ANANTNATH BHAGAVAN - 14 TIRTHANKAR
Queen Suyasha Devi, wife of king Simhasen of Ayodhya, gave birth to an illustrious son on the thirteenth day of the dark half of the month of Vaishakh. During her pregnancy the queen dreamt of a very long strand of beads whose ends were not visible. The power and the glory of the king also increased manifold during this period. Accordingly the new born was named Anant (endless) Kumar.
After leading a normal life, first as a price and then as the king he became an ascetic along with one thousand other persons. He became an omniscient on the fourteenth day of the dark half of the month of Vaishakh under an Ashok tree. In his first discourse he elaborated the subject of the fundamentals-matter and life. He had fifty chief disciples including the senior most named Yash. Purushottam Vasudev and Suprabh Baldev reigned during his period of influence.
Bhagavan Anantnath got Nirvana at Sammetshikhar on the fifth day of the bright half of the month of Chaitra.
Pranaam Today Shri Anantnath Bhagvan Moksh Kalyanak
ANANT NATH Prabhu Naam Tamaaru ,Anant Goon Bhandaar
Amne Bhavjal Paar Utaar. Amne Bhavjal Paar Utaar..
TODAY
Ayodhya Tirth Mandan,
Mata Suyasha Devi,Pita Sinh Sen Nandan,
14 ma Tirthankar Shri Shri Shri ANANT NATH DADA Nu Moksh Kalyaanak Che..
50 Dhanush ni Kaaya ane 50 Gandhar na Swami Prabhu na Aatma nu Chyavan Thataaj Shatruo na Anant Bal Pan
Hanaai Gaya Hata.
Bolo Bolo Shri ANANT NATH SWAMI Bhagwan ki Jay Jay Jay
भगवान अनंतनाथ
जैन धर्म के चौदहवें तीर्थंकर
जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार अयोध्या में उन दिनों इक्ष्वाकु वंशी राजा
सिंहसेन का राज्य था। उनकी पत्नी का नाम सर्वयशा था। एक रात नींद में
महारानी सर्वयशा ने सोलह शुभ स्वप्न देखें, स्वप्न में हीरे-मोतियोंकी एक
माला देखी, जिसका कोई आदि या अंत उन्हें दृष्टिगोचर नहीं हुआ।
सर्वयशा ने देखा कि देवलोक से रत्नों की वर्षा हो रही है। इस स्वप्न के
बारे में उन्होंने राजा सिंहसेन को बताया तो वे समझ गए कि शीघ्र ही उनके
घर-आंगन में चौदहवें तीर्थंकर जन्म लेने वाले हैं। इस शुभ समाचार को
उन्होंने राज्य के लोगों सुनाया, तो उसे सुनकर पूरा राज्य में खुशी की
लहर दौड़ गई।तभी राजा सिंहसेन ने महारानी के साथ यह निर्णयकिया कि वे
अपने इस पुत्रका नाम अनंत रखेंगे।
इस तरह, चौदहवें तीर्थंकरअनंतनाथ का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी के दिन
हुआ। उनके जन्म के साथ हीराजा सिंहसेन का राज्य-विस्तार दिनोंदिन बढ़ने
लगा। सारी प्रजा धन-धान्य से संपन्न हो गई।
जब अनंत ने युवावस्था में पदार्पण किया तो परंपरानुसार राजसी वैभव के
साथ उनका शुभ विवाह किया गया। राजा सिंहसेन जब वृद्ध हुए तो उन्होंनेअपना
राज्यभार अनंतनाथ को सौंपकर स्वयं मुनि बन गए।
राजा अनंतनाथ बहुत ही दयालु और मैत्री भाव से परिपूर्ण थे। उन्होंने
अपने राज्य काल में अपनी प्रजा का संतान की भांति पालन किया। उनके इसी
व्यवहार और विचारों से प्रभावित होकर अनेक राजा-महाराजा उनके अनुयायी
बनते चले गए। राजा अनंतनाथ ने न्यायपूर्वक लाखों वर्ष तक राज्य किया।
अपने 30 लाख वर्ष के जीवन काल में राजा अनंतनाथ के लाखों अनुयायी बने।
उन्होंने सभी ओर घूम-घूमकर धर्मोपदेश देकर जनकल्याणकिया। फिर एक दिन एक
उल्कापात देखकर उन्हें संसार की नश्वरता का बोध हुआ और उन्होंने अपना
राजपाट अपने पुत्र अनंतविजय को सौंप कर स्वयं ने मुनि-दीक्षा ग्रहण की।
दो वर्ष के तप के पश्चात उन्हें चैत्र माह की अमावस्या को कैवल्य ज्ञान
प्राप्ति हुई और वे तीर्थंकर की भांति पूज्यनीय हो गए। चैत्र माह की
अमावस्या कोसम्मेदशिखर पर 6 हजार 100 मुनियों के साथ उन्हें भी निर्वाण
प्राप्त हुआ।
भगवान अनंतनाथ का अर्घ्य :
शुचि नीर चन्दन शालि तन्दुल, सुमन चरु दीवा धरा।
अरु धूप फल जुत अरघ करि, कर जोर जुग विनती करों।
जगपूज परम पुनीत मीत, अन्नत सन्त सुहावनों।
शिव कन्त वंत महन्त ध्यायो, भ्रन्त तंत नशावनों।
तीर्थंकर : १४. अनंतनाथ जी
स्वर्ग : प्रणता देवलोक
जन्मस्थान - अभिषेक : अयोध्या / सम्मेत शिखरजी
माता-पिता : सुयशा सिंहसेन
वर्ण : स्वर्णिम
चिह्न : सेही
ऊँचाई : ५० धनुष
आयु : ३०,००,००० वर्ष
वृक्ष : अशोका
परिचर आत्माएं : पाताल और अंकुशा या अनंतमति
पुरुष शिष्य - स्त्री शिष्य : जस
निर्वाण स्थल : समेत शिखर
૧૪ શ્રી અનંતનાથ સ્વામી..
