भगवान श्री सुमतिनाथ जी के निर्माण के सुदीसsर्घ काल के पश्चात छठे तीर्थन्कर श्री पदमप्रभ जी का जन्म हुआ | कौशाम्बी नरेश महाराज धर की पट्टमहिषी सुसीमा देवी की रत्नकुक्षी से कार्तिक क्रष्णा त्रयोदशी के शुभ दिन प्रभु ने जन्म लिया | पदम लक्षण से युक्त होने से अथवा पदम शैया पर सोने का माता को दोहद होने से प्रभु का नाम पदमप्रभ रखा गया |
युवावस्था मे पदमप्रभ विवाहित और राज्यारुढ हुए | निष्काम भाव से उन्होने प्रजा का पालन किया | काल के परिपक्व हो्ने पर अपने पुत्र को राजपद प्रदान करके उन्होने कार्तिक क्रष्णा त्रयोदशी के पावन दिन दीक्षा अन्गीकार की | मात्र छह मास की तपश्चर्या से घाती कर्मो का क्षय कर उन्होने केवलज्ञान – केवलदर्शन प्राप्त किया | प्रथम पीयूष वर्षिणी मे ही चतुर्विध तीर्थ की स्थापना करके प्रभु ने सन्सार के लिए कल्याण का द्वार उदघाटित किया | जीवन के अन्त मे मार्गशीर्ष क्रष्णा एकादशी के दिन प्रभु ने निर्वाण पद प्राप्त किया |
भगवान के धर्म परिवार मे सुव्रत आदि एक सौ सात गणधर ,तीन लाख तीस हजार श्रमण ,चार लाख बीस हजार श्रमणिया ,दो लाख छिहत्तर हजार श्रावक एवम पान्च लाख पान्च हजार श्राविकाए थी |
भगवान के चिन्ह का महत्व
रक्त कमल – यह भगवान पह्मप्रभु का चिन्ह है | काव्य शास्त्रों में कमल पवित्र प्रेम का प्रतीक माना जाता है | जो मन प्रभु के चरणों से प्रेम करता है , वह कमल की तरह पवित्र बन जाता है | पह्म नाम भी कमल का ही पर्यायवाची है | भगवान पदमप्रभु के शरीर की शोभा रक्त कमल के समान थी | हमें संसार में निर्लिप्त जीवन जीना चाहिए | गीता में भी ‘पह्मपत्र मिवाम्भसि ‘ – जल में कमल की तरह रहने की शिक्षा दी गई है |
6 શ્રી પદ્મપ્રભુ સ્વામી.....
(1) સમ્યક્ત્વ પામ્યા પછીના ભવ- ત્રણ
(2) જન્મ અને દિક્ષા સ્થળ - કૌશામ્બીનગરી.
(3) તીર્થંકરનામકર્મ..અપરાજિતરા
(4) દેવલોકનો અંતિમ ભવ- ઉપરની ગ્રીવેયક.
(5) ચ્યવન કલ્યાણક -પોષ વદ-૬ ચિત્રા નક્ષત્ર માં.
(6) માતા નું નામ- સુસીમાદેવી અને પિતાનું નામ-શ્રીધર રાજા.
(7) વંશ - ઇક્ષ્વાકુવંશ અને ગોત્ર કાશ્યપ.
(8) ગર્ભવાસ - નવમાસ અને છ દિવસ.
(9) લંછન - પદ્મ. વર્ણ - સુવર્ણ.
(10) જન્મ કલ્યાણક- આસો વદ- ૧૨ ચિત્રા નક્ષત્ર માં.
(11) શરીર પ્રમાણ - ૨૫૦ ધનુષ્ય .
(12) દિક્ષા કલ્યાણક- આસો વદ- ૧૩ ચિત્રા નક્ષત્ર માં.
(13) કેટલા જણ સાથે દિક્ષા- ૧૦૦૦ રાજકુમાર સાથે.
(14) દિક્ષાશીબીકા- નિવૃત્તિ અને દિક્ષાતપ- એક ઉપવાસ.
(15) પ્રથમ પારણું - બ્રહ્મસ્થળ નગરી માં સોમસેન ક્ષીર થી કરાવ્યું.
(16) છદ્મસ્થા અવસ્થા - છ માસ.
(17) કેવલજ્ઞાન કલ્યાણક- તપ ચોથભક્ત, છત્રવ્રુક્ષ ની નીચે કૌશમ્બી નગરીમાં ચૈત્રસુદ-પૂનમે ચિત્રા નક્ષત્રમાં.
(18) શાશનદેવ-કુસુમયક્ષ અને શાશનદેવી-શ્યામાદેવી.
(19) ચૈત્યવ્રુક્ષ ની ઉંચાઈ -દોઢ ગાઉં.
(20)પ્રથમ દેશના નો વિષય - સંસાર ભાવના.
(21) સાધુ- ૩૩૦,૦૦૦ અને સાધ્વી - રતિ આદિ ૪૨૦૦૦૦.
(22) શ્રાવક - ૨૭૬૦૦૦ અને શ્રાવિકા - ૫૦૫૦૦૦.
(23) કેવળજ્ઞાની-૧૨૦૦૦, મન:પર્યાવજ્ઞાની-૧૦૩૦૦ અને અવધિજ્ઞાની -૧૦૦૦૦.
(24) ચૌદપૂર્વધર-૨૩૦૦ અને વૈક્રિય લબ્ધિઘર- ૧૬૧૦૮ તથા વાદી -૯૬૦૦
(25) આયુષ્ય- ૩૦ લાખ પૂર્વ.
(26) નિર્વાણકલ્યાણક- કારતકવદ-૧૧ ચિત્રા -નક્ષત્ર માં.
(27) મોક્ષ- સમેત શિખર,મોક્ષતપ માસક્ષમન અને મોક્ષાસન કાર્યોત્સર્ગાસન.
(28) મોક્ષ સાથે - ૩૦૮ સાધુ સાથે.
(29) ગણધર -પ્રધોતન આદિ-૧૦૭.
(30) શ્રી સુપાર્શ્વ નાથ પ્રભુ નું અંતર- નવ હજાર કોટી સાગરોપમ.
श्री पदमप्रभ जी
आजे पद्मप्रभ स्वामी भगवाननुं मोक्ष कल्याणक छे।
पद्मप्रभ स्वामी भगवान विचारतां विचारतां समेतशिखर पधारे छे। त्यां मासक्षमण तप करतां , कार्योत्सर्ग मुद्रामां 308 नी साथे कारतक वद 11 ना दिवसे , कन्या राशि अने चित्रा नक्षत्रमां मोक्षे गया। त्यारे प्रभुनो चारित्र पर्याय 1 लाख पूर्व - 16 पूर्वांग वर्षनो। भगवाननुं आयुष्य 30 लाख पूर्व वर्षनुं आयुष्य पूर्ण थयेल।
भगवान श्री सुमतिनाथ जी के निर्माण के सुदिर्घ काल के पश्चात छठे तीर्थन्कर श्री पदमप्रभ जी का जन्म हुआ | कौशाम्बी नरेश महाराज धर की पट्टमहिषी सुसीमा देवी की रत्नकुक्षी से कार्तिक क्रष्णा त्रयोदशी के शुभ दिन प्रभु ने जन्म लिया | पदम लक्षण से युक्त होने से अथवा पदम शैया पर सोने का माता को दोहद होने से प्रभु का नाम पदमप्रभ रखा गया |
युवावस्था मे पदमप्रभ विवाहित और राज्यारुढ हुए | निष्काम भाव से उन्होने प्रजा का पालन किया | काल के परिपक्व हो्ने पर अपने पुत्र को राजपद प्रदान करके उन्होने कार्तिक क्रष्णा त्रयोदशी के पावन दिन दीक्षा अन्गीकार की | मात्र छह मास की तपश्चर्या से घाती कर्मो का क्षय कर उन्होने केवलज्ञान - केवलदर्शन प्राप्त किया | प्रथम पीयूष वर्षिणी मे ही चतुर्विध तीर्थ की स्थापना करके प्रभु ने सन्सार के लिए कल्याण का द्वार उदघाटित किया |
जीवन के अन्त मे मार्गशीर्ष क्रष्णा एकादशी के दिन प्रभु ने निर्वाण पद प्राप्त किया |
भगवान के धर्म परिवार मे सुव्रत आदि एक सौ सात गणधर ,तीन लाख तीस हजार श्रमण ,चार लाख बीस हजार श्रमणिया ,दो लाख छिहत्तर हजार श्रावक एवम पान्च लाख पान्च हजार श्राविकाए थी |
भगवान के चिन्ह का महत्व
भगवान के चिन्ह का महत्व
रक्त कमल - यह भगवान पह्मप्रभु का चिन्ह है | काव्य शास्त्रों में कमल पवित्र प्रेम का प्रतीक माना जाता है | जो मन प्रभु के चरणों से प्रेम करता है , वह कमल की तरह पवित्र बन जाता है | पह्म नाम भी कमल का ही पर्यायवाची है | भगवान पदमप्रभु के शरीर की शोभा रक्त कमल के समान थी | हमें संसार में निर्लिप्त जीवन जीना चाहिए | गीता में भी 'पह्मपत्र मिवाम्भसि ' - जल में कमल की तरह रहने की शिक्षा दी गई है |
तीर्थकर नाम :- श्री पद्मप्रभ भगवान
माता का नाम :- माता सुसीमा देवी
पिता का नाम :- राजा श्रीधर
जन्म कुल :- इक्ष्वाकुवंश
च्यवन तिथी :- माघ कृष्णा 6
च्यवन व जन्म स्थान :- कौशाम्बी
जन्म तिथी :- कार्तिक कृष्णा 12
जन्म नक्षत्र :- चित्रा
लक्षण :- पद्म
शरीर प्रमाण :- 250 धनुष
शरीर वर्ण :- लाल
विवाहित/अविवाहित :- विवाहित
दीक्षा स्थान :- कौशाम्बी
दीक्षा तिथी :- कार्तिक कृष्णा 13
दीक्षा पश्चात प्रथम पारणा :- 2 दिन बाद खीर से
छद्मस्त काल :- छः महीने
केवलज्ञान स्थान :- कौशाम्बी
केवलज्ञान तिथी :- चैत्री पूर्णिमा
वृक्ष जिसके नीचे केवलज्ञान हुआ :- छत्र वृक्ष
गणधरों की संख्या :- 108
प्रथम गणधर :- प्रद्योतन स्वामी
प्रथम आर्य :- रति
यक्ष का नाम :- कुसुम
यक्षिणी का नाम :- श्यामा देवी
मोक्ष तिथी :- मिगसर कृष्णा 11
प्रभु के संग को प्राप्त साधु :- 308 साधु
मोक्ष स्थान :- सम्मेतशिखर
माता का नाम :- माता सुसीमा देवी
पिता का नाम :- राजा श्रीधर
जन्म कुल :- इक्ष्वाकुवंश
च्यवन तिथी :- माघ कृष्णा 6
च्यवन व जन्म स्थान :- कौशाम्बी
जन्म तिथी :- कार्तिक कृष्णा 12
जन्म नक्षत्र :- चित्रा
लक्षण :- पद्म
शरीर प्रमाण :- 250 धनुष
शरीर वर्ण :- लाल
विवाहित/अविवाहित :- विवाहित
दीक्षा स्थान :- कौशाम्बी
दीक्षा तिथी :- कार्तिक कृष्णा 13
दीक्षा पश्चात प्रथम पारणा :- 2 दिन बाद खीर से
छद्मस्त काल :- छः महीने
केवलज्ञान स्थान :- कौशाम्बी
केवलज्ञान तिथी :- चैत्री पूर्णिमा
वृक्ष जिसके नीचे केवलज्ञान हुआ :- छत्र वृक्ष
गणधरों की संख्या :- 108
प्रथम गणधर :- प्रद्योतन स्वामी
प्रथम आर्य :- रति
यक्ष का नाम :- कुसुम
यक्षिणी का नाम :- श्यामा देवी
मोक्ष तिथी :- मिगसर कृष्णा 11
प्रभु के संग को प्राप्त साधु :- 308 साधु
मोक्ष स्थान :- सम्मेतशिखर
छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु जी भगवान चैत्यवंदन/स्तुति
कोसम्बीपुर राजियो, धर नरपति ताय;
पद्मप्रभु प्रभुतामयी, सुसीमा जस माय।। १
तीस लाख पुरव तणु, जिन आयु पाळी;
धनुष अढिशे देहड़ी, सवि कर्मणे टाली।।२
पद्मलंछन परमेश्वरू ए, जिनपद पद्मनी सेव;
पद्मविजय कहे कीजिये, भविजन सहु नितमेव।।३
पद्मप्रभु प्रभुतामयी, सुसीमा जस माय।। १
तीस लाख पुरव तणु, जिन आयु पाळी;
धनुष अढिशे देहड़ी, सवि कर्मणे टाली।।२
पद्मलंछन परमेश्वरू ए, जिनपद पद्मनी सेव;
पद्मविजय कहे कीजिये, भविजन सहु नितमेव।।३
स्तुति
अढिशे धनुष काया, त्यक्त मद मोह माया,
सुसीमा जसमाया ,शुक्ल जे ध्यान आया।
केवल वर पाया, चामरादि धराया,
सेवे सुर राया, मोक्ष नगरे सिधाया।।
अढिशे धनुष काया, त्यक्त मद मोह माया,
सुसीमा जसमाया ,शुक्ल जे ध्यान आया।
केवल वर पाया, चामरादि धराया,
सेवे सुर राया, मोक्ष नगरे सिधाया।।
।। *कौशाम्बी तीर्थाधिपति श्री पद्मप्रभ स्वामी नमः * ।।
!! मगसर वद अग्यारस !!
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
वीतराग परमात्मा,
देवादि देव त्रिलोकीनाथ,
दीनबंदु दीनानाथ
वीतराग परमात्मा,
देवादि देव त्रिलोकीनाथ,
दीनबंदु दीनानाथ
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
*६ छठा तीर्थंकर श्री पद्मप्रभु स्वामी* का *मोक्ष* कल्याणक है।।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
।। जाप ।।
श्री *पद्मप्रभु* स्वामी *पारंगतया* नमः
श्री *पद्मप्रभु* स्वामी *पारंगतया* नमः
द्वीपसमूह की शोभा जम्बूद्वीप..रमणीय कलाओं,मुक्तिवधुके अनंत जीवोका जन्मदात्रा,आज अपने कीर्तिमुकुट की शोभा बढ़ाते हुए आत्यंतिक हर्षित मुद्रामें स्वयंचित्त था। कारण ही असाधारण था,अनंतखंड के अधिपति आज अपने अंतिम भव को लेकर उसके कोख में अवतरित हुए थे।.....
इश्वाकुवंश के काश्यपगोत्र धारी राजा धरण आज कौशाम्बी को सुसज्जित कराने स्वयं ही लगे हुए थे।किसी प्रकारकी त्रुटि वह जानना और देखना नहीं चाहते थे।पितृहृदय ही कठोर नहीं होता यह प्रत्यय आज कौशाम्बी की धरा देख रही थी।
माता सुसीमा जगतमाता हुयी....अपराजित विमानवासी अहर्मिन्द्र ने आज माता के गर्भ से जन्म लिया था,,पद्मप्रभु नामसे संसार ने जयकारा लगाया...वह पूण्यतिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी की थी.... दो सौ पचास अवगाहना से मंडित तथा तिस लाख पूर्व आयुके धारी पद्मप्रभु तीर्थंकर सुमतिनाथ भगवान के नब्बे हजार करोड़ सागर वर्ष पश्चात अवतरित हुए थे।
जीवन में सुख का समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चल पाता,दुःख की घड़िया जल्दी नहीं बितती, जीवन में मोड़ कब आये बताना असंभव सा होता है,ठीक ऐसा ही समय उस क्षण आया जब काल की गति भी ठहराव लेकर आयी....सोलह पूर्व कम तक की आयु का उन्होंने भोगादि में व्यय कर लिया..और अचानक ही वह संसारप्रिय घटना साक्षी बनी ...भगवान का अतिप्रिय विशालकाय हाथी अचानक राजदरबारमें आकर बैठ गया...चारो प्रकारके अन्न-जल परोक्ष रखकर भी उसकी तरफ न देखते हुए अश्रुपूरित नेत्रोसे उसने अपने प्राण छोड़ दिए,अपने प्रिय हाथी का मरण देख प्रभु विचलित हुए और श्रुष्टि का अकल्पनिय घटना का जन्म हुआ..भगवान को जातिस्मरण हुआ और उसी समय उन्होंने अपना राज्यभार त्याग मुनिव्रत को अंगीकार कर लिया...!
मनोहार नामक वन की और प्रस्थान कर भगवान ने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन गोधूलिके समय एक हजार राजाओ के साथ निर्ग्रन्थ दीक्षा अंगीकार कर ली!!
इश्वाकुवंश के काश्यपगोत्र धारी राजा धरण आज कौशाम्बी को सुसज्जित कराने स्वयं ही लगे हुए थे।किसी प्रकारकी त्रुटि वह जानना और देखना नहीं चाहते थे।पितृहृदय ही कठोर नहीं होता यह प्रत्यय आज कौशाम्बी की धरा देख रही थी।
माता सुसीमा जगतमाता हुयी....अपराजित विमानवासी अहर्मिन्द्र ने आज माता के गर्भ से जन्म लिया था,,पद्मप्रभु नामसे संसार ने जयकारा लगाया...वह पूण्यतिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी की थी.... दो सौ पचास अवगाहना से मंडित तथा तिस लाख पूर्व आयुके धारी पद्मप्रभु तीर्थंकर सुमतिनाथ भगवान के नब्बे हजार करोड़ सागर वर्ष पश्चात अवतरित हुए थे।
जीवन में सुख का समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चल पाता,दुःख की घड़िया जल्दी नहीं बितती, जीवन में मोड़ कब आये बताना असंभव सा होता है,ठीक ऐसा ही समय उस क्षण आया जब काल की गति भी ठहराव लेकर आयी....सोलह पूर्व कम तक की आयु का उन्होंने भोगादि में व्यय कर लिया..और अचानक ही वह संसारप्रिय घटना साक्षी बनी ...भगवान का अतिप्रिय विशालकाय हाथी अचानक राजदरबारमें आकर बैठ गया...चारो प्रकारके अन्न-जल परोक्ष रखकर भी उसकी तरफ न देखते हुए अश्रुपूरित नेत्रोसे उसने अपने प्राण छोड़ दिए,अपने प्रिय हाथी का मरण देख प्रभु विचलित हुए और श्रुष्टि का अकल्पनिय घटना का जन्म हुआ..भगवान को जातिस्मरण हुआ और उसी समय उन्होंने अपना राज्यभार त्याग मुनिव्रत को अंगीकार कर लिया...!
मनोहार नामक वन की और प्रस्थान कर भगवान ने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन गोधूलिके समय एक हजार राजाओ के साथ निर्ग्रन्थ दीक्षा अंगीकार कर ली!!
पुनः एक कांतिओज की प्रसून कालिया जन्म लेनेवाली थी..वर्धमान नगर आज अपनी धन्यता मनानेवाला था...राजा सोमदत्त अत्रो-अत्रो कहकर सुखद आलाप कर रहे थे...और मुनिराज पद्मप्रभु ने राजा द्वारा पड़गाहन को स्वीकारा,आहार सफल हुआ..पंषाश्चर्य हुए।देवोने जयकारा लगाया,और पुनः प्रभु जंगल की और प्रस्थापित हुए,छद्मस्थ अवस्था के छः माह समाप्त हुए...और अपने ही दीक्षावन अर्थात मनोहार वन में शिरीष वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ होकर चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के शुक्ल समय में प्रभु चार घातिया कर्मो को दण्डित करने में सफल हो गए।
जहां प्रत्येक जिव को समता पूर्वक आश्रय प्राप्त होता है ऐसे महान समवसरण की रचना हुयी,जिसमे एक सौ ग्यारह गणधर सहित तिन लाख तिस हजार मुनिदेव, चार लाख बिस हजार आर्यिकाये,तीन लाख श्रावक,पांच लाख श्राविकाएं,असंख्यात देव-देवियां तथा नाना तिर्यंच ने अपने आत्मा का कल्याण कमल चिंन्ह धारी प्रभु की दिव्य-ध्वनि सुन प्राप्त किया।
जहां प्रत्येक जिव को समता पूर्वक आश्रय प्राप्त होता है ऐसे महान समवसरण की रचना हुयी,जिसमे एक सौ ग्यारह गणधर सहित तिन लाख तिस हजार मुनिदेव, चार लाख बिस हजार आर्यिकाये,तीन लाख श्रावक,पांच लाख श्राविकाएं,असंख्यात देव-देवियां तथा नाना तिर्यंच ने अपने आत्मा का कल्याण कमल चिंन्ह धारी प्रभु की दिव्य-ध्वनि सुन प्राप्त किया।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी का वह अंतिम अवसर...गिरी सम्मेद पुनः आज अपने शिरोमुकुटमें एक तीर्थंकर को धारण करनेवाला था...एक हजार मुनिराजों के साथ भगवान ने प्रतिमायोग धारण किया...शेष कर्मो ने भी हार मान ली ...भगवान ने महानिर्वाण प्राप्त किया...और भगवान जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्रके छठवे तीर्थंकर बन गए
आज छट्ठे तीर्थंकर श्री पद्मप्रभु स्वामी का मोक्ष कल्याणक है।।
।। जाप ।।
श्री पद्मप्रभु स्वामी पारंगतया नमः
श्री पद्मप्रभु स्वामी पारंगतया नमः
તિર્થંકર (શ્રી પદ્મપ્રભુ ભગવાન)
શ્રી પદ્મપ્રભુ ભગવાન હાલના વય ના છટા (૬) જૈન તીર્થંકર છે. ભગવાન પદ્માપ્રભુ નો જન્મ કૌશંબી, ઉત્તરપ્રદેશ મા થયો હતો. તેમના પિતા નુ નામ રાજા ધાર હતુ અને માતા નુ નામ સુસીમા હતુ. જીવન લાંબા ગાળામાં બાદ તેઓ ૧૦૦૦ અન્ય પુરુષોની સાથે કારતક મહિનાના ઘેરા અડધા 13 દિવસે દીક્ષા લીધી હતી. દીક્ષા અને દુન્યવી જીવન ત્યાગ ના ૬ મહિના પછી પદ્માપ્રભુ ભગવાન સંપૂર્ણ ચંદ્ર ચૈત્ર મહિનાના દિવસ 15 મા દિવસે અને મોઢેરા ની નક્ષત્ર પર કેવલજ્ઞાન પ્રાપ્ત કર્યુ હતુ. પદ્માપ્રભુ ભગવાન સમમેત શિખર પર્વત પર નિર્વાણ પ્રાપ્ત કર્યુ હતુ.
પદ્મપ્રભુ ભગવાન ૩૦ લાખ પૂર્વા માટે જીવન જીવ્યા હતા. તપસ્વીઓ તરીકે ૧૩ પૂર્વા વર્ષ વિતાવ્યા હતાઅને ૬ મહિના ધ્યાન અને આધ્યાત્મિક અભ્યાસમાં તરીકે વિતાવિયા હતા.પદ્માપ્રભુ ભગવાન ની ઊંચાઈ ૭૫૦ મીટર્સ (ધનુષ – ૨૫૦) હતુ.
તિર્થંકર – શ્રી પદ્માપ્રભુ ભગવાન
પિતા – રાજા ધાર
માતા – રાણી સુસીમા
જન્મ સ્થાન – કૌશંબી, ઉત્તરપ્રદેશ
નિર્વાણ સ્થળ – સમેત શીખરજી
જીવન અવધી – ૩૦,૦૦,૦૦૦ પૂર્વા (૧ પૂર્વા = ૮૪ લાખ વર્ષ)
ઉચાઈ – ૭૫૦ મીટર્સ
શ્રી પદ્મપ્રભુ ભગવાન હાલના વય ના છટા (૬) જૈન તીર્થંકર છે. ભગવાન પદ્માપ્રભુ નો જન્મ કૌશંબી, ઉત્તરપ્રદેશ મા થયો હતો. તેમના પિતા નુ નામ રાજા ધાર હતુ અને માતા નુ નામ સુસીમા હતુ. જીવન લાંબા ગાળામાં બાદ તેઓ ૧૦૦૦ અન્ય પુરુષોની સાથે કારતક મહિનાના ઘેરા અડધા 13 દિવસે દીક્ષા લીધી હતી. દીક્ષા અને દુન્યવી જીવન ત્યાગ ના ૬ મહિના પછી પદ્માપ્રભુ ભગવાન સંપૂર્ણ ચંદ્ર ચૈત્ર મહિનાના દિવસ 15 મા દિવસે અને મોઢેરા ની નક્ષત્ર પર કેવલજ્ઞાન પ્રાપ્ત કર્યુ હતુ. પદ્માપ્રભુ ભગવાન સમમેત શિખર પર્વત પર નિર્વાણ પ્રાપ્ત કર્યુ હતુ.
પદ્મપ્રભુ ભગવાન ૩૦ લાખ પૂર્વા માટે જીવન જીવ્યા હતા. તપસ્વીઓ તરીકે ૧૩ પૂર્વા વર્ષ વિતાવ્યા હતાઅને ૬ મહિના ધ્યાન અને આધ્યાત્મિક અભ્યાસમાં તરીકે વિતાવિયા હતા.પદ્માપ્રભુ ભગવાન ની ઊંચાઈ ૭૫૦ મીટર્સ (ધનુષ – ૨૫૦) હતુ.
તિર્થંકર – શ્રી પદ્માપ્રભુ ભગવાન
પિતા – રાજા ધાર
માતા – રાણી સુસીમા
જન્મ સ્થાન – કૌશંબી, ઉત્તરપ્રદેશ
નિર્વાણ સ્થળ – સમેત શીખરજી
જીવન અવધી – ૩૦,૦૦,૦૦૦ પૂર્વા (૧ પૂર્વા = ૮૪ લાખ વર્ષ)
ઉચાઈ – ૭૫૦ મીટર્સ
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