ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

वासक्षेप क्या है एवं यह क्यों दिया जाता है ?

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वासक्षेप क्या है एवं यह क्यों दिया जाता है ? 
वासