ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

श्री नाणा तीर्थ / Shree Nana Tirth/ શ્રી નાના તીર્થ

Image may contain: 1 person, indoor

Image may contain: 1 person

Image may contain: 1 person, indoor


Image may contain: 1 person, indoor

Image may contain: 1 person, standing and indoor

Image may contain: 1 person, indoor

गोड़वाड़ क्षेत्र के समस्त जैन तीर्थों में नाणा गांव का प्राचीन तीर्थ सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि जैन समाज की मान्यता के अनुसार इस जैन मंदिर में मूलनायक की प्रतिमा की स्थापना भगवान महावीर के जीवनकाल में ही हुई थी अतः यह मंदिर जीवित स्वामी के नाम से ही प्रसिद्ध है जिसका प्रमाण इस लोकवाणी से भी मिलता है –
‘‘नाणा-दियाणा-नादिया, जीवित स्वामी वांदिया।’’
वर्तमान मंदिर की बनावट ढ़ाई हजार वर्ष पुरानी प्रतीत नहीं होती और न ही मंदिर में कोई प्राचीन लेख भी उपलब्ध है जिससे यह प्रमाणित हो सके कि यह मंदिर जीवित स्वामी का है परन्तु लोकवाणी का भी कोई आधार अवश्य होगा जो सदियों से प्रचलित है। मंदिर में प्राप्त वि.सं. १०१७ से सं. १६५९ तक के शिलालेखों के बारे में यह माना जा सकता है कि इस मंदिर के जीर्णोद्धार के समय के लेख हो सकते है क्योंकि इस मंदिर की प्राचीन शिल्पकला और प्राचीन लेख मंदिर के भूमिगत कमरे में रख कर उसे बन्द कर दिया गया है तथा एक भूतल इसी गांव की कोट धर्मशाला में होना बताया जाता है। जहां इस मंदिर का प्राचीन इतिहास दबा पड़ा है। नाणा गांव के विभिन्न शिलालेखों से यहाँ के मंदिर प्राचीन होने में तो दो मत नहीं है क्योंकि एक हजार वर्ष से अधिक पुराने उल्लेख तो मिल रहे हैं। जीवित स्वामी से विख्यात नाणा का भगवान महावीर स्वामी का मंदिर गांव के मध्य में स्थित है। इसकी विशालता एवं भव्यता के साथ इसकी शिल्पकला से इसकी प्राचीनता की झलक दिखाई पड़ती है। मंदिर के गर्भगृह, गुढ़ मण्डप व रंग मण्डप आद में अनेक प्रतिमाएं स्थापित है। मंदिर की प्रदिक्षणा में चौमुखी प्रतिमा की देहरी है जिसकी कला अद्भुत है। भगवान महावीर की प्रतिमा का तोरणयुक्त सुन्दर परिकर, शिल्पकला का शानदार नमूना है, जिसकी विभिन्न शिल्प आकृतियों दर्शनीय है। नाणा के मंदिर में नन्दीश्वर द्वीपका पाषाण पट्ट में नन्दीश्वर द्विप के शिखरबन्ध मंदिरों की बनावट और पास में लहराता समुद्र इस पट्ट की कलाकौशल्य का परिचायक है। प्रदिक्षणा की एक देहरी में दो बड़ी काउसग्गिया की भांति मूर्तियां है लेकिन इनकी मुखाकृति घिस गई है। इसी प्रकार इस मंदिर में कलापूर्ण प्रतिमाओं की भरमार है। बावन जिनालय वाले इस मंदिर के शिखर व घुमट का आकार व उंचाई विशाल होने के कारण भव्य लगता है। मंदिर का प्रवेश द्वार अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर की नवचोकी पर सं. १६५९ का एक लेख उत्कीर्ण है जिसमें अमरसिंह मायावीर नामक राजा ने त्रिभुवन नामक मंत्री के वंशज मूता नारायण को नाणा गांव भेंट देने का उल्लेख है। यात्रियों के ठहरने के लिये यहां धर्मशाला है जहां सभी सुविधाएं सुलभ है। मंदिर और धर्मशाला की व्यवस्था नाणा की वर्द्धमान आनन्दजी जैन पेढ़ी देखती है। नाणा तीर्थ जहां गोड़वाड़ की छोटी पंचतीर्थी में अपना स्थान बनाये हुए है तो साथ ही सिरोही जिले की पिण्डवाड़ा, नादिया आदि तीर्थो की पंचतीर्थी में भी इसे शामिल किया गया है। कहते हैं कि नाणक्यगच्छ का उद्गम स्थल भी नाणा ही है, इस गच्छ की उत्पत्ति वि. की बाहरवीं सदी से पूर्व हुई थी। नाणा तीर्थ पश्चिमी रेल्वे के दिल्ली-अहमदाबाद रेल लाइन पर नाणा स्टेशन से दो किलोमीटर दूर नाणा गांव में है जहां पहुंचने के लिये अनेक प्रकार की सवारियां उपलब्ध हैं।

मुलनायक भगवान
श्री महावीर भगवान, श्वेत वर्ण, पद्मासनस्थ, (श्वे. मंदिर) |
प्राचीनता :
यह तीर्थ महावीर भगवान के समय का बताया जाता है| जैसे कहा है, “नाणा, दियाना, नान्दिया जीवित स्वामी वान्दिया”| मंदिर में प्राप्त वि.सं. १६५९ तक के शिलालेखों से प्रमाणित होता है की यह सदियों तक जाहोजलालीपूर्ण रहा| लेकिन नाणा कब बसा, इसका इतिहास मिलना कठिन है|
श्री महावीर भगवान के जीवन काल की प्रतिमा शायद जिणोरद्वार के समय बदली गयी होगी, ऐसा प्रतीत होता है| क्योंकि वर्तमान प्रतिमा पर वि.सं. १५०५ माघ कृष्ण ९ शनिवार को श्री शान्तिसूरीश्वर्जी द्वारा प्रतिशित किये जाने का लेख उत्कीर्ण है | लेकिन यह प्रतिमा भी बहुत ही प्रभावशाली है|
परिचय :
यह तीर्थ प्रभु वीर के समय का माना जाने के कारण इसकी महान विशेषता है| नानक्यागच्छ का उत्पति स्थान यही है| इस गच्छ की उत्पति वि. की बारहवी सदी से पूर्व हुई होगी, ऐसा उल्लेखो से ज्ञात होता है| यह बामनवाडा पंचतीर्थी का एक तीर्थ स्थान माना जाता है| अमरसिंह माया वीर राजा ने त्रिभुवन मंत्री के वंशज श्री नारायण मूता को नाणा गाँव भेट दिया था| नारायण ने एक साहराव नाम का अरट भगवान की पूजा सेवा के लिए मंदिर को भेट दिया था| उस समय उपकेशगच्छीय आचार्य श्री सिंहसूरी विधमान थे| शिलालेख पर वि.सं. १६५९ भादवा शुक्ल ७ का लेख उत्कीर्ण है| उक्त अरट अभी भी जैन संघ के अधीन है| प्रतिवर्ष जेठ वदी ६ को ध्वजा चढ़ाई जाती है|
वर्तमान में इसके अतिरिक्त एक और मंदिर श्री मुनिसुव्रत स्वामी परमात्मा का है |

Image may contain: 2 people

Image may contain: 1 person, indoor

Image may contain: one or more people and indoor

‘‘नाणा-दियाणा-नांदिया जीवित स्वामी वांदिया।’’

"NANA DIYANA NANDIYA...JIVITSWAMI VANDIA"

" નાના-દિયાણા-નાંદિયા જીવિત સ્વામી વાંદિયા "

"जीवित स्वामी -महावीर स्वामी"

एक कहावत प्रचलित है - " नाणा दियाणा नांदिया - जीवित स्वामी वांदिया " । भगवान महावीर के विचरण-काल में ही उनकी ७ हाथ की काया के अनुसार उनके ज्येष्ठ भ्राता नंदीवर्धन महाराजा ने उनकी नयनरम्य पाषाण प्रतिमाये निर्माण कराई थी जिसके कारण इन्हे "जीवित महावीर स्वामी " कहा जाता है ।
ये सभी भगवान की मूर्ति 2500 वर्ष प्राचीन है।

नाणा तीर्थ
दियाणाजी तीर्थ
नांदिया तीर्थ


BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
LIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/
THANKS FOR VISITING.

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.