ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......




जला "कर्म" की होली 

यह आठ कर्म की होली

जो बनी तेरी हम जोली

चेतन तू कितनी भोली

उनके संग ही तू हो ली

वह डाले भव रंगोली

तू चारों गति में रो ली

निज शुद्ध भाव को भूली

शुभ - अशुभ भाव में फूली

जो "होनी" थी सो हो ली

अब जला "कर्म" की होली!

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.