चंदनबाला की कहानी
रानी ने अपने शील की रक्षा के लिए जीभ खींच कर अपने प्राण त्याग दिए| तत्पश्चात सारथी ने वसुमती को कौशाम्बी नगरी में बेचने के लिए चौराहे पर खड़ा कर दिया| कौशाम्बी नगरी में धन्ना सेठ नमक एक समृद्धशाली व्यापारी रहता था| उसने मुंहमाँगा दाम देकर वसुमती को खरीद लिया और उसका नाम चंदना रख दिया| धन्ना सेठ चंदना का पालन पोषण पुत्रीवत बड़े स्नेह से करने लगा|
सेठ की पत्नी मूला, चंदना से बहुत इर्ष्या करती थी| उसके मन में यह संदेह उत्पन्न हो गया की सेठ चंदना के प्रेम में बुरी तरह से फंस कर मेरी उपेक्षा कर रहा है| अत: मूला चंदना को प्रताड़ित करने व बदला लेने की भावना रख अवसर की प्रतीक्षा करने लगी|
संयोगवश एक बार सेठ अपने धंधे से कौशाम्बी से बहार गए हुए थे| मूला जिस अवसर की तलाश में थी, उसे वह अवसर मिल गया| उसने चंदना के बाल कटवा कर, हाथों-पैरों में बेड़ी डाल कर, मात्र एक वस्त्र के अलावा सरे वस्त्र उतार कर उसे तहखाने में डलवा दिया और मूला अपने मायके चली गई| चंदना बिना अन्न पानी के कष्ट से समय बिताने लगी|
तीन दिन बाद सेठ अपने घर वापिस आया और चंदना को नहीं देख कर आश्चर्य में पड़ गया| वह चारों ओर उसकी खोज करने लगा| आखिर तहखाने की और उसका ध्यान गया जहाँ चंदना का क्षीण स्वर उसे सुनाई दिया| उसने दरवाजा खोला तो चंदना की दयनीय स्थिति देख कर उसका ह्रदय रो पड़ा| पर आश्चर्य था की चंदना के मुखमंडल पर क्रोध प्रतिशोध या वेदना के चिन्ह नहीं थे| सेठ ने चंदना को जब उसकी दुर्दशा का कारण पुछा तो चंदना ने कहा " पिताजी! इसमें किसी का दोष नहीं है | यह तो मेरे संचित अशुभ कर्म हैं, इसलिए आप न तो दुःख करें और न किसी पर क्रोध करें|"
सेठ ने मूला को पुकारा, पर वो वहाँ नहीं थी| उसे वहाँ न पाकर सेठ सब समझ गया| अब सेठ चंदना के खाने के लिए कुछ तलाश करने लगा| उसे छाजले में उड़द के बाकुले के अलवा कुछ और दिखाई नहीं दिया| सेठ ने छाज चंदना के हाथों में देकर कहा - "बेटी ! मैं बाज़ार से तुम्हारे खाने तथा बेड़ी काटने वाले को लाता हूँ तब तक तू बाकले ग्रहण कर|"
सेठ के जाने पर चंदना तलघर की देहली में खड़ी होकर देखने लगी की कोई महात्मा आए तो उन्हें बहराकर फिर मुंह में डालूं| सच्ची भावना कभी खाली नहीं जाती| संयोगवश उस समय भगवान महावीर तेरह बोल का अभिग्रह लेकर आहार के लिए भ्रमण कर रहे थे| तेरह अभिग्रह इस प्रकार से है-
- कोई राजकुमारी हो
- अविवाहित हो
- सदाचारिणी हो
- निरपराध होते हुए भी बंधनग्रस्त हो
- उसका सर मुंडित हो
- उसके शरीर पर केवल काछ लगी हो
- अठ्ठमभक्त (तेला) की तपस्या हो गई हो
- पारणे के लिए सूप में बाकुले लिए हो
- एक पैर देहली के बाहर व एक पैर देहली के अन्दर हो
- ऐसी अवस्था में वह न घर के अन्दर हो, न बाहर हो
- दान देने हेतु किसी अतिथि की प्रतीक्षा कर रही हो
- वह प्रसन्न वदना हो
- नेत्रों में आंसू हो
चंदना के हाथों की हथकड़ियाँ और पैरों की बेड़ियाँ रत्न जडित कंगन व नुपुर के रूप में परिणित हो गए| अर्धनग्न तन दिव्य वस्त्राभुषणों से सुशोभित हो गया| देवों ने पञ्च दिव्य प्रकट किये| स्वर्ण व रत्नों की वर्षा हुई| वातावरण में कुछ और ही रंग आ गया| मगर चंदना के लिए इन सबका कोई मोल नहीं था| वह तो प्रभु के दिव्य रूप को ध्यान में लिए तन्मय बन गई थी| सेठ, सेठानी व नगरजनों पर चंदना के दान का अमिट असर हुआ और चारों ओर उसकी जय जयकार होने लगी|
कालांतर में भगवान को जब केवलज्ञान प्राप्त हुआ, तब चंदना ने भी उनके चरणों में संयम ग्रहण किया तथा 36000 साध्वियों की प्रमुख कहलाई| अंत में कर्मक्षय करके उसने मुक्ति प्राप्त की|
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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