ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

श्री नेमिनाथ भगवान / जीवित स्वामी तलाजा तीर्थ

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ये प्रतिमा कृष्ण महाराजाने बनवाई है। ये नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा 87000 वर्ष प्राचीन है। जब नेमिनाथ भगवान जीवित थे , तब ये प्रतिमा बनाई गई है। 

जब कृष्ण महाराजा के सैन्य पर जरासंघ राजाने जरा विद्या का प्रयोग किया तब पूरा सैन्य वयस्कर और मूर्छित हो गया। नेमिकुमार के कहने पर कृष्ण महाराजाने अठ्ठम का तप किया , और कृष्ण महाराजा के पूरे सैन्य का ध्यान नेमिकुमारने रखा। कृष्ण महाराजा के अठ्ठम तप के प्रभाव से तब पार्श्वनाथ प्रभु की शासन देवी पद्मावती हाजर हुई । प्रसन्न होकर उन्होंने पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा दी। वो प्रतिमा का स्नात्र जल सैन्य पर डालने से , जैसे आलस छोड़ कर व्यक्ति जागृत होता है ऐसे पूरा सैन्य आलस छोड़कर जागृत और चैतन्यवन्त हुआ। बाद में ये युद्ध में कृष्ण महाराजा की जीत हुई।

कृष्ण महाराजा वासुदेव है। शलाका पुरुष है। शलाका पुरुष कृतज्ञ होते है। ये कार्य सिद्ध हुआ उस में नेमिकुमारने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। कृतज्ञता से प्रेरित होकर उन्होंने नेमिनाथ भगवान की एक प्रतिमा बनवाई , और जहाँ उन्होंने अठ्ठम तप का पारणा किया था वहाँ गाँव बसाया , और जिनालय बनाकर वहाँ ये नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा भरवाई , प्रतिष्ठा की । वो गाँव का नाम पारणा रखा। ये प्रतिमाजी वहाँ गाँव में बहुत वर्षो तक रही है और पूजाति रही । उनके प्राचीन उल्लेख भी मिलते है।

आम्रदेवसूरि रचित समरशाह रास में लिखा है की , समराशाह संघ के साथ शत्रुंजय की यात्रा करके गुजरात जाते समय रास्ते में वढवाण होकर , मांडल होकर पारणा में जीवित स्वामी , नेमिनाथ प्रभु को वंदन करते गए थे ।

दूसरा एक उल्लेख प्राचीन चैत्यवंदन में आता है। गाथा ऐसी है।

कन्नउज्जनिव निवेसिय , वरजिणभवणंमि पाडला गामे।
अईचिरमुतिं नेमिं थुणि, तह संखेसरं पासं ।

श्री महेन्द्रसूरि रचित अष्टोत्तरी तीर्थमाला में ये गाथा है।

ये पारणा नाम बाद में पाटला - पाडला ऐसा अपभ्रंश हुआ है। ये गाँव आज विद्यमान है। मुजपुर - शंखेश्वर दोनो ये गाँव पास में है । बहुत वर्षो तक ये प्रतिमाजी वहाँ गाँव में पूजाति रही , बाद में गाँव के लोग दूसरी जगह गये। तब गाँव देरासर मांगलिक करना पड़े ऐसी स्थिति आ गई थी। बाद में वहा पास में मुजपुर नाम का समृद्ध गाँव था। वहाँ ये प्रतिमाजी को ले जाया गया था। अंत में ये प्रतिमाजी मुजपुर ही थी । ( आधार : शंखेश्वर तीर्थ भाग 1 , लेखक : श्री जयंतविजयजी , प्रु : 89 )

एक दिन पूज्यपाद शासन सम्राट श्री नेमिसूरि महाराज साहेब मुजपुर पधारे। देरासर में दर्शन करके संघ को कहा की ऐसे प्रभाव संपन्न प्रभुजी यही है , उस के बदले ये प्रतिमाजी कोई तीर्थ में पधरावो , इससे हजारो लोगो को दर्शन , पूजन का लाभ मिल सके। संघे ने ये बात मान ली। उस समय तलाजा तीर्थ में जीणोद्धार की बात चल रही थी। पूज्यश्री की आज्ञा से ये प्रभुजी तलाजा लाये गये। स्वतंत्र जिनालय बनाकर ये प्रतिमा जी को पधराना था। तब तलाजा गाँव में से पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा मिली। इसलिये पार्श्वनाथ प्रभु को मूलनायक बनाया और ये नेमिनाथ प्रभुजी को बाजु के गभारे में मूलनायक बनाया ।

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