ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

Mahavirswami Dada Zaveri Bazar

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जैन बंधुओ सावधान सोच समझ कर के ही धन का उपयोग योग्य स्थान पर ही करे , किसी की नकल या अभिमान और कीर्ति के कारण कभी भी नहीं....पैसों का उपयोग होश में रहकर करे , जोश में कदापि नहीं* 

*✍🏼 : जैन मांगीलाल .Chandan .🙏🏼.*

☝🏼 एक कड़वा नग्न सत्य पूरा पढें और ध्यान देवे...👇🏾

*महावीर जन्म वांचन विशेष*

चढ़ावे संबंधित हर प्रश्नों के उत्तर

प्रश्र्न 1 *क्या चढ़ावे का आदेश शास्त्रोक्त है*? 
उत्तर बिलकुल भी नहीं किंतु अकाल के समय में जिन मंदिर के निभाव के लिए शुरू की गई एक शुरुआत थी जो जरुरी भी थी। 
प्रश्र्न 2 *शास्त्र में सात क्षेत्रों में दान का विधान है जिसमें जिन बिंब भी है* 
उत्तर हा, लेकिन यथा शक्ति "दान" का विधान है ना कि स्पर्धा, हरीफाई या चढ़ावे की होड़ का। हर जैन का दायित्व है कि वो अपने संध के मंदिर में योगदान दे और ध्यान दे ताकि मंदिर सुन्दर तरीके से चलता रहे 
प्रश्र्न 3 *चढ़ावे बोलना अनिवार्य है* ? 
उत्तर अनिवार्य नहीं है फिर भी जिस जिनालय में फंड का अभाव है वहां ठीक है लेकिन अगर वहा पर भी यदि संघ चाहे तो अंदाजीत वार्षिक खर्च की रूपरेखा निकाल कर के संध के सभी सदस्य मिलकर भी अपनी क्षमता अनुसार या डिवाइड करके मंदिर मेन्टेन कर सकते हैं। नकरा भी रख सकते हैं। बहोत से अन्य धर्मीओ के वहां भी अपने धर्म स्थल के लिए ऐसी ही सुंदर व्यवस्था है। क्या कभी अक्षरधाम और गोल्डन टेम्पल जैसे कई भव्य धर्म स्थानको में तकती देखी है क्या? 
प्रश्र्न 4 *इससे देव द्रव्य की बढोतरी होती है* 
उत्तर हा, बढोतरी होती है लेकिन देव द्रव्य के पैसे सिर्फ मंदिर में ही उपयोग में लिये जाने के कारण जरुर नहीं होने पर भी कई मंदिरों में अनावश्यक रूप से वितरागी परमात्मा के नाम पर सोने और हीरे तक का उपयोग करना पड़ता है। जरूरत नहीं है पर क्या करे पैसे जो इतने पडे है। आखिर लाखो करोडो के धन का करे तो क्या करे? जिस भूमि पर पहले से ही कई मंदिरों है वहा पर भी अनावश्यक मंदिरों का निर्माण किया जाता है। इस तरह इसका non constructive use हो जाता है. कई लोगों को शराफी के तौर पर भी मंदिरो के पैसे जमा कराया जाता है जिसका वे लोग अपने business वगैरह में लगाते हैंं। वैसे एक तरफ आप अपने बेटे या पत्नी को 5000 rs भी दो तो हिसाब पूछ सकते हो लेकिन आपके चढ़ावे के 500000 rs का भी सही जगह उपयोग होगा या नहीं यह निश्चित नहीं है और आपके पास पुछने का भी कोई अधिकार नहीं है। 
प्रश्र्न 5 *अगर आप को चढ़ावा नहीं लेना हो तो मत लो, जिसको लेना है उसको लेने दो*
उत्तर यह एक कोमन दलील है लेकिन ये कहने वाले यह भुल जाते हैं कि इसके कारण ही धर्म के पवित्र क्षेत्र में आडंबर और प्रदर्शन बढता है। धर्म मानो धनवानों तक ही सिमीत हो जाता है और साधारण या सामान्य श्रावक हमेशा मंदिर संबंधित लाभ से वंचित रह जाता है। इसके कारण समाज में विभाजन सा हो जाता है और प्रभु महावीर की सभी 'जिव एक समान' और शाशन में 'कोई भेदभाव या कोई उचनीच नही' की देशना विफल हो जाती है। 
प्रश्र्न 6 *जो भी चढ़ावा बोलता है वो अपने भाव के कारण बोलता है*
उत्तर हो सकता है कोई विरला अपने भाव के कारण भी बोलता हो बाकी तो समाज में शर्माशरमी या सामाजिक व्यवहार बढाने या बेटे बेटी बडे़ होने पर या प्रसिध्दी के लिए ही बोलते हैं। यदि भाव के कारण ही बोलते हैं तो चढ़ावे के पहले यह घोषित किया जाये कि किसी भी लाभार्थी का नाम तकती पर नहीं आयेगा या उनका बहुमान नहीं किया जायेगा तब देखिये कितने के भाव टिकते हैं 
प्रश्र्न 7 *क्या करना चाहिए*"? 
उत्तर नकरा प्रथा चालू करके लाभ ड्रॉ सिस्टम से निकालना चाहिए। जहां जरुरत है वहा भले ही राशि एकत्रित कि जाये लेकिन जिस संध में पर्याप्त फंड है वहां उसीके interest आदि से मेन्टेन करना चाहिए, आखिर हमे कितना पैसा इकट्ठा करना है ? कौन संभालेगा? अब समय है कि सामाजिक उत्थान के लिए जागृति लाकर समाज के पैसों को सही दिशा में जैसे शिक्षण और चिकित्सालय में ले जाना चाहिए।

*☝🏼आखिर कब तक जैन हर जगह कतार में ही खड़ा रहेगा*?
*क्या एक जैन होने का स्वाभिमान नहीं है हमें*" ?

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BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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