आदिनाथ दादा से महावीर स्वामी भगवान तक सभी 24 तीर्थंकरो के गणधरों 1452 होते है।
1. आदिनाथ भगवान के 84 गणधर
2. अजितनाथ भगवान के 95 गणधर
3. संभवनाथ भगवान के 102 गणधर
4. अभिनंदन स्वामी भगवान के 116 गणधर
5. सुमतिनाथ भगवान के 100 गणधर
6. पद्मप्रभ स्वामी भगवान के 107 गणधर
7. सुपार्श्वनाथ भगवान के 95 गणधर
8. चंद्रप्रभ स्वामी भगवान के 93 गणधर
9. सुविधिनाथ भगवान के 88 गणधर
10. शीतलनाथ भगवान के 81 गणधर
11. श्रेयांसनाथ भगवान के 76 गणधर
12. वासुपूज्य स्वामी भगवान के 66 गणधर
13. विमलनाथ भगवान के 57 गणधर
14. अनंतनाथ भगवान के 50 गणधर
15. धर्मनाथ भगवान के 43 गणधर
16. शांतिनाथ भगवान के 36 गणधर
17. कुंथुनाथ भगवान के 35 गणधर
18. अरनाथ भगवान के 33 गणधर
19. मल्लिनाथ भगवान के 28 गणधर
20. मुनिसुव्रत स्वामी भगवान के 18 गणधर
21. नमिनाथ भगवान के 17 गणधर
22. नेमिनाथ भगवान के 11 गणधर
23. पार्श्वनाथ भगवान के 10 गणधर
24. महावीर स्वामी भगवान के 11 गणधर
जैसे तीर्थंकर नाम कर्म होता है ,
वैसे ही गणधर नाम कर्म भी होते है।
तीर्थंकर पद को छोड के बाकी के सर्व पदों में गणधर पद श्रेष्ठ है।
आचार्य श्री मलयगिरीजी महाराज साहेबे पंचसंग्रह ग्रंथ में लिखा है , " सवि जीव करु शासन रसी " ऐसी भावना का चिंतन और प्रयत्न करता है वो तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन करतां है।
जे जीव स्वजन वर्ग का उद्धार करने की भावना और प्रयत्नवाला होता है , वो जीव गणधर पद प्राप्त करतां है।
महापुण्यशाली जीव ऐसी स्थिति को प्राप्त कर शकते है।
उनकी रूप संपदा अन्य जीवों करतां विशिष्ट होती है ।
आहारक शरीर का रूप सौंदर्य से अधिक रूप गणधर देव का होता है।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
LIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/
THANKS FOR VISITING.
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.