तिलक
जिनमंदिर जी में प्रवेश करते समय चन्दन का तिलक लगाया जाता है ।
पुरुष लंबे आकार का तिलक लगाते हैं तथा स्त्रियां गोल आकार का तिलक लगाती हैं ।
जहाँ तक संभव हो तिलक के लिए भी चन्दन स्वयं ही घिसना चाहिए
तिलक अर्धपद्मासन मुद्रा में लगाना चाहिए क्योंकि विभिन्न मुद्राओं से भिन्न भिन्न ऊर्जाओं का संचार होता है ।
योग विज्ञान अनुसार हमारे शरीर में ७ चक्र है । मस्तक के मध्य भौहों के ऊपर आज्ञा चक्र होता है
तिलक लगाने का अर्थ यही है की जिनमंदिर में प्रवेश करने से पूर्व हम तीर्थंकर परमात्मा की आज्ञा को शिरोधार्य करते हैं ।
चन्दन का स्वभाव शीतल है । तिलक लगाने से मस्तक द्वारा सम्पूर्ण शरीर में शीतलता का संचार होता है ।
लंबे तिलक की परिकल्पना उत्तमता के आधार सें बादाम के आकार से की गयी है , मंदिर के शिखर की भांति की गयी है तथा बाण की भांति की गयी है जिसका एकमात्र लक्ष्य उर्ध्व गति - मोक्ष की प्राप्ति है
सुबह लगाया गया तिलक हमें दिनभर ये प्रेरणा देता है की हम तीर्थंकरो की आज्ञा में हैं । अतः कुछ भी अनुचित दुराचार हम न करें
शाम को तिलक हटा देने की परिपाटी है क्योंकि चन्दन से सर्प आकर्षित होते हैं तथा संध्या के समय किसी की मृत्यु हो उसमे भी तिलक लगाकर जाना अविनय माना गया है ।
पहले के समय में तिलक सम्यक श्रावकत्व का चिन्ह था । अजैन व्यक्ति भी परिचित थे की जिसने चन्दन का तिलक लगाया है ,वह व्यक्ति ईमानदार जैन श्रावक है ।
प्राण जाए ,किन्तु तिलक नही मिटने दूंगा ,इसी समर्पण भाव से वर्षों पूर्व कपर्दी मंत्री ने राजसभा में अपने प्राणों की आहूति दे डाली थी।
जिनमंदिर जी में प्रवेश करते समय चन्दन का तिलक लगाया जाता है ।
पुरुष लंबे आकार का तिलक लगाते हैं तथा स्त्रियां गोल आकार का तिलक लगाती हैं ।
जहाँ तक संभव हो तिलक के लिए भी चन्दन स्वयं ही घिसना चाहिए
तिलक अर्धपद्मासन मुद्रा में लगाना चाहिए क्योंकि विभिन्न मुद्राओं से भिन्न भिन्न ऊर्जाओं का संचार होता है ।
योग विज्ञान अनुसार हमारे शरीर में ७ चक्र है । मस्तक के मध्य भौहों के ऊपर आज्ञा चक्र होता है
तिलक लगाने का अर्थ यही है की जिनमंदिर में प्रवेश करने से पूर्व हम तीर्थंकर परमात्मा की आज्ञा को शिरोधार्य करते हैं ।
चन्दन का स्वभाव शीतल है । तिलक लगाने से मस्तक द्वारा सम्पूर्ण शरीर में शीतलता का संचार होता है ।
लंबे तिलक की परिकल्पना उत्तमता के आधार सें बादाम के आकार से की गयी है , मंदिर के शिखर की भांति की गयी है तथा बाण की भांति की गयी है जिसका एकमात्र लक्ष्य उर्ध्व गति - मोक्ष की प्राप्ति है
सुबह लगाया गया तिलक हमें दिनभर ये प्रेरणा देता है की हम तीर्थंकरो की आज्ञा में हैं । अतः कुछ भी अनुचित दुराचार हम न करें
शाम को तिलक हटा देने की परिपाटी है क्योंकि चन्दन से सर्प आकर्षित होते हैं तथा संध्या के समय किसी की मृत्यु हो उसमे भी तिलक लगाकर जाना अविनय माना गया है ।
पहले के समय में तिलक सम्यक श्रावकत्व का चिन्ह था । अजैन व्यक्ति भी परिचित थे की जिसने चन्दन का तिलक लगाया है ,वह व्यक्ति ईमानदार जैन श्रावक है ।
प्राण जाए ,किन्तु तिलक नही मिटने दूंगा ,इसी समर्पण भाव से वर्षों पूर्व कपर्दी मंत्री ने राजसभा में अपने प्राणों की आहूति दे डाली थी।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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