(1) સમ્યક્ત્વ પામ્યા પછીના ભવ - ત્રણ.
(2) જન્મ અને દિક્ષા સ્થળ - અયોધ્યા.
(3) તીર્થંકર નામકર્મ - પદ્મરથ .
(4) દેવલોકનો અંતિમ ભવ -પ્રાણત દેવલોક.
(5) ચ્યવન કલ્યાણક- અષાઢ વદ-૭ ,રેવતી નક્ષત્ર માં.
(6) માતા નું નામ-સુયાશાદેવી અને પિતાનું નામ-સિંહસેન રાજા.
(7) વંશ - ઇક્ષ્વાકુવંશ અને ગોત્ર કાશ્યપ.
(8) ગર્ભવાસ -નવમાસ અને છ દિવસ.
(9) લંછન- સિંનચાંણો અને વર્ણ -સુવર્ણ.
(10) જન્મ કલ્યાણક-ચૈત્રવદ-૧૩ ,પુષ્ય નક્ષત્ર માં.
(11) શરીર પ્રમાણ -૫૦ ધનુષ્ય.
(12) દિક્ષા કલ્યાણક- ચૈત્રવદ -૧૪ ,રેવતિ નક્ષત્ર માં.
(13) કેટલા જણ સાથે દિક્ષા -૧૦૦૦ રાજકુમાર સાથે.
(14) દિક્ષાશીબીકા - સાગરદત્તા અને દિક્ષાતપ - છઠ્ઠ.
(15) પ્રથમ પારણું -વર્ધમાનનગર માં વિજય રાજાએ ક્ષીરથી પારણું કરાવ્યું.
(16) છદ્મસ્થા અવસ્થા -ત્રણ વર્ષ.
(17) કેવલજ્ઞાન કલ્યાણક - છઠ્ઠતપ,અશોકવ્રુક્ષની નીચે અયોધ્યામાં ચૈત્રવદ-૧૪ રેવતિ નક્ષત્રમાં થયું.
(18) શાશનદેવ- પાતાળ યક્ષ અને શાશનદેવી -અંકુશાદેવી.
(19) ચૈત્ય વ્રુક્ષ ની ઉંચાઈ -૬૦૦ ધનુષ્ય.
(20)પ્રથમ દેશના નો વિષય -લોક સ્વરૂપભાવના અને નવતત્વ નું સ્વરૂપ.
(21) સાધુ - ૬૬૦૦૦ અને સાધ્વી -ધારિણી આદિ-૬૨૦૦૦.
(22) શ્રાવક - ૨૦૬૦૦૦ અને શ્રાવિકા -૪૧૪૦૦૦.
(23) કેવળજ્ઞાની-૫૦૦૦, મન:પર્યાવજ્ઞાની-૫૦૦૦ અને અવધિજ્ઞાની -૪૩૦૦.
(24) ચૌદપૂર્વધર-૧૦૦૦ અને વૈક્રિયલબ્ધિઘર-૮૦૦૦ તથા વાદી -૩૨૦૦.
(25) આયુષ્ય ૩૦ લાખ વર્ષ.
(26) નિર્વાણ કલ્યાણક-ચૈત્રસુદ-૫ પુષ્ય નક્ષત્રમાં.
(27) મોક્ષ -સમ્મેતશિખર, મોક્ષતપ -માસક્ષમન અને મોક્ષાસન -કાર્યોત્સર્ગાસન.
(28) મોક્ષ સાથે -૧૦૦૦ સાધુ.
(29) ગણધર-જશ આદિ-૫૦.
