इसलिए किया जाता है क्योकि सिद्ध भगवान
कि पहचान कराने वाले अरिहंत ही है।
अरिहंत मुनि जैसे होते है और सिद्ध भगवन निरंजन
है व अशरीरी होने से निराकार है।
इस वक्त तिरछा लोक के महाविदेह क्षेत्र में २०
अरिहंत देव है और वे साधू कि तरह अचित आहार
करते है।
अरिहंत देव काल करके मोक्ष में जाते है ।
इस भरत क्षेत्र के आखरी अरिहंत (तीर्थंकर)
महावीर स्वामी अभी सिद्ध क्षेत्र में है ।
२४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव,
९ प्रतिवासुदेव, ये त्रेसठ महापुरुष हर
अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी में होते हैं ।
इन्हें त्रिषष्ठिशलाका पुरुष कहते हैं । इनकी संख्या न
घटती हैं, न बढती हैं ।
जैन धर्म में क्रमश: चौबीस तीर्थंकर, बारह
चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ वासुदेव और
नौ प्रति वासुदेव मिलाकर कुल ६३ पुरुष हुए हैं।
वर्तमान काल चौबीस तीर्थंकर :
(१) ऋषभ,
(२) अजित,
(३) संभव,
(४) अभिनंदन,
(५) सुमति,
(६) पद्मप्रभ,
(७) सुपार्श्व,
(८) चंद्रप्रभ,
(९) सुविधिनाथ
(१०) शीतल,
(११) श्रेयांश,
(१२) वासुपूज्य,
(१३) विमल,
(१४) अनंत,
(१५) धर्म,
(१६) शांति,
(१७) कुन्थु,
(१८) अरह,
(१९) मल्लि,
(२०) मुनिसुव्रत,
(२१) नमि,
(२२) नेमि,
(२३) पार्श्वनाथ और
(२४) महावीर।
*बारह चक्रवर्ती :
(१) भरत,
(२) सगर,
(३) मघवा,
(४) सनतकुमार,
(५) शांति,
(६) कुन्थु,
(७) अरह,
(८) सुभौम,
(९) पदम,
(१०) हरिषेण,
(११) जयसेन और
(१२) ब्रह्मदत्त।
नौ बलभद्र :
(१) अचल,
(२) विजय,
(३) भद्र,
(४) सुप्रभ,
(५) सुदर्शन,
(६) आनंद,
(७) नंदन,
(८) पदम और
(९) राम।
नौ वासुदेव :
(१) त्रिपृष्ठ,
(२) द्विपृष्ठ,
(३) स्वयम्भू,
(४) पुरुषोत्तम,
(५) पुरुषसिंह,
(६) पुरुषपुण्डरीक,
(७) दत्त,
(८) नारायण और
(९) कृष्ण।
नौ प्रति वासुदेव :
(१) अश्वग्रीव,
(२) तारक,
(३) मेरक,
(४) मुध,
(५) निशुम्भ,
(६) बलि,
(७) प्रहलाद,
(८) रावण और
(९) जरासंघ।
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