मूलनायक श्री स्थंभण पार्श्वनाथ भगवान
आराधना मंत्र : ॐ ह्रीँ श्री स्थंभणपार्श्वनाथाय नम:
आराधना मंत्र : ॐ ह्रीँ श्री स्थंभणपार्श्वनाथाय नम:
तीर्थाधिराज :- श्री स्थम्भन पार्श्वनाथ भगवान, पद्मासनस्थ,
नील वर्ण, लगभग २३ सें.मी.
(श्वेताम्बर मन्दिर)
तीर्थ स्थल :- खम्भात के खारवाडा मुहल्ले में ।
तीर्थ विशिष्टता :- इसका प्राचीन नाम त्रंबावती नगरी था । इस प्रभाविक प्रभु प्रतिमा का इतिहास पुराना है । बीसवें तीर्थंकर के काल से लेकर अंतिम तीर्थकर के काल तक यहाँ अनेकों चमत्कारिक घटनाएँ घटी हैं । तत्पश्चात वर्षों तक प्रतिमा लुप्त रही । विक्रम सं. ११११ में नवांगी टीकाकार श्री अभयदेव सूरिजी ने दैविक चेतना पाकर सेडी नदी के तट पर भक्ति भाव पूर्वक जयतिहुअण स्तोत्र की रचना की, जिससे अधिष्ठायक देव प्रसन्न हुए व यह अलौकिक चमत्कारी प्रतिमा वही पर भूगर्भ से अनेकों भक्तगणों के सम्मुख पुनः प्रकट हुई । इसी प्रतिमाजी के न्हवण जल से श्री अभयदेवसूरिजी का देह निरोग हुआ था । कलिकाल सर्वञ श्री हेमचन्द्राचार्य ने विक्रम सं. ११५० में यहीं पर दीक्षा ग्रहण कर शिक्षा प्रारम्भ की थी ।
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