ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

परमात्मा अनुभव

 परमात्मा अनुभव ||
🌴एक घने जंगल में ईश्वर को पूर्णतः समर्पित एक संत सभी बाह्म आडंबरों से मुक्त सादगी का जीवन व्यतीत करते थे ।
वे प्रत्येक शाम आसपास के ग्रामीणों को उपदेश देते और उन्हे सुनकर ग्रामीण अपने जीवन को सुधारने का प्रयत्न करते ।
एक दिन एक शिक्षित युवक संत के पास आया ।उसने संत को प्रणाम कर अपनी जिज्ञासा रखी, गुरूजी ! आप ईश्वर की बात करते हैं , क्या आपने ईश्वर के दर्शन किये हैं ?
जो आप साधिकार इस विषय पर इतना कुछ कह पाते हैं ?
संत ने कुछ नहीं कहा और स्नेहपूर्वक उसके सिर पर हाथ फेर दिया ।युवक ने समझा कि संत के पास मेरे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं हैं ।
फिर उन्होंने कहाँ, ' आऔ हम कुछ देर यहाँ के बगीचे में घूमें , बगीचे में गुलाब और रजनीगंधा के सुगंधित फूल लगे थे l युवक बोला, ' गुरूजी ! इन फूलों की सुगंध से सारा वातावरण महक रहा हैं ,
संत नें कहाँ, ' वत्स ! तुम ठीक कहते हो, किंतु एक बात बताओ कि तुम्हें यह सुगंध दिखाई दे रही हैं....??
युवक बोला __" जी नहीं , सुगंध तो अनुभव की जाती हैं ।
तब संत नें कहाँ ___" बस ! यहीं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर हैं l
तुम्हारे शरीर में जब कभी कहीं चोट लगती हैं, तो दर्द होता हैं , क्या इस दर्द को तुम देख सकते हों ....??
युवक बोला__ नहीं, वह भी अनुभव ही होता हैं ।
संत ने अंन्तिम रूप से युवक की समस्या का समाधान करते हुए कहाँ :-
*आत्मा और परमात्मा ** के साथ भी यहीं बात हैं ।
*आत्मा और परमात्मा ** की अनुभूति के द्वारा उसका साक्षात्कार होता हैं, न कि स्थुल नेत्रों से ।
युवक अब पूर्णतः संतुष्ट था । संत का आभार मानते हुए वह चला गया ।
*परमात्मा* सदैव अनुभूति के स्तर पर हीं घटता हैं , यह घटना तब होती हैं, जबकि मन पूर्णतः निर्लिप्त तथा समभाव को प्राप्त हो चुका हो "

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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