ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

सप्तभय इसप्रकार होते है:

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सम्यक दर्शन का पहला अंग होता है नि:शंकितपना, शंका का एक अर्थ है संदेह और दूसरा भय। सम्यकदृष्टी जिव संहेह रहित तो होता है लेकिन वो सप्त रहित भी होता है।

सप्तभय इसप्रकार होते है:
१)इसलोक का भय
२)परलोक का भय
३)मरण का भय
४)वेदना का भय
५)अनरक्षा भय
६)अगुप्ति भय
७)अकस्मात् भय

१)इसलोक का भय-
अपने परिग्रह,कुटुम्ब,आजीविका आदि के बिगड़ जाने का भय

२)परलोक का भय-
मरण पाकर परलोक में जाकर नहीं मालूम किस गति व् क्षेत्र में जाऊंगा ऐसा भय

३) मरण का भय-
मरण के समय मेरा नाश होगा ना जीने कितना दुःख होगा। अपने आभाव का भय होना मरण का भय है।

४) वेदना भय-
रोगादि कष्ट आने का भय

५) अनरक्षा भय-
अपना कोई रक्षक नहीं है ऐसा जानकर डरना

६) अगुप्ती भय-
अपनी वस्तु चोरी हो जाने का भय और अपनी छुपने की जगह का पता चल जाने का भय

७)अकस्मात भय-
अचानक दुःख उत्पन्न ना हो जाये ऐसा लगना

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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