मुछाला महावीर, धाणेराव (राजस्थान)
मुछाला महावीर का तीर्थ अरावली पर्वतमालाओं की गोद में घने जंगलों के बीच बहने वाली सूकी नदी के किनारे पहाड़यो से घिरे मैदान में स्थित है, जहां केवल मंदिर तथा आसपास धर्मशाला व भोजनशाला ही है। ऐसा कहा जाता है कि शताब्दियों पूर्व यहां जैन धर्मावलम्बियों की घनी बस्ती जो समय की गति के साथ उजड़ गई। आज यहां बस्ती नहीं होते हुये भी यह मंदिर आगन्तुकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। देव विमान जैसा भगवान महावीर का चोबीस जिनालय वाला यह भव्य मंदिर जंगल में मंगल की कहावत चरितार्थ करता है। मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया, इसके पुष्ट प्रमाण तो कहीं नहीं मिलते लेकिन मंदिर बहुत प्राचीन है। मंदिर की स्थापत्य कला को देख कर पुरातत्व विशेषज्ञों का मानना है कि यह मंदिर दसवीं अथवा ग्यारहवीं शताब्दी का होना चाहिये परन्तु साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान महावीर के बड़े भाई नन्दीवर्द्धन के परिवार से संबधित सोहनसिंह ने करवाया था इसका उल्लेख यहां प्राचीन लिपि में एक शिलालेख पर मिलता है। इस विशाल मंदिर का मुख्यद्वार उत्तर दिशा में है तथा द्वार के दोनो ओर हाथी बनाकर खडे किया गये हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही एक विशाल खुला मण्डप खंभो पर टिका हुआ है। इस मंदिर में दो प्रदिक्षणा है। मंदिर का गगनचुम्बी शिखर और बड़ा रंगमण्डप तथा फेरी के झरोखों की विविध कलापूर्ण जालियां यहां की स्थापत्यकला का नमूना है।
मंदिर की अन्य कलाकृतियों में नृत्य करती देवी देवतांओं की मूर्तियां बड़ी मोहक लगती है। मंदिर में चारों ओर कतारबन्द देरियां है। मंदिर के मूल गंभारे में भव्य एवं प्राचीन परिकर युक्त प्रतिमा बिराजमान है। कहा जाता है कि सोमनाथ जाते हुए मोहम्मद गजनवी इसी मार्ग से गुजरा था जिसने इस मंदिर को क्षतिग्रस्त किया, लेकिन उसकी सेना रोगग्रस्त हो जाने से गजनवी घाणेराव को लुटता हुआ गुजरात की ओर बढ़ गया। इस अवसर पर उसने मुख्य प्रतिमा को खण्डित कर दिया था जिसे बादमे जीर्णोद्धार के समय लेप चढ़ाकर पूर्व की भांति बना दिया गया। इस मंदिर की प्रतिष्ठा और जीर्णोद्धार कब कब और किस किस ने करवाया इसका पूरा विवरण कहीं उपलब्ध नहीं है लेकिन अन्तिम जीर्णोद्धार वि.सं. २०१७ में होकर सं. २०२२ में पुनः प्रतिष्ठा होने की जानकारी मिली है। मंदिर की देरियों के साथ एक स्थान पर अधिष्ठायक देव की प्रतिमा स्थापित है जो काफी चमत्कारी बताये जाते है। देरीयों में अन्य देवीदेवताओं की मूर्तियां है इन्ही देरियों के बीच एक बड़ा देरासर बना हुआ है जिसमें भी महावीर स्वामी की श्वेतवर्णी प्रतिमा है जिसपर सं. १९०३ का लेख उत्कीर्ण है। एक ओर देवकुलिकाओं में श्री मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा है जिसपर सं. १८९३ में प्रतिष्ठित होने का उल्लेख है।
मुछाला महावीर जी में विराजित श्री काला भैरव के दर्शन करिये ।।
अदभूत प्रतिमा - मूंछाला महावीर जीBEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAHLIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/
THANKS FOR VISITING.
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.