🌺🙏🌺ॐ ह्रीं श्री घंटाकर्ण महावीर सर्व बाधा निवाराय सुख शोभाग्यम कुरु कुरु स्वाहा।🌺🙏🌺
अपने पूर्व जन्म में, घंटाकर्ण महावीर तुंगभद्र नामक क्षत्रिय राजा थे।वे धार्मिक बंधुओं, धर्म परायण स्त्रियों व कुंवारी कन्याओं की लूटेरों से रक्षा करते थे।वे तीर कमान का इस्तेमाल करते थे।इसीलिए इनकी प्रतिमा जी में तीर कमान विद्यमान होते हैं। उन्हें घंटे की ध्वनि बहुत पसंद थी व उनके कान घंटे की आकृति के थे इसलिए वे घंटा-कर्ण-महावीर ( महान योद्धा) कहलाये।तुंगभद्र कुछ लोगों ( जो की लूट और आतंक का निशाना बने हुए थे) की रक्षा के लिए लूटेरों से लड़ते हुए मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। वे पुनर्जन्म लेकर घंटाकर्ण महावीर में अवतरित हुए।
गुजरात के बीजापुर के निकट स्थित महुडी नामक एक प्राचीन तीर्थ है।यह तीर्थ श्री घंटाकर्ण महावीर जैन मंदिर के लिए प्रचलित है व चमत्कारिक घंटाकर्ण महावीर देव को समर्पित है।पुराने समय में महुडी को मधुमती के नाम से जाना जाता था।खुदाई में प्राप्त मूर्तियों व कलाकृति के अवशेष इस स्थान के 2000 वर्ष पूर्व के इतिहास बताते हैं।
श्रीमद् आचार्य श्री बुद्धिसागर जी महाराज साहब के सानिध्य में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी।आचार्य श्री ने जब देखा की जैन धर्मावलंबी अपनी मनोकामना पूर्ण हेतु व अपनी रक्षा के लिए इधर उधर अन्य मंदिरों, तीर्थों पर जा रहे हैं, तब उन्हें एक शक्तिशाली जैन देवता की आवश्यकता महसूस हुई लोगों की धार्मिक सहायता कर सकें व बुरी शक्तियों से उनकी रक्षा कर सकें।आचार्य श्री ने तीन दिन तक कठिन साधना व अपनी महत्त्वपूर्ण शक्तियों से श्री घंटाकर्ण महावीर को हवन अग्नि द्वारा प्रत्यक्ष किया तथा उन्हें लोगों के कल्याण रक्षा हेतु परिबद्ध किया।
आचार्य श्री ने शीघ्र ही अग्नि में प्रकाशमान हुए घंटाकर्ण महावीर देव की आकृति बना डाली व आगे चलकर नदी तट के पत्थर से उनकी प्रतिमा जी बनायीं गयी क्योंकि राजस्थान से मार्बल पत्थर आने में समय लग जाता।श्रीमद् बुद्धिसागर महाराज साहब ने प्रतिमा जी में प्राण डालकर जीवंत किया।तब से लाखों श्रद्धालुओं ने अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण होते हुए महसूस किया व चमत्कार होते देखें हैं।52 वीर में से श्री घंटाकर्ण 30 वें वीर ( रक्षक देव) हैं। इनकी प्रतिमा जी बहुत ही चमत्कारिक हैं।हर दिन हजारों श्रद्दालु यहाँ अपनी मनोकामनाएं मन में लिए आते हैं।घंटाकर्ण महावीर सदैव उनकी रक्षा करते हैं जो उनमें आस्था रखते हैं।
अपने पूर्व जन्म में उन्हें सुखडी बहुत पसंद थी इसीलिए आज भी प्रसाद के रूप में उन्हें सुखडी चढ़ाने की प्रथा है।यह सुखडी का प्रसाद मंदिर जी के परिसर के भीतर ही ख़त्म करना पड़ता है, मंदिर जी के बाहर नहीं ले जा सकते। यह मंदिर चमत्कारों के लिए इतना प्रसिद्ध है की हर वर्ष यहाँ लाखों धर्मावलम्बी आते हैं।हर वर्ष काली चौदस को यहाँ हवन का आयोजन किया जाता है जिसमें 200,000 श्रद्दालू सम्मिलित होते हैं।
कृष्ण चौदस सर्व शक्तिमान श्री घंटाकर्ण महावीर देव का कृपा दिवस है। इस दिन सात्विक मनोभावों, समर्पण एवं निष्ठापूर्वक देव दरबार में हर मनोकामना देवकृपा से अवश्य पूर्ण होती है। श्री घंटाकर्ण महावीर देव रोग, शोक, भय, संकट, प्रेत बाधा, अग्नि भय का निवारण करने वाले प्रभावशाली देवता है जिन्हें जैन, हिंदू और बौद्ध परंपराओं में समान रूप से विशिष्ट गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है
