जीव- जैन दर्शन में आत्मा के लिए "जीव" शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरुप है।
अजीव- जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है।
पुण्य-अच्छे कर्मों के परिणाम
पाप- बुरे कर्मों के परिणाम
आस्रव - पुद्गल कर्मों का आस्रव करना
बन्ध- आत्मा से कर्म बन्धना
संवर- कर्म बन्ध को रोकना
निर्जरा- कर्मों को क्षय करना
मोक्ष - जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं।
अजीव- जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है।
पुण्य-अच्छे कर्मों के परिणाम
पाप- बुरे कर्मों के परिणाम
आस्रव - पुद्गल कर्मों का आस्रव करना
बन्ध- आत्मा से कर्म बन्धना
संवर- कर्म बन्ध को रोकना
निर्जरा- कर्मों को क्षय करना
मोक्ष - जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं।
🌷नवतत्त्व प्रकरण प्रश्नोत्तरी 🌷
👉🏻प्रश्न- 1 तत्त्व किसे कहते है ?
वास्तु के यथार्थ स्वरूप को तत्व कहते है
👏🏻जवाब- 1 चौदह राजलोक रुप जगत में रहे हुए पदार्थों के लक्षण, भेद, स्वरुप आदि को जानना, तत्त्व कहलाता है ।
👉🏻प्रश्न- 2 तत्त्व कितने और कौन कौन से होते है ?
👏🏻जवाब- 2 तत्त्व नौ हैं – 1.जीव 2.अजीव 3.पुण्य 4.पाप 5.आश्रव 6.संवर 7.निर्जरा 8.बंध 9.मोक्ष ।
👉🏻 प्रश्न- 3 जीव तत्त्व किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 3 जीवों के लक्षण, भेद, स्वरुप आदि को जानना जीव तत्त्व है ।
👉🏻 प्रश्न- 4 जीव किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 4 जो शुभाशुभ कर्मो का कर्ता-हर्ता तथा भोक्ता हो, जो सुख-दुःख रुप ज्ञान के उपयोग वाला हो, जो चैतन्य-लक्षण से युक्त हो, जो प्राणों को धारण करता हो, वह जीव कहलाता है ।
👉🏻 प्रश्न- 5 प्राण किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 5 " प्राणिति जीवति अनेनेति प्राणः " अर्थात् जिसके द्वारा जीव में जीवत्व है, इसकी प्रतीति होती है, वह प्राण कहलाता है ।
👉🏻 प्रश्न- 6 अजीव किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 6 जीव से विपरीत लक्षण वाला अजीव कहलाता है । जो चैतन्य लक्षण रहित जड स्वभावी हो, सुख-दुःख का अनुभव न करे, प्राणों को धारण न करे, वह अजीव कहलाता है ।
👉🏻 प्रश्न- 7 पुण्य किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 7 जो आत्मा को पवित्र करें, जिसकी शुभ प्रकृति हो, जिसके द्वारा आमोद-प्रमोद, ऐश-आराम, सुख-साधनों की बहुलता प्राप्त हो, जिसके द्वारा जीव सुख का भोग करे, उसे पुण्य कहते है ।
👉🏻 प्रश्न- 8 पुण्य के कितने और कौन से प्रकार है ?
👏🏻जवाब- 8 पुण्य के दो प्रकार हैः- 1पुण्यानुबंधी पुण्य 2.पापानुबंधी पुण्य ।
👉🏻 प्रश्न- 9 पुण्यानुबंधी पुण्य किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 9 जिस पुण्य को भोगते हुए नया पुण्य बंधे, उसे पुण्यानुबंधी पुण्य कहते है । जैसे मेघकुमार ।
👉🏻 प्रश्न- 10 पापानुबंधी पुण्य किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 10 जिस पुण्य को भोगते हुए पाप का अनुबन्ध हो, उसे पापानुबंधी पुण्य कहते है । जैसे मम्मण शेठ ।
👉🏻 प्रश्न- 11 पुण्य के 9 प्रकार कौन कौन से है ?
👏🏻जवाब- 11 पुण्य के 9 प्रकार निम्नोक्त है ।
अन्न पुण्य - भुखे को भोजन देना ।
पान पुण्य - प्यासे की प्यास बुझाना ।
शयन पुण्य - थके हुए निराश्रित प्राणियों को आश्रय देना ।
लयन पुण्य - पाट-पाटला आदि आसन देना ।
वस्त्र पुण्य - वस्त्रादि देकर सर्दी-गर्मी से रक्षण करना ।
मन पुण्य - हृदय से सभी प्राणीयों के प्रति सुख की भावना ।
वचन पुण्य - निर्दोष-मधुर शब्दों से अन्य को सुख पहुंचाना ।
काय पुण्य - शरीर से सेवा-वैयावच्चादि करना ।
नमस्कार पुण्य - नम्रतायुक्त व्यवहार करना ।
👉🏻 प्रश्न- 12 पाप किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 12 पुण्य से विपरीत स्वभाव वाला, जिसके द्वारा अशुभ कर्मो का ग्रहण हो, जिसके द्वारा जीव को दुःख, कष्ट तथा अशांति मिले, उसे पाप कहते है ।
👉🏻प्रश्न- 13 पाप कितने प्रकार का है ?
👏🏻जवाब- 13 पाप 2 प्रकार का हैः- 1.पापानुबंधी पाप 2.पुण्यानुबंधी पाप ।
👉🏻 प्रश्न- 14 पापानुबंधी पाप किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 14 जिस पाप कर्म को भोगते हुए नये पापकर्म का अनुबंध हो, उसे पापानुबंधी पाप कहते है । जैसे विपन्न-दुःखी, कसाई इस भव में पाप कार्य से दुःख भोग रहे हैं और रौद्र तथा क्रूर कर्मो द्वारा वे नये पाप कर्म का उपार्जन कर रहे है, इसे पापानुबंधी पाप कहा जाता है ।
👉🏻 प्रश्न- 15 पुण्यानुबंधी पाप किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 15 जिस पाप कर्म को भोगते हुए पुण्य का बंध हो, वह पुण्यानुबंधी पाप है । जैसे जीव दरिद्रता आदि दुःखो को भोगता हुआ मन में समता रखे कि यह मेरे ही पाप कर्म का परिणाम है । इस प्रकार की विचारधारा वाला जीव पाप कर्म को भोगता हुआ भी नये पुण्य का उपार्जन करता है । जैसे पूणिया श्रावक ।
👉🏻 प्रश्न- 16 आश्रव किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 16 जीव की शुभाशुभ योग प्रवृत्ति से आकृष्ट होकर कर्मवर्गणा का आना अर्थात् जीवरुपी तालाब में पुण्य-पाप रुपी कर्म –जल का आगमन आश्रव कहलाता है ।
👉🏻 प्रश्न- 17 संवर किसे कहते है ?
👉🏻जवाब- 17 जीव में आते हुए कर्मो को व्रत-प्रत्याख्यान आदि के द्वारा रोकना, अर्थात् जीव रुपी तालाब में आश्रव रुपी नालों से कर्म रुपी पानी के आगमन को त्याग-प्रत्याख्यान रुपी पाल (दिवार) द्वारा रोकना, संवर कहलाता है ।
👉🏻 प्रश्न- 18 निर्जरा किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 18 आत्मा के साथ बंधे हुए कर्मो का देशतः क्षय होना या अलग होना निर्जरा कहलाता है ।
👉🏻प्रश्न- 19 निर्जरा के अन्य भेद कौनसे है ?
👏🏻जवाब- 19 निर्जरा के अन्य 2 भेद हैः- 1,सकाम निर्जरा 2.अकाम निर्जरा ।
👉🏻 प्रश्न- 20 सकाम निर्जरा किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 20 आत्मिक गुणों को पैदा करने के लक्ष्य से जिस धर्मानुष्ठान का आचरण-सेवन किया जाय अर्थात् अविरत सम्यग्द्रष्टि जीव, देशविरत श्रावक तथा सर्वविरत मुनि महात्मा, जिन्होंने सर्वज्ञोक्त तत्त्व को जाना है और उसके परिणाम स्वरुप जो धर्माचरण किया है, उनके द्वारा होने वाली निर्जरा सकाम निर्जरा है ।
👉🏻प्रश्न- 21 अकाम निर्जरा किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 21 सर्वज्ञ कथित तत्त्वज्ञान के प्रति अल्पांश रुप से भी अप्रतीति वाले जीव-अज्ञानी तपस्वियों की अज्ञानभरी कष्टदायी क्रियाएँ तथा पृथ्वी, वनस्पति आदि पंच स्थावरकाय जो सर्दी-गर्मी को सहन करते हैं, उन सबसे जो निर्जरा होती है, वह अकाम निर्जरा कहलाती है ।
👉🏻प्रश्न- 22 बंध किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 22 जीव के साथ नीर-क्षीरवत् कर्म वर्गणाएँ संबद्ध हो, उसे बंध कहते है ।
👉🏻 प्रश्न- 23 मोक्ष किसे कहते है ?
👏🏻जवाब- 23 ज्ञानावरणीयादि अष्ट कर्मो का आत्मा से सर्वथा नष्ट हो जाना, मोक्ष कहलाता है ।
👉🏻 प्रश्न- 24 नवतत्त्वों का वर्णन कौनसे आगम में हैं ?
👏🏻जवाब- 24 स्थानांग सूत्र के 9 वें स्थान में नवतत्त्वों का वर्णन है ।
👉🏻 प्रश्न- 25 नवतत्त्वों में कौन-कौन से तत्त्व हेय-ज्ञेय तथा उपादेय है ?
👏🏻जवाब- 25 1. हेय – पाप, आश्रव, बन्ध, पुण्य ।
2. ज्ञेय – जीव, अजीव ।
3. उपादेय – पुण्य, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष ।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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