हे अबोध ,
विश्व में एक ही सुंदरता है जिसमें क्रूरता नही है । त्रैलोक्य में निजभगवान आत्मा ही सुंदर है । और वो ही ज्ञान का विषय होगा तो बाह्य केशभुषा, वेशभूषा, कलप लगाना , मेहन्दी लगाना eyebrows करना , शैम्पू लगाना सहज छुट जाता है ।
शरीर सुंदर लगना चाहिये इसलिए साधारण वनस्पतिरूप मेहेन्दी का ( अनंत जीवों ) का गला दबाते है यही महान क्रूरता । स्वभाव को जाना तो आत्मसौंदर्य - निसर्गज सौंदर्य प्रगट होता है । तब तनु पोषक मुर्दा होने की जीज्ञासा खत्म होती है ।
अनादि काल से हम ने निजकारन परमात्मा की विराधना की यही अपने आप से की गयी कृरता है । उसकी वजह से Cruelty without Beauty ऐसा निरस जीना हम जी रहे है ।
एक बार अगर खुद की सुंदरता महसूस करोगे तो अंनंत विराधना क्रूरता सहज खत्म होती है तब Beauty without Cruelty सार्थक होती है ।
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विश्व में एक ही सुंदरता है जिसमें क्रूरता नही है । त्रैलोक्य में निजभगवान आत्मा ही सुंदर है । और वो ही ज्ञान का विषय होगा तो बाह्य केशभुषा, वेशभूषा, कलप लगाना , मेहन्दी लगाना eyebrows करना , शैम्पू लगाना सहज छुट जाता है ।
शरीर सुंदर लगना चाहिये इसलिए साधारण वनस्पतिरूप मेहेन्दी का ( अनंत जीवों ) का गला दबाते है यही महान क्रूरता । स्वभाव को जाना तो आत्मसौंदर्य - निसर्गज सौंदर्य प्रगट होता है । तब तनु पोषक मुर्दा होने की जीज्ञासा खत्म होती है ।
अनादि काल से हम ने निजकारन परमात्मा की विराधना की यही अपने आप से की गयी कृरता है । उसकी वजह से Cruelty without Beauty ऐसा निरस जीना हम जी रहे है ।
एक बार अगर खुद की सुंदरता महसूस करोगे तो अंनंत विराधना क्रूरता सहज खत्म होती है तब Beauty without Cruelty सार्थक होती है ।
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