ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

आज श्री श्ंखेश्वर पार्श्वनाथ के जनम कल्याणक पर विशेष-

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卐 23वे तिर्थथंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान परिचय:- 卐

आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व पौष कृष्ण एकादशी के दिन जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था। राजा अश्वसेन वाराणसी के राजा थे। 

महावीर , रिषभदेव और नेमिनाथ के साथ पार्श्वनाथ चौथे ऐसे तीर्थंकर है जिनके बोहत से मंदिर है और इन्ही चारो तीर्थंकरो को ज्यादा पूजा जाता है। 

श्री पार्श्वनाथ ने ही साधूप्रथा शुरू की थी जिसमे साधू महात्मा को तीन आचरण- अहिंसक रहना: सदेव सत्य कहना और धन/प्रॉपर्टी आदि सांसारिक वस्तुओ का त्याग करना प्रमख रूप से अनिवार्य किया था।

_जैन पुराणों के अनुसार तीर्थंकर बनने के लिए पार्श्वनाथ को पूरे नौ जन्म लेने पड़े थे।_ पूर्व जन्म के संचित पुण्यों और दसवें जन्म के तप के फलत: ही वे तेईसवें तीर्थंकर बने।

भगवान पार्श्वनाथ के 10 पूर्व जन्म इस प्रकार है-

1⃣पुराणों के अनुसार पहले जन्म में वे मरुभूमि नामक ब्राह्मण बने। 

2⃣दूसरे जन्म में वज्रघोष नामक हाथी बने। 

3⃣तीसरे जन्म में स्वर्ग के देवता बने। 

4⃣चौथे जन्म में रश्मिवेग नामक राजा बने। 

5⃣पांचवें जन्म में देव बने। 

6⃣छठे जन्म में वज्रनाभि नामक चक्रवर्ती सम्राट बने। 

7⃣सातवें जन्म में देवता बने। 
8⃣आठवें जन्म में आनंद नामक राजा बने। 

9⃣नौवें जन्म में स्वर्ग के राजा इन्द्र बने। 

🔟दसवें जन्म में तीर्थंकर बने।

30 वर्ष की उम्र में भगवान पार्श्वनाथ को एकाएक अपने पूर्व नौ जन्मों का स्मरण हुआ और वे सोचने लगे, इतने जन्म उन्होंने यूं ही गंवा दिए। अब उन्हें आत्मकल्याण का उपाय करना चाहिए और उन्होंने उसी समय मुनि-दीक्षा ले ली और विभिन्न वनों में तप करने लगे।

चैत्र कृष्ण चतुर्दशी के दिन उन्हें कैवल्यज्ञान प्राप्त हुआ और वे २३ वे तीर्थंकर बन गए। 

वे एकसौ वर्ष तक जीवित रहे। तीर्थंकर बनने के बाद का उनका जीवन जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में गुजरा और फिर श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन उन्हें सम्मेदशिखरजी पर निर्वाण प्राप्त हुआ।

जिनकी माता वामादेवी को स्वपन में 'पदखेथी सर्प' उडाता हुआ दिखने से पुत्र का नाम 'पार्शव कुमार' रखा गया था...

जिनके नाम का चमत्कारिक 'सूत्र उव्वसग्गरम' के जाप मात्र से स्वयं धर्नेंद्र इंद्र प्रकट होते थे...

सम्मेद शिखरजी की सबसे ऊँची मेगादंबर टोंक से जिनको मोक्ष की प्राप्ति हुई...

जिनका नाम स्मरण, पूजा अर्चना और भक्ति करने से सांसारिक जीवो को सुकून, पुण्य , प्रतिष्ठा, और परम पद मिलता हो...

जिनके दुसरे तीर्थंकरो से भी ज्यादा मंदिर/ध्वजा है...

जिनके अठम और पूनम के दर्शन-पूजा हेतु भक्तो की भीड़ श्ंखेश्वर और नागेश्वर जाते है...

ऐसे 
माता वामादेवी और पिता अश्वसेन नंदन,
नील वर्णन,
शर्प लांचन,
त्रिलोक मंदन,
महा जग वंदन,
निरंतर निरंजन,
सभी दुःख भन्जन,
करुणा किंजन,
धरम धुरन्धर,
प्रकट प्रभावी,
२३वे तीर्थंकर

श्री श्री श्री 
🙏पार्श्वनाथ भगवान्🙏
की
जय जय जय ।

🕉🕉🕉

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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