श्री आदि - शांति-सुपार्श्व- शंखेश्र्वर पार्श्र्व -महावीर स्वामिभ्यो नमो नम: , श्रीमद् पाहीरला जगच्चंद्रसूरीभ्यो नमो नम:,तपागच्छिय आत्म - कमल - दान - प्रेम - भुवनभानु - जयघोषसूरिभ्यो नमो नम:
श्री आदिनाथ भगवान का जिनालय महाराजा सम्प्रति ने २२०० वर्ष पहेले बनवाकर भगवान की परतिष्ठा अपने दो जन्म के उपकारी युग प्रधान आर्य सुहस्तिसूरिजी से करवायी । श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय की प्रतिष्ठा वि स २०२९ मे आचार्य यशोभद्रसूरिजी के द्धारा होने का उल्लेख प्राप्त है । श्री शांतिनाथजी का जिनालय विक्रम की बारहवी सदी मे बना । श्री सुपार्श्र्वनाथजी का जिनालय उतर पश्चिम से २०० मीटर की दूरी है इसका निर्माण विक्रम संवत १२०० मे हुआ । वि. स. २०४४ के चातुर्मास मे इन सभी मंदिरों के जिणोद्धार का निर्णय लिया गया । तदनुसार मेवाड़ देशेद्धारक आचार्य श्री जितेन्द्रसूरिश्र्वरजी म सा की प्रेरणा एंव वैराग्यवारिधि पूज्य आचार्य श्री कुलचंद्रसूरिश्र्वरजी महाराज साहेब के मार्ग दर्शन मे वि . स. २०४७ मे जिनालयो के जिर्णोद्धार कार्य का शुभारंभ हुआ । श्री आदिनाथजी व शांतिनाथजी के जिनालय के शिखर तक आमूल चूल जिर्णोद्धार हुआ । श्री शंखेश्वर पार्श्र्वनाथ जिनालय बावन जिनालय मे प्राचिनता के प्रतिक रूप मूल गर्भ गृह का जिर्णोद्धार हुआ । शेष संपुर्ण मंदिर को उतार कर नयी निंव खुदवाकर शिलान्यास के साथ मंदिर का नव निर्माण हुआ । श्री सुपार्श्र्वनाथजी के मंदिर का जिर्णोद्धार हुआ रंगमण्डप दो देवकुलिका, प्रवेशद्धार एंव श्रंगार चौकी का नव निर्माण हुआ । तपागच्छ का ऐतिहासिक उदग्मस्थल के ४४ वे पट्टधर , तपागच्छ के आध आचार्य श्री जगच्चंद्रसूरिजी महाराज को यही आजीवन आयंम्बिल की घोर तपस्या से व दिगम्बरचार्यो के साथ हुए वाद मे अभेध ही नहीं अेतिहासिक जित से प्रभावित होकर मेवाड़ के राणा जैत्रसिंहजी ने वि स १२८५ अक्षय तृतीया के दिन "तपा - हीरला " बिरूद्ध से अलंकृत किया था । तब से "बडगच्छ " "तपागच्छ" हुआ । श्री शांतिनाथजी जिनालय के अंतर्गत पूज्य आचार्य श्री जगच्चंद्रसूरिजी महाराज के गुरू मंदिर एंव चमत्कारिक धर्नेन्द्र की देवकुलिका व प्राचिन अंबिका माता की भी पुन: प्रतिष्ठा हुइ । गणधर गुरू मंदिर का नव निर्माण हुआ जिसमें पुणडिक स्वामीजी, गौतम स्वामीजी , एंव वर्तमान मे बृहत् श्रमण संघ सर्जक सिद्धांत महोदधि स्व आचार्य श्रीमद् विजय प्रेमसूरिश्र्वरजी महाराजा की गुरू मुर्ति प्रतिष्ठित हुइ । पेढी , उपाश्रय , कर्मचारी कक्ष एवं सिंह द्धार का नव निर्माण हुआ जिससे आज हर किसी का ध्यान इस तीर्थ की तरफ़ आकर्षित हो रहा है । सारांश यही कि तीर्थ के जिर्णोद्धार ने इस तीर्थ की काया पलट दी एवं नये इतिहास का निर्माण हुआ । अनेक प्रतिमाओं के नव निर्माण के साथ इन सभी मंदिरों की पुन: प्रतिष्ठा तपागच्छ के बृहत् श्रमण संघ सर्जक सिद्धांत महोदधि स्व आचार्य श्रीमद् विजय प्रेमसूरिश्र्वरजी महाराजा के पुण्य प्रभाव साम्राज्य मे न्याय विशारद गच्छाधिपति आचार्य भुवनभानुसुरिजी के पट्टधर सर्वाधिक श्रमण समुदायाधिपति , गच्छाधिपति आचार्य श्री जयघोषसूरिश्र्वरजी महाराजा , मेवाड़ देशोंद्धारक पूज्य आचार्य श्री जितेन्द्रसूरिश्र्वरजी महाराज साहेब , वैराग्यवारिधि , आयड़ तीर्थोद्धारक , पिडंवाडा के रत्न ,आचार्य श्री कुलचंद्रसूरिश्र्वरजी महाराज साहेब , आदि विशाल साधु साध्विजी समुदाय की पावन निश्रा मे सोलह दिवसीय महोत्सव पूर्वक श्रावक - श्राविका संघ के साथ आन्नद , उल्लास , उमंग के साथ विक्रम संवत २०५८ के फाल्गुन वदि १३ दिनांक ११-०३-२००२ के शुभ लगनांश मे संमपन्न हुयी ।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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