







भगवान श्री मुनिसुव्रतस्वामी के शासन काल में श्रीपाल और मयना ने उज्जैन में स्थित खारा कुआं क्षेत्र के श्री केसरियाजी मंदिरजी में श्री सिद्धचक्रजी की भावपूर्वक आराधना की थी और कुष्ट रोग से छुटकारा पाया था। इसी मंदिर के परिसर में 9 अन्य प्राचीन मंदिर है। सती सीता ने वनवास के दौरान उज्जैन के निकट क्षिप्रा नदी की मिट्टी से प्रभु पार्श्वनाथ एवं प्रभु आदिनाथ की प्रतिमाएं बनवाई थी और रावण की लंका में अशोक वाटिका में स्थिरवास के समय आदिनाथ की प्रतिमा भरवाई थी, और नित्य उसकी पूजा करती थी, वे तीनों प्रतिमाएं इस मंदिर में विराजमान है।श्रीपाल राजा और मयनासुन्दरी जैसे महान साधक ने तप किया हो, सती सीता द्वारा निर्मित परमात्मा की प्रतिमाएं हो, राजा रावण द्वारा पूजित प्रतिमा यहाँ बिराजमान हो, तो उस मंदिर की कितनी अपार महिमा होगी, और हम अत्यंत भाग्यशाली है कि हजारों वर्ष बीत जाने पर भी हमें इनके पवित्र दर्शन-सेवा-पूजा का लाभ प्राप्त हो रहा है। ऐसे मन्दिर में जाते ही हमारा दिल गद गद हो जाता है ओर धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा में द्विगुणित वृद्धि होती है।
कुछ ही दूरी पर श्री अवंति पार्श्वनाथ का मंदिर है, जहां पर श्री सिद्धसेन दिवाकरजी ने अपने विद्या बल से रात्रि में अदृश्य रूप से शिवजी के मंदिर में प्रवेश किया था, और वहां रखे शिवलिंग में से श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति शिवलिंग को तोड़कर प्रकट हुई थी। अभी वहां मंदिर का सम्पूर्ण जीर्णोद्धार हुआ है और अगले वर्ष पूज्य आचार्य श्री मनीप्रभसागर सूरिजी की निश्रा में प्रतिष्ठा होनेवाली है।
निकट ही भैरवगढ़ में मणिभद्रवीर का मंदिर है। सुश्रावक श्री माणकचंदजी की जब चोर लूटेरों ने हत्या की थी तो शरीर का एक भाग आगलोढ़ और मगरवाड़ा के अलावा उज्जैन में गिरा था, और उन्हीं का यह चमत्कारी मंदिर है, जहां सहस्त्रों लोग रोज मन्नतें लेकर दर्शन को आते हैं। किंवदंती है कि जो भक्त एक ही दिन में इन तीनों पवित्र स्थलों की यात्रा करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। 14 की मी कि दूरी पर हासमपुरा में अलौकिक पार्श्वनाथ का भव्य नूतन जीर्णोद्धारित मंदिर है।
हिन्दू मतावलंबियों की भी उज्जैन नगरी पवित्रतम भूमि है- महाकाल का जगविख्यात मंदिर जो श्रद्धा का बहुत बड़ा केंद्र है और रोज हज़ारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं, और काल भैरव, (जिनको शराब-मदिरा चढ़ती है) और हर 12 वर्षों में एक बार विराट कुम्भ मेले का आयोजन होता है। इसीलिए उज्जैन को मंदिरों की नगरी के नाम से संबोधित किया जाता है।पूज्य साध्वी श्री नंदीवर्षा श्रीजी का खारा कुआँ मन्दिर के उपाश्रय में चौमासा चल रहा है उनके दर्शन के लिये आये है हमारे दोस्त श्री झुमरमलजी मोहनलालाजी लूकड की संसारीक पुत्री है नंदी वर्षा श्रीजी।ऐसे प्रभावक तीर्थों की यात्रा और स्पर्शना हेतु वर्ष में कम से कम एक बार अनुकूलतानुसार पूरे परिवार के साथ दो-तीन दिनों की यात्रा का कार्यक्रम बनाना चाहिए, ताकि परिवार में धर्म के प्रती भावों की वृद्धि हो और जीवन में निर्मलता और पवित्रता का पदार्पण हो।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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