दिया।
हम भी अपने जीवन में तीर्थंकर प्रभु के जीवन कथा से प्रेरणा लें और उनकी तरह मोक्ष को लक्ष्य बनाये।

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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