ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

*आतम सदैव न्यारा है,*

Image may contain: 1 person, indoor

*आतम सदैव न्यारा है,*
*इस जड़ शरीर से!*
*ये रहस्य जान लो,*
*तुम वीर प्रभु से !!*
*तुम पुण्य पाप से परे,* 
*हो सिद्ध के समान!*
*अनुभूति आत्मा की करो,*
*स्वयं बनो भगवान!!*
-----
मैं मन नही, मैं तन नही, जड़ वचन भी मैं हूँ नही!
त्रय योग से, सब कर्म से, जो भिन्न चेतन, मैं वही!!

(अज्ञात)
-----
भूल स्वयं के वैभव को यह , 
प्राणी गति-गति जाता है ।
सुख की गंध न पाता फिर भी,
मृग सम दौड़ लगाता है ।।
तृष्णा दाह निरन्तर दहती, 
सेवन विषय सुहाता है।
सन्निपात का रोगी सा , 
दुख पाकर भी मुसकाता है।।
सपने सी माया दुनिया की,
ज्ञानी को कभी न छलती है।
दिन दूनी और रात चौगुनी , 
समता कान्तिमान दमकती है। 
( अज्ञात)
-----
शुभ अशुभ विभाव भाव, यह नहीं तेरा स्वभाव।
राग- द्वेष पुण्य- पाप आदि सब विभाव भाव।।
अष्ट कर्म वेदना से तू है परेशान आज।
कर्म के ही बीज फिर से बो रहा कमाल है।।

(अज्ञात)
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
LIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/
THANKS FOR VISITING.

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.