ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

देव और अरिहंत

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देव और अरिहंत 
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देव-देवी मन्त्रों से आकर्षित होते हैं. 
दुष्ट साधक अहंकारवश उन्हें मन्त्रों से बाँध भी देते हैं. 

समकितधारी शासनदेव भी मन्त्रों से बंध जाते हैं.

एक गुरु दूसरे गुरु पर ईर्ष्यावश "मूठ" चलाते हुवे देखे गए हैं.
( मन्त्रों का प्रयोग भी करते हैं "मैले तंत्र" द्वारा).

परन्तु "अरिहंत" ?

बिना कुछ किये "इन्द्र" का "सिंहासन" भी 
"डोलता" है जब जब अरिहंत का "जन्म" होता है. 
इतना जबरदस्त उनका "पुण्य" होता है. 

वो किसी से नहीं बंधते 
और ना ही किसी को बांधते हैं. 

अब भी कोई भैरूंजी, बाबोसा और पित्तरजी को ही बड़ा मानें, 
उनको धोके, मान्यता करे, 
तो वो उनकी "समझ" है. 

विशेष: 
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जैनों के लिए सबसें बड़े "देव" अरिहंत ही हैं. 
इसमें किसी को "शंका" नहीं होनी चाहिए. 

जो ये बात नहीं "प्रकट" में मानते, 
वो जैन धर्म से "पथ-भ्रष्ट" हैं, 
ऐसा जानना. 

फोटो: श्री स्फुर्लिंग पार्श्वनाथ 
(स्फटिक)
आज ही "अहमदाबाद" में "स्थापित" हुवे हैं.
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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