ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

IMPORTANT........ एक वक़्त था

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एक वक़्त था
रात्रि भोजन त्याग
जैनो की निशानी थी,

कन्दमूल का त्याग 
घर घर की कहानी थी
क्यों खो रहा हे जैन आधुनिकता की अंधी दौड़ मे,

घर का शुद्ध खाना छोड़
स्वाद ढूढ़ रहा रोड मे,

जिनमंदिर सुने हो रहे हे
महफिले गुलजार होती ह,

जिनवाणी रेक में पड़ी रहती
टीवी रीमोट की अहमियत बढ़ गई,

सीरियल में कल क्या होगा ये चिंता खाये जारही
जीवन क्या होगा ये दुनिया भुलाये जा रही,

ना जाने किन पूण्य कर्म के उदय से जैन कुल मिला और हमको
देखो संसार सुख की कल्पना खाये जा रही,

आओ महावीर के मार्ग पर चले
ये जीवन नैय्या तो 
लख 84 में गोते खा रही.

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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