सम्यक दर्शन का पहला अंग होता है नि:शंकितपना, शंका का एक अर्थ है संदेह और दूसरा भय। सम्यकदृष्टी जिव संहेह रहित तो होता है लेकिन वो सप्त रहित भी होता है।
सप्तभय इसप्रकार होते है:
१)इसलोक का भय
२)परलोक का भय
३)मरण का भय
४)वेदना का भय
५)अनरक्षा भय
६)अगुप्ति भय
७)अकस्मात् भय
१)इसलोक का भय-
अपने परिग्रह,कुटुम्ब,आजीविका आदि के बिगड़ जाने का भय
२)परलोक का भय-
मरण पाकर परलोक में जाकर नहीं मालूम किस गति व् क्षेत्र में जाऊंगा ऐसा भय
३) मरण का भय-
मरण के समय मेरा नाश होगा ना जीने कितना दुःख होगा। अपने आभाव का भय होना मरण का भय है।
४) वेदना भय-
रोगादि कष्ट आने का भय
५) अनरक्षा भय-
अपना कोई रक्षक नहीं है ऐसा जानकर डरना
६) अगुप्ती भय-
अपनी वस्तु चोरी हो जाने का भय और अपनी छुपने की जगह का पता चल जाने का भय
७)अकस्मात भय-
अचानक दुःख उत्पन्न ना हो जाये ऐसा लगना
सप्तभय इसप्रकार होते है:
१)इसलोक का भय
२)परलोक का भय
३)मरण का भय
४)वेदना का भय
५)अनरक्षा भय
६)अगुप्ति भय
७)अकस्मात् भय
१)इसलोक का भय-
अपने परिग्रह,कुटुम्ब,आजीविका आदि के बिगड़ जाने का भय
२)परलोक का भय-
मरण पाकर परलोक में जाकर नहीं मालूम किस गति व् क्षेत्र में जाऊंगा ऐसा भय
३) मरण का भय-
मरण के समय मेरा नाश होगा ना जीने कितना दुःख होगा। अपने आभाव का भय होना मरण का भय है।
४) वेदना भय-
रोगादि कष्ट आने का भय
५) अनरक्षा भय-
अपना कोई रक्षक नहीं है ऐसा जानकर डरना
६) अगुप्ती भय-
अपनी वस्तु चोरी हो जाने का भय और अपनी छुपने की जगह का पता चल जाने का भय
७)अकस्मात भय-
अचानक दुःख उत्पन्न ना हो जाये ऐसा लगना
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