*चंद क्षण जीवन के तेरे रह गए ,*
*और तो विषयों में सारे बह गए ।*
*क्या तू लेकर आया था , क्या जायेगा .....*
*तन भी एक दिन खाक में मिल जायेगा ।।*
*देह भी है ज्ञेय ज्ञानी कह गए ।*
*चंद क्षण जीवन के तेरे रह गए ......"*
हे जीव ! यह शरीर पानी के परकोटे के समान क्षण में नष्ट होने योग्य है , लक्ष्मी इंद्रजाल के समान विनश्वर है , स्त्री , धन , पुत्र आदि द्रुष्ट वायु से छिन्न भिन्न हुए बादलों के समान देखते देखते ही विलीन हो जाते है तथा इन्द्रिय विषय जन्य सुख सदा कामोन्मत्त स्त्री के कटाक्षों के समान चंचल है । इसलिए इन सबके नाश में शोक और इनकी प्राप्ती के विषय में हर्ष से क्या प्रयोजन है ? कुछ भी नहीं !
अभिप्राय यह है कि जो शरीर ,धन सम्पत्ती , स्त्री , पुत्र आदि समस्त चेतन अचेतन पदार्थ स्वभाव से ही अस्थिर है तो विवेकी मनुष्यों को उनके संयोग में हर्ष और वियोग में शोक नहीं करना चाहिए ।
*और तो विषयों में सारे बह गए ।*
*क्या तू लेकर आया था , क्या जायेगा .....*
*तन भी एक दिन खाक में मिल जायेगा ।।*
*देह भी है ज्ञेय ज्ञानी कह गए ।*
*चंद क्षण जीवन के तेरे रह गए ......"*
हे जीव ! यह शरीर पानी के परकोटे के समान क्षण में नष्ट होने योग्य है , लक्ष्मी इंद्रजाल के समान विनश्वर है , स्त्री , धन , पुत्र आदि द्रुष्ट वायु से छिन्न भिन्न हुए बादलों के समान देखते देखते ही विलीन हो जाते है तथा इन्द्रिय विषय जन्य सुख सदा कामोन्मत्त स्त्री के कटाक्षों के समान चंचल है । इसलिए इन सबके नाश में शोक और इनकी प्राप्ती के विषय में हर्ष से क्या प्रयोजन है ? कुछ भी नहीं !
अभिप्राय यह है कि जो शरीर ,धन सम्पत्ती , स्त्री , पुत्र आदि समस्त चेतन अचेतन पदार्थ स्वभाव से ही अस्थिर है तो विवेकी मनुष्यों को उनके संयोग में हर्ष और वियोग में शोक नहीं करना चाहिए ।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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