ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

PLEASE READ........ ।।। कर्मबंध की गांठ ।।।

Image may contain: 1 person

क्या आपने कभी सोचा है कि आप प्रतिदिन मंदिर में वीतरागी प्रतिमा को नमस्कार करते हो, उनकी पूजा करते हो, भक्ति करते हो और फिर उनसे अपने वर्तमान दुखों को ख़त्म करने की विनती करते हो और वर्तमान और आगामी भव में सुख समृद्धि मिले, ऐसी प्रार्थना करते हो ।

हे आत्मन् , बड़े आश्चर्य की बात है कि जिन भगवंतों ने संसार के दुखों को देख उसका त्याग किया और वीतरागी बनें, उन्ही भगवंतों से आप राग के पोषण के लिये, अपने सांसारिक सुखों को बढ़ाने के लिये कामना कर रहे हो । कर्म बंधन को तोड़ने वालो तीर्थंकर भगवन्तों से सुख सामग्री बढ़ाने का, कर्मबंधन बढ़ाने का आशीर्वाद मांग रहे हो ।

ऐसी अविनय तो किसी भी भक्त ने अपने इष्ट देवता की कभी भी नहीं की होगी, जो आप अभी कर रहे हो । यह तो बहुत-बहुत गम्भीर भूल है, यह तो हमारे वीतरागी भगवंतों के प्रति घोर अविनय है और इसकी कठोरतम सजा शीघ्र ही मिल सकती है ।

अब अगर इस सजा से आपको बचना है, तो आपको बाँधने वाले कर्मपुंजों को दर्शाने वाली एक गांठ अपने घर में किसी भी कपड़ें में बांध लो और फिर रोज उसकी पूजा किया करो, ताकि आप इस तरह तीर्थंकर भगवन्तों की अविनय से भी बच जाओगे और यह गांठ आप को आपकी वर्तमान स्थिति की याद दिलाती रहेगी कि आप कर्मों के जाल में बंधे हुए उस जाल के बंधन को ही पूज रहे हो ।

फिर जिस किसी दिन आप को इस बंधन से मुक्त होने की लगन लग जाये, तब आप इस गांठ को खोल देना और इस संसार से आपका जो बंधन बंधा हुआ है, उसे भी तोड़ देना । तब आप जब भी वीतरागी प्रतिमा को साक्षी भाव से नमस्कार करोगे, तो फिर शीघ्र ही आप भी लोक के शिखर पर पहुँचकर अनन्तकाल के लिए त्रिलोकपति बन अपने सुख के साम्राज्य में लीन रहोगे ।

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
LIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/
THANKS FOR VISITING.

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.