तीर्थंकर परमात्मा के 34 अतिशय।
जन्म से भगवंत को 4 अतिशय होते है।
1) भगवंत का देह व्याधि, प्रस्वेद और मेल रहित होता है।
2) भगवंत का श्वासोश्वास कमल की तरह कोमल होता है।
3) भगवंत के शरीर के खून और मांस श्वेत होते है।
4) भगवंत का आहार और निहार अवधिज्ञानी के अलावा कोई देख नही सकता।
देवता कृत 19 अतिशय होते है।
1) भगवंत जहा जहा चलते है साथ मैं धर्म चक्र चलता है।
2) आकाश में दोनों तरफ श्वेत चामर चलता है।
3) आकाश में मणि का सफ्टिकमय सिहांसन चलता है।
4)भगवंत के मस्तक पे आकाश में 3 छत्र चलते है।
5)भगवंत के आगे आकाश में इंद्र रत्न का ध्वज ले के चलते है।
6) प्रभु के कदम सुवर्ण के कमल पे पड़ते है।
7) प्रभु को देशना देने के लिए देवता समवसरण की रचना करते है।
8) प्रभु जब देशना देते है तब पूर्व दिशा में मुख होता है लेकिन बाकि की 3 दिशा में प्रभु की कृपा से देव प्रभु जैसा अद्दल प्रतिबिम्ब बनाते है।
9)देवता प्रभु के समवसरण मैं अशोक वृक्ष की रचना करते है।
10) भगवंत जहा चलते है वहा कंटक उलटे हो जाते है।
11) पवन अनुकूल और शीतल हो जाता है।
12) रास्ते के वृक्ष प्रभु को नमन करते है।
13) समवसरण के ऊपर पंखी प्रभु की प्रदिक्षणा करते है।
14) मेघकुमार देव सुगंधित जल की वृष्टि करते है।
15) समवसरण की 1 योजन भूमि मैं 6 ऋतु के खिले हुए पुष्प की जानु प्रमाण वृष्टि होती है।
16) प्रभु के दाढ़ी मुछ बाल और नाख़ून बढ़ते नहीं है।
17) कम से कम 1 करोड़ देव कभी भी प्रभु की सेवा मैं होते है।
18) भगवंत जहा जाते है वहाँ सब ऋतु अनुकूल हो जाती है।
19) देवता देव दुदुम्भी का नाद करते है।
केवलज्ञान के बाद भगवंत को 11 अतिशय होते है।
1) भगवंत का समवसरण 1 योजन का होता है फिर भी करोडो लोग का समावेश हो सकता है।
2) भगवंत की देशना सभी जिव अपनी भाषा में समजते है।
3) प्रभु के मस्तक के पीछे हज़ारो सूर्य से भी तेजस्वी भामंडल होता है।
4) प्रभु जहा विचरते है वहा के 125 योजन विस्तार में कोई रोग नहीं होता।
5) 125 योजन विस्तार में वेर भाव का नाश होता है।
6) 125 योजन विस्तार में अतिवृष्टि नही होती।
7) 125 योजन विस्तार में अनावृष्टि नहीं होती।
8) 125 योजन विस्तार में भय का नाश होता है।
9) 125 योजन विस्तार में अकाल मृत्यु नहीं होती।
10) 125 योजन विस्तार में दुकाल नहीं होता।
11) 125 योजन विस्तार में चूहे या तीड़ जैसे जीव उत्प्पन नही होते।
जन्म से भगवंत को 4 अतिशय होते है।
1) भगवंत का देह व्याधि, प्रस्वेद और मेल रहित होता है।
2) भगवंत का श्वासोश्वास कमल की तरह कोमल होता है।
3) भगवंत के शरीर के खून और मांस श्वेत होते है।
4) भगवंत का आहार और निहार अवधिज्ञानी के अलावा कोई देख नही सकता।
देवता कृत 19 अतिशय होते है।
1) भगवंत जहा जहा चलते है साथ मैं धर्म चक्र चलता है।
2) आकाश में दोनों तरफ श्वेत चामर चलता है।
3) आकाश में मणि का सफ्टिकमय सिहांसन चलता है।
4)भगवंत के मस्तक पे आकाश में 3 छत्र चलते है।
5)भगवंत के आगे आकाश में इंद्र रत्न का ध्वज ले के चलते है।
6) प्रभु के कदम सुवर्ण के कमल पे पड़ते है।
7) प्रभु को देशना देने के लिए देवता समवसरण की रचना करते है।
8) प्रभु जब देशना देते है तब पूर्व दिशा में मुख होता है लेकिन बाकि की 3 दिशा में प्रभु की कृपा से देव प्रभु जैसा अद्दल प्रतिबिम्ब बनाते है।
9)देवता प्रभु के समवसरण मैं अशोक वृक्ष की रचना करते है।
10) भगवंत जहा चलते है वहा कंटक उलटे हो जाते है।
11) पवन अनुकूल और शीतल हो जाता है।
12) रास्ते के वृक्ष प्रभु को नमन करते है।
13) समवसरण के ऊपर पंखी प्रभु की प्रदिक्षणा करते है।
14) मेघकुमार देव सुगंधित जल की वृष्टि करते है।
15) समवसरण की 1 योजन भूमि मैं 6 ऋतु के खिले हुए पुष्प की जानु प्रमाण वृष्टि होती है।
16) प्रभु के दाढ़ी मुछ बाल और नाख़ून बढ़ते नहीं है।
17) कम से कम 1 करोड़ देव कभी भी प्रभु की सेवा मैं होते है।
18) भगवंत जहा जाते है वहाँ सब ऋतु अनुकूल हो जाती है।
19) देवता देव दुदुम्भी का नाद करते है।
केवलज्ञान के बाद भगवंत को 11 अतिशय होते है।
1) भगवंत का समवसरण 1 योजन का होता है फिर भी करोडो लोग का समावेश हो सकता है।
2) भगवंत की देशना सभी जिव अपनी भाषा में समजते है।
3) प्रभु के मस्तक के पीछे हज़ारो सूर्य से भी तेजस्वी भामंडल होता है।
4) प्रभु जहा विचरते है वहा के 125 योजन विस्तार में कोई रोग नहीं होता।
5) 125 योजन विस्तार में वेर भाव का नाश होता है।
6) 125 योजन विस्तार में अतिवृष्टि नही होती।
7) 125 योजन विस्तार में अनावृष्टि नहीं होती।
8) 125 योजन विस्तार में भय का नाश होता है।
9) 125 योजन विस्तार में अकाल मृत्यु नहीं होती।
10) 125 योजन विस्तार में दुकाल नहीं होता।
11) 125 योजन विस्तार में चूहे या तीड़ जैसे जीव उत्प्पन नही होते।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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