जीवादि नव तत्वों को हम एक नौका के उदाहरण से इस प्रकार समझ सकते है।
सरोवर में नौका चल रही है। नौका को खेने वाला एक नाविक है और कुछ यात्री है।नौका में छिद्र होने से उसमें पानी भरने लगा जिससे संतुलन बिगड़ने लगा और संतुलन बिगड़ते देख नाव केछिद्रों को बंद कर दिया और संचित जल को पात्रादि से उलीचना प्रारंभ किया और नौका पानी से खाली होकर लक्ष्य तक पहुंच गयी ।
जीव : - नाविक / यात्री
अजीव : नौका
भाव पुण्य : छोटे छिद्र / धर्मानुराग भाव
द्रव्य पुण्य : -
कम मलिन पानी / पूजा, भक्ति, दान क्रियायें
भाव पाप : -
बडे़ छिद्र / मिथ्यात्व आदि पांच हेतु
द्रव्य पाप :-
गंदला पानी / हिंसादि पंच पाप
ऐसे ही बस / रेल / मकान आदि के उदाहरणों से भी सप्त
तत्वों का स्वरूप समझ जा सकता है ।
भावश्रव : -
नौका में पांच बडे़ छिद्र और सत्तावन छोटे छिद्र से रागादि भाव का आना
द्रव्याश्रव :-
पानी का आना / कर्मों का आना
भावबंध : -
नौका की दीवारें / विकार का एकमेक होना
द्रव्यबंध : -
पानी का एकत्रित होना / कर्मों का जीव से मिलना
भावसंवर :-
छिद्रबद करने के लिए जो लकडी़ व कपडा़ लगाया / भेदज्ञान का प्रयोग करना
द्रव्यसंवर : -
नौका में पानी का आना रूक जाना / नवीन कर्मों का आना रूकना
भावनिर्जरा :-
पात्र से पानी का बाहर निकालना / शुद्ध भाव की बृद्धि होना
द्रव्य निर्जरा :-
थोडा़ थोडा़ पानी का बाहर निकलना / पुराने कर्मों का झड़ना
भाव मोक्ष : -
नाव का पानी से रिक्त होना / पूर्ण शुद्ध अवस्था का प्रकट होना
द्रव्य मोक्ष :
पानी का पृथक हो जाना / सम्पूर्ण कर्मों से रहित हो जाना
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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