आत्म-चिन्तन
~ मैं आत्मा शाश्वत रत्नत्रय निधि का स्वामी हूँ । अनन्त सुख-शान्ति-सन्तोष का भण्डार हूँ ।
~ मैं आत्मा सिद्ध के समान शुद्ध हूँ, चैतन्य का पुंज हूँ, अनन्त शक्ति का धनी हूँ, मैं सबको जानने-देखने वाला दुनिया का सुन्दरतम पदार्थ हूँ ।
~ मैं स्वयं सुन्दर हूँ । जिसका कोई रूप नहीं, ऐसा अरूपी अमूर्तिक हूँ । अपने सुन्दर रूप को टटोलूँ, खोजूँ तो जरूर दर्शन पाऊँगा, पा गया तो तृप्त हो जाऊँगा ।
~ जिसे मैं बाहर देख रहा हूँ वह जड़ है, नश्वर है । और देखने वाला मैं तो अपने ही अन्दर छिपा हुआ बैठा हूँ । अपने को अपने में से अभिन्न चिदानन्द आत्म-प्रभु निहारूँ ।
~ अरे, बाहर में मैं किसकी आवाज सुनना चाह रहा हूँ । कर्णप्रिय मधुर संगीत की ? क्या यही कर्णों का सौन्दर्य है ? नहीं, नहीं, मुझे अन्तरात्मा पुकार रही है । मैं तो उसकी मधुरिम, कर्मक्षयकारिणी, सुन्दर, आत्मानन्द-दायिनी, सहजानन्द-दायिनी आवाज को ही सुननेवाला हूँ ।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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