आत्म नगर में ज्ञान की गंगा, जिससे अम्रुत बरसा, सम्यकदृष्टि भर भर पीवे, मिथ्यादृष्टि प्यासा..... सम्यकदृष्टि समता जल में, नित ही गोते खाता है, मिथ्यादृष्टि राग द्वेष की आग मे झुलसा जाता है, समता जल का सीँचन करके है सुख शांति पा जाता......
पुण्य भाव को धर्म मान करके संसार बढाता,
राग बंध की गुत्थी को वह कभी न कभी न सुलझा पाता,
जो शुभ फल में तन्मय होता, वह भी निगोद मे जाता.......
जय हो
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
LIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/
THANKS FOR VISITING.
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.