एक महिला संतान न होने के कारण बहुत दुखी थी | भजन, पूजन, व्रत, उपवास जिसने जो बताया, उसने बड़ी श्रद्धा से उसे पूर्ण किया | फिर भी उसकी गोद सूनी की सूनी रही | अंत में उदास मन लेकर संतान पाने की लालसा से वह किसान के पास पहुँची | किसान होने के साथ वह उद्भट विद्वान, समाजसेवी और लोकोपकारी व्यक्ति थे| वह दूसरो के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझकर उन्हे दूर करने का भरसक प्रयत्न करते |
उनके पास बर्तन में कुछ भुने चने रखे थे | उन्होने उस महिला को अपने पास बुलाकर दो मुट्ठी चने उसे देकर कहा – ‘उस आसान पर बैठकर इन्हें खा लो|’ उस ओर कई बच्चे खेल रहे थे | छोटे-छोटे बच्चे, उन्हे अपने पराए का ज्ञान कहा होता है? वे भी खेल बंद कर के उस महिला के पास आकर इस आशा में खड़े हो गये की शायद यह महिला हमें भी खाने को देगी| पर वह तो मुह फेरे अकेले ही चने खाती रही और बच्चे ललचाई दृष्टि से खड़े-खड़े उस टुकूर-टुकूर देखते रहे |
चने ख़त्म हो गये तो वह किसान के पास पहुँची और बोली – ‘अब आप हमारे दुख दूर करने के लिए भी कुछ उपाय बताइए|’
सज्जन बोले – ‘देखो देवी ! तुम्हे मिले चनों में से तुम उन बच्चो को चार दाने भी नही दे सकी, जबकि एक बच्चा तो तुम्हारी और हाथ तक पसार रहा था | फिर भगवान तुम्हे हाड़-माँस का बच्चा क्यों देने लगेंगे ?’ उदार भगवान से और भी अधिक उदारता पाने की आशा करने वालों को अपना स्वभाव और चरित्र और अधिक उदार बनाने का प्रयत्न करना चाहिए
BEST REGARDS:-
ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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