(30) શ્રી ધર્મનાથ પ્રભુ નું અંતર- ૪ સાગરોપમ.
Queen Suyasha Devi, wife of king Simhasen of Ayodhya, gave birth to an illustrious son on the thirteenth day of the dark half of the month of Vaishakh. During her pregnancy the queen dreamt of a very long strand of beads whose ends were not visible. The power and the glory of the king also increased manifold during this period. Accordingly the new born was named Anant (endless) Kumar.
After leading a normal life, first as a price and then as the king he became an ascetic along with one thousand other persons. He became an omniscient on the fourteenth day of the dark half of the month of Vaishakh under an Ashok tree. In his first discourse he elaborated the subject of the fundamentals-matter and life. He had fifty chief disciples including the senior most named Yash. Purushottam Vasudev and Suprabh Baldev reigned during his period of influence.
Bhagavan Anantnath got Nirvana at Sammetshikhar on the fifth day of the bright half of the month of Chaitra.
Pranaam Today Shri Anantnath Bhagvan Moksh Kalyanak
ANANT NATH Prabhu Naam Tamaaru ,Anant Goon Bhandaar
Amne Bhavjal Paar Utaar. Amne Bhavjal Paar Utaar..
TODAY
Ayodhya Tirth Mandan,
Mata Suyasha Devi,Pita Sinh Sen Nandan,
14 ma Tirthankar Shri Shri Shri ANANT NATH DADA Nu Moksh Kalyaanak Che..
50 Dhanush ni Kaaya ane 50 Gandhar na Swami Prabhu na Aatma nu Chyavan Thataaj Shatruo na Anant Bal Pan
Hanaai Gaya Hata.
Bolo Bolo Shri ANANT NATH SWAMI Bhagwan ki Jay Jay Jay
भगवान अनंतनाथ
जैन धर्म के चौदहवें तीर्थंकर
जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार अयोध्या में उन दिनों इक्ष्वाकु वंशी राजा
सिंहसेन का राज्य था। उनकी पत्नी का नाम सर्वयशा था। एक रात नींद में
महारानी सर्वयशा ने सोलह शुभ स्वप्न देखें, स्वप्न में हीरे-मोतियोंकी एक
माला देखी, जिसका कोई आदि या अंत उन्हें दृष्टिगोचर नहीं हुआ।
सर्वयशा ने देखा कि देवलोक से रत्नों की वर्षा हो रही है। इस स्वप्न के
बारे में उन्होंने राजा सिंहसेन को बताया तो वे समझ गए कि शीघ्र ही उनके
घर-आंगन में चौदहवें तीर्थंकर जन्म लेने वाले हैं। इस शुभ समाचार को
उन्होंने राज्य के लोगों सुनाया, तो उसे सुनकर पूरा राज्य में खुशी की
लहर दौड़ गई।तभी राजा सिंहसेन ने महारानी के साथ यह निर्णयकिया कि वे
अपने इस पुत्रका नाम अनंत रखेंगे।
इस तरह, चौदहवें तीर्थंकरअनंतनाथ का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी के दिन
हुआ। उनके जन्म के साथ हीराजा सिंहसेन का राज्य-विस्तार दिनोंदिन बढ़ने
लगा। सारी प्रजा धन-धान्य से संपन्न हो गई।
जब अनंत ने युवावस्था में पदार्पण किया तो परंपरानुसार राजसी वैभव के
साथ उनका शुभ विवाह किया गया। राजा सिंहसेन जब वृद्ध हुए तो उन्होंनेअपना
राज्यभार अनंतनाथ को सौंपकर स्वयं मुनि बन गए।
राजा अनंतनाथ बहुत ही दयालु और मैत्री भाव से परिपूर्ण थे। उन्होंने
अपने राज्य काल में अपनी प्रजा का संतान की भांति पालन किया। उनके इसी
व्यवहार और विचारों से प्रभावित होकर अनेक राजा-महाराजा उनके अनुयायी
बनते चले गए। राजा अनंतनाथ ने न्यायपूर्वक लाखों वर्ष तक राज्य किया।
अपने 30 लाख वर्ष के जीवन काल में राजा अनंतनाथ के लाखों अनुयायी बने।
उन्होंने सभी ओर घूम-घूमकर धर्मोपदेश देकर जनकल्याणकिया। फिर एक दिन एक
उल्कापात देखकर उन्हें संसार की नश्वरता का बोध हुआ और उन्होंने अपना
राजपाट अपने पुत्र अनंतविजय को सौंप कर स्वयं ने मुनि-दीक्षा ग्रहण की।
दो वर्ष के तप के पश्चात उन्हें चैत्र माह की अमावस्या को कैवल्य ज्ञान
प्राप्ति हुई और वे तीर्थंकर की भांति पूज्यनीय हो गए। चैत्र माह की
अमावस्या कोसम्मेदशिखर पर 6 हजार 100 मुनियों के साथ उन्हें भी निर्वाण
प्राप्त हुआ।
भगवान अनंतनाथ का अर्घ्य :
शुचि नीर चन्दन शालि तन्दुल, सुमन चरु दीवा धरा।
अरु धूप फल जुत अरघ करि, कर जोर जुग विनती करों।
जगपूज परम पुनीत मीत, अन्नत सन्त सुहावनों।
शिव कन्त वंत महन्त ध्यायो, भ्रन्त तंत नशावनों।
तीर्थंकर : १४. अनंतनाथ जी
स्वर्ग : प्रणता देवलोक
जन्मस्थान - अभिषेक : अयोध्या / सम्मेत शिखरजी
माता-पिता : सुयशा सिंहसेन
वर्ण : स्वर्णिम
चिह्न : सेही
ऊँचाई : ५० धनुष
आयु : ३०,००,००० वर्ष
वृक्ष : अशोका
परिचर आत्माएं : पाताल और अंकुशा या अनंतमति
पुरुष शिष्य - स्त्री शिष्य : जस
निर्वाण स्थल : समेत शिखर
૧૪ શ્રી અનંતનાથ સ્વામી..
(1) સમ્યક્ત્વ પામ્યા પછીના ભવ - ત્રણ.
(2) જન્મ અને દિક્ષા સ્થળ - અયોધ્યા.
(3) તીર્થંકર નામકર્મ - પદ્મરથ .
(4) દેવલોકનો અંતિમ ભવ -પ્રાણત દેવલોક.
(5) ચ્યવન કલ્યાણક- અષાઢ વદ-૭ ,રેવતી નક્ષત્ર માં.
(6) માતા નું નામ-સુયાશાદેવી અને પિતાનું નામ-સિંહસેન રાજા.
(7) વંશ - ઇક્ષ્વાકુવંશ અને ગોત્ર કાશ્યપ.
(8) ગર્ભવાસ -નવમાસ અને છ દિવસ.
(9) લંછન- સિંનચાંણો અને વર્ણ -સુવર્ણ.
(10) જન્મ કલ્યાણક-ચૈત્રવદ-૧૩ ,પુષ્ય નક્ષત્ર માં.
(11) શરીર પ્રમાણ -૫૦ ધનુષ્ય.
(12) દિક્ષા કલ્યાણક- ચૈત્રવદ -૧૪ ,રેવતિ નક્ષત્ર માં.
(13) કેટલા જણ સાથે દિક્ષા -૧૦૦૦ રાજકુમાર સાથે.
(14) દિક્ષાશીબીકા - સાગરદત્તા અને દિક્ષાતપ - છઠ્ઠ.
(15) પ્રથમ પારણું -વર્ધમાનનગર માં વિજય રાજાએ ક્ષીરથી પારણું કરાવ્યું.
(16) છદ્મસ્થા અવસ્થા -ત્રણ વર્ષ.
(17) કેવલજ્ઞાન કલ્યાણક - છઠ્ઠતપ,અશોકવ્રુક્ષની નીચે અયોધ્યામાં ચૈત્રવદ-૧૪ રેવતિ નક્ષત્રમાં થયું.
(18) શાશનદેવ- પાતાળ યક્ષ અને શાશનદેવી -અંકુશાદેવી.
(19) ચૈત્ય વ્રુક્ષ ની ઉંચાઈ -૬૦૦ ધનુષ્ય.
(20)પ્રથમ દેશના નો વિષય -લોક સ્વરૂપભાવના અને નવતત્વ નું સ્વરૂપ.
(21) સાધુ - ૬૬૦૦૦ અને સાધ્વી -ધારિણી આદિ-૬૨૦૦૦.
(22) શ્રાવક - ૨૦૬૦૦૦ અને શ્રાવિકા -૪૧૪૦૦૦.
(23) કેવળજ્ઞાની-૫૦૦૦, મન:પર્યાવજ્ઞાની-૫૦૦૦ અને અવધિજ્ઞાની -૪૩૦૦.
(24) ચૌદપૂર્વધર-૧૦૦૦ અને વૈક્રિયલબ્ધિઘર-૮૦૦૦ તથા વાદી -૩૨૦૦.
(25) આયુષ્ય ૩૦ લાખ વર્ષ.
(26) નિર્વાણ કલ્યાણક-ચૈત્રસુદ-૫ પુષ્ય નક્ષત્રમાં.
(27) મોક્ષ -સમ્મેતશિખર, મોક્ષતપ -માસક્ષમન અને મોક્ષાસન -કાર્યોત્સર્ગાસન.
(28) મોક્ષ સાથે -૧૦૦૦ સાધુ.
(29) ગણધર-જશ આદિ-૫૦.
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