~ वासक्षेप चन्दन लकड़ी का चूरा ( बुरादा) होता है । गुलाब जल , प्रभु का अभिषेक जल भी इसमें सम्मिलित होता है
~ औरों के लिए यह मिट्टी है किन्तु एक जैन श्रावक के लिए यह गुरु द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद एवं ऊर्जा का केंद्र है
~ जब तीर्थंकर प्रभु को केवलज्ञान होता है , एवं वे प्रथम शिष्य को दीक्षा देते हैं , तब इंद्र वासक्षेप का थाल लेकर प्रभु के पास खड़ा रहता है । प्रभु अपने शिष्यों और श्रावकों के मस्तक पर वह डालते हैं , वहीँ से यह परंपरा चालू हुई , ऐसा आचार्य हेमचन्द्र सूरीश्वर जी ने भी अपने ग्रन्थ में लिखा है ।
~ वासक्षेप अर्थात वास ( सुगन्धित ) चूर्ण एवं क्षेप यानि फेंकना / डालना ।
~ गुरु महाराज दीपावली के दिनों में , नवरात्रि के दिनों में , ओली पर्व के दिनों में , सूरि मंत्र की आराधना के समय इस वासक्षेप को मंत ्रोच्चार के साथ प्रभावक बनाते हैं।
~ जब गुरु महाराज वासक्षेप देते हैं तो कहते हैं - " नित्थार पारगा होह " यानि इस संसार से तेरा निस्तारा हो , तेरा कल्याण हो ।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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