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ASHOK SHAH & EKTA SHAHLIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/अपने पूर्व जन्म में, घंटाकर्ण महावीर तुंगभद्र नामक क्षत्रिय राजा थे।वे धार्मिक बंधुओं, धर्म परायण स्त्रियों व कुंवारी कन्याओं की लूटेरों से रक्षा करते थे।वे तीर कमान का इस्तेमाल करते थे।इसीलिए इनकी प्रतिमा जी में तीर कमान विद्यमान होते हैं। उन्हें घंटे की ध्वनि बहुत पसंद थी व उनके कान घंटे की आकृति के थे इसलिए वे घंटा-कर्ण-महावीर ( महान योद्धा) कहलाये।तुंगभद्र कुछ लोगों ( जो की लूट और आतंक का निशाना बने हुए थे) की रक्षा के लिए लूटेरों से लड़ते हुए मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। वे पुनर्जन्म लेकर घंटाकर्ण महावीर में अवतरित हुए।
गुजरात के बीजापुर के निकट स्थित महुडी नामक एक प्राचीन तीर्थ है।यह तीर्थ श्री घंटाकर्ण महावीर जैन मंदिर के लिए प्रचलित है व चमत्कारिक घंटाकर्ण महावीर देव को समर्पित है।पुराने समय में महुडी को मधुमती के नाम से जाना जाता था।खुदाई में प्राप्त मूर्तियों व कलाकृति के अवशेष इस स्थान के 2000 वर्ष पूर्व के इतिहास बताते हैं।
श्रीमद् आचार्य श्री बुद्धिसागर जी महाराज साहब के सानिध्य में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी।आचार्य श्री ने जब देखा की जैन धर्मावलंबी अपनी मनोकामना पूर्ण हेतु व अपनी रक्षा के लिए इधर उधर अन्य मंदिरों, तीर्थों पर जा रहे हैं, तब उन्हें एक शक्तिशाली जैन देवता की आवश्यकता महसूस हुई लोगों की धार्मिक सहायता कर सकें व बुरी शक्तियों से उनकी रक्षा कर सकें।आचार्य श्री ने तीन दिन तक कठिन साधना व अपनी महत्त्वपूर्ण शक्तियों से श्री घंटाकर्ण महावीर को हवन अग्नि द्वारा प्रत्यक्ष किया तथा उन्हें लोगों के कल्याण रक्षा हेतु परिबद्ध किया।
आचार्य श्री ने शीघ्र ही अग्नि में प्रकाशमान हुए घंटाकर्ण महावीर देव की आकृति बना डाली व आगे चलकर नदी तट के पत्थर से उनकी प्रतिमा जी बनायीं गयी क्योंकि राजस्थान से मार्बल पत्थर आने में समय लग जाता।श्रीमद् बुद्धिसागर महाराज साहब ने प्रतिमा जी में प्राण डालकर जीवंत किया।तब से लाखों श्रद्धालुओं ने अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण होते हुए महसूस किया व चमत्कार होते देखें हैं।52 वीर में से श्री घंटाकर्ण 30 वें वीर ( रक्षक देव) हैं। इनकी प्रतिमा जी बहुत ही चमत्कारिक हैं।हर दिन हजारों श्रद्दालु यहाँ अपनी मनोकामनाएं मन में लिए आते हैं।घंटाकर्ण महावीर सदैव उनकी रक्षा करते हैं जो उनमें आस्था रखते हैं।
अपने पूर्व जन्म में उन्हें सुखडी बहुत पसंद थी इसीलिए आज भी प्रसाद के रूप में उन्हें सुखडी चढ़ाने की प्रथा है।यह सुखडी का प्रसाद मंदिर जी के परिसर के भीतर ही ख़त्म करना पड़ता है, मंदिर जी के बाहर नहीं ले जा सकते। यह मंदिर चमत्कारों के लिए इतना प्रसिद्ध है की हर वर्ष यहाँ लाखों धर्मावलम्बी आते हैं।हर वर्ष काली चौदस को यहाँ हवन का आयोजन किया जाता है जिसमें 200,000 श्रद्दालू सम्मिलित होते हैं।
कृष्ण चौदस सर्व शक्तिमान श्री घंटाकर्ण महावीर देव का कृपा दिवस है। इस दिन सात्विक मनोभावों, समर्पण एवं निष्ठापूर्वक देव दरबार में हर मनोकामना देवकृपा से अवश्य पूर्ण होती है। श्री घंटाकर्ण महावीर देव रोग, शोक, भय, संकट, प्रेत बाधा, अग्नि भय का निवारण करने वाले प्रभावशाली देवता है जिन्हें जैन, हिंदू और बौद्ध परंपराओं में समान रूप से विशिष्ट गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है
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