ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

आत्म-चिन्तन

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आत्म-चिन्तन 

~ मैं आत्मा शाश्वत रत्नत्रय निधि का स्वामी हूँ । अनन्त सुख-शान्ति-सन्तोष का भण्डार हूँ ।

~ मैं आत्मा सिद्ध के समान शुद्ध हूँ, चैतन्य का पुंज हूँ, अनन्त शक्ति का धनी हूँ, मैं सबको जानने-देखने वाला दुनिया का सुन्दरतम पदार्थ हूँ ।

~ मैं स्वयं सुन्दर हूँ । जिसका कोई रूप नहीं, ऐसा अरूपी अमूर्तिक हूँ । अपने सुन्दर रूप को टटोलूँ, खोजूँ तो जरूर दर्शन पाऊँगा, पा गया तो तृप्त हो जाऊँगा ।

~ जिसे मैं बाहर देख रहा हूँ वह जड़ है, नश्वर है । और देखने वाला मैं तो अपने ही अन्दर छिपा हुआ बैठा हूँ । अपने को अपने में से अभिन्न चिदानन्द आत्म-प्रभु निहारूँ ।

~ अरे, बाहर में मैं किसकी आवाज सुनना चाह रहा हूँ । कर्णप्रिय मधुर संगीत की ? क्या यही कर्णों का सौन्दर्य है ? नहीं, नहीं, मुझे अन्तरात्मा पुकार रही है । मैं तो उसकी मधुरिम, कर्मक्षयकारिणी, सुन्दर, आत्मानन्द-दायिनी, सहजानन्द-दायिनी आवाज को ही सुननेवाला हूँ ।

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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