सवाल :- आलू , प्याज ,लहसुन , गाजर , शलगम , सूरण जैसे जमीकंद (कंदमूल) खाने का निषेध क्यों है ?
जवाब:- अपना धर्म परमात्मा महावीर के विशिष्ट केवलज्ञान की ज्योति से झिलमिला रहा है । विज्ञान के शोधों से भी कहीं आगे है हमारे जैन धर्म के शास्त्र ।
जैन धर्म का जीवविज्ञान खूब विशाल है । जैन धर्म कहता है कि आलू वगैरह ऊपर बताए हुए कंदमूल अनंतकाय है । अनंतकाय यानि एक ही शरीर में अनंता जीवों का वास । सिर्फ सुई की नोक जितने आलू में अनंत जीव होते है । ऐसे कंदमूल खाने का अर्थ है -इन सभी जीवों का नाश । मात्र जीभ के स्वाद के लिए अनंता जीवों को कुचल डालना , जरा भी उचित नहीं।
“खाने के लिए जीना नहीं है , जीने के लिए खाना है ।”
सिर्फ जैनों में ही नहीं , बल्कि दूसरे धर्म के शास्त्रों में भी कंदमूल भक्षण को महापाप बताया गया है ।
अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी समझते है – विज्ञान कहता है कि जहाँ अंधेरा होता है वहाँ भरपूर जीव होते है। अभेराई (loft ) , कोठरी , जमीन के नीचे , भरे हुए पानी में ,ऐसे स्थानों पर अनेक छोटे-छोटे सूक्ष्म जीव होते है। जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता , वहाँ ऐसे अनंत जीव होते है ।
हम जानते है कि ये सारे कंदमूल जमीन के नीचे उगते है । जमीन के नीचे है यानि सूर्य का प्रकाश वहाँ पहुँचता नहीं ।
सवाल :- मूँगफली भी जमीन के नीचे ही उगती है , फिर मूँगफली या उसका तेल हम कैसे खा सकते हैं ?
जवाब :- मूँगफली जमीन के नीचे ही उगती है ,ये ठीक बात है । परंतु मूँगफली में तेल की प्रचुर मात्रा होने के कारण उसमें जीव पैदा हो नहीं सकते ।
बल्कि दालें बिगडे नहीं इसलिए बहनें उसपर तेल चुपड कर रखती है, क्योंकि तेल के कारण जीव उत्पन्न नहीं होते और दालें बिगडती नहीं ।
तेल जीवों की उत्पत्ति होने से रोकता है । मूँगफली में तो कुदरती रूप से तेल है । इसलिए मूँगफली और उसका तेल हम प्रयोग कर सकते हैं ।
आलू आदि में तेल नहीं रस है , जो जीवों की उत्पत्ति को रोक नहीं सकता इसलिए हम आलू , लहसुन आदि का प्रयोग नहीं कर सकते ।
सवाल :- अदरक प्रयोग नहीं कर सकते , पर सूंठ कर सकते हैं , ऐसा क्यों ?
जवाब :- अदरक , हल्दी ये सब भी जमीन के नीचे ही उगती है । कंदमूल = अनंतकाय के लक्षण उसमें भी है , फिर भी अदरक , हल्दी सुखा कर , तैयार सूंठ व हल्दी को हम प्रयोग कर सकते हैं ।
सवाल :- मूँगफली भी जमीन के नीचे ही उगती है , फिर मूँगफली या उसका तेल हम कैसे खा सकते हैं ?
जवाब :- मूँगफली जमीन के नीचे ही उगती है ,ये ठीक बात है । परंतु मूँगफली में तेल की प्रचुर मात्रा होने के कारण उसमें जीव पैदा हो नहीं सकते ।
बल्कि दालें बिगडे नहीं इसलिए बहनें उसपर तेल चुपड कर रखती है, क्योंकि तेल के कारण जीव उत्पन्न नहीं होते और दालें बिगडती नहीं ।
तेल जीवों की उत्पत्ति होने से रोकता है । मूँगफली में तो कुदरती रूप से तेल है । इसलिए मूँगफली और उसका तेल हम प्रयोग कर सकते हैं ।
आलू आदि में तेल नहीं रस है , जो जीवों की उत्पत्ति को रोक नहीं सकता इसलिए हम आलू , लहसुन आदि का प्रयोग नहीं कर सकते ।
सवाल :- अदरक प्रयोग नहीं कर सकते , पर सूंठ कर सकते हैं , ऐसा क्यों ?
जवाब :- अदरक , हल्दी ये सब भी जमीन के नीचे ही उगती है । कंदमूल = अनंतकाय के लक्षण उसमें भी है , फिर भी अदरक , हल्दी सुखा कर , तैयार सूंठ व हल्दी को हम प्रयोग कर सकते हैं ।
परमात्मा करूणा के भंडार है । उन्होंने हमारी आत्मा के साथ हमारे शरीर की भी चिन्ता की है । उबाला हुआ पानी , रात्रिभोजन त्याग , वगैरह में भी जैसे आत्मा के साथ हमारे शरीर के आरोग्य की बात जुडी हुई है वैसे ही सूंठ , हल्दी के प्रयोग में भी शरीर के आरोग्य की बात जुडी हुई है ।
रसोईघर में प्रयोग होने वाले अनेक मसाले औषधि समान है । कालीमिर्च , अजवाइन , सूंठ , पिंपरिमूल , हल्दी वगैरह मसाले अनेकों रोगो को पनपने से रोकते है ,और रोग हो गया हो तो उसे मिटाते भी है ।
कुदरती रूप से सूखी हुई सूंठ , हल्दी वगैरह में पूर्व में रहे हुए अनंताजीव अपनी आयुष्य पूर्ण करके , दूसरे भवों में चले गए होने से उसकी जीवहिंसा का पाप हमें नहीं लगता ।
सवाल :- जो सुखाई हुई अदरक हम सूंठ के रूप में खा सकते है , तो आलू की चिप्स सुखा कर उसे भी खा सकते हैं ना ?
जैन धर्म में इस बात पर सूक्ष्म दृष्टि से विचार करके “ना ” कहा गया है । कोई भी जीवहिंसा हमें करनी नहीं है । स्ंठ कुदरती रूप से सूखता है ,मगर आलू कुदरती रूप से नहीं सूखता।
चींटियों को कोमल पूंजनी से जयणापूर्वक सूपडी में लेकर बाहर किसी पेड के नीचे ठंडक में रखो , तो भी हिंसा कहलाती है , क्योंकि चींटिंयां वहाँ अपना घर ढूंढेगी ,पर मिलेगा नहीं जिससे वे शायद मर जाए ।
पाँचवे इरियावही सूत्र में ‘ठाणा ओ ठाणं शंकामीया ‘ पद द्वारा ऐसी हिंसा की गिनती की गई है । उसके बदले जो अगर हम उन चींटियों के आसपास कपूर , ब्रास , या राख डाल दें तो वे अपनेआप वहाँ से चली जाएगी । ऐसे उनकी जयणा होती है ।
पाँचवे इरियावही सूत्र में ‘ठाणा ओ ठाणं शंकामीया ‘ पद द्वारा ऐसी हिंसा की गिनती की गई है । उसके बदले जो अगर हम उन चींटियों के आसपास कपूर , ब्रास , या राख डाल दें तो वे अपनेआप वहाँ से चली जाएगी । ऐसे उनकी जयणा होती है ।
** हमें सूंठ की आरोग्य शरीर के लिए जरूरत है , आलू के चिप्स की नहीं ।
**सूंठ की जरूरत बहुत कम मात्रा में है । उसको मुट्ठी भर के फांक नहीं सकते। उसे स्वाद के लिए नहीं खाया जाता । अदरक कुदरती रूप से सूखता है जबकि आलू खुद से सूख कर चिप्स नहीं बन जाता ।
** सूंठ से पेट नहीं भरता और आसक्ति भी नहीं होती । जबकि आलू की चिप्स तो हम स्वाद के लिए ही खाते हैं । इसलिए आलू की चिप्स नहीं खाना चाहिये ।
अनासक्ति नामक गुण की रक्षा के लिए भी इसकी मनाही है। इसलिए सूंठ का उपयोग कर सकते हैं पर आलू के चिप्स नहीं खा सकते ।
भूतकाल में खाई हो तो भी “जब जागो तब सवेरा ” समझ कर आज से ही कंदमूल त्याग कर सच्चे श्रावक श्राविका बनें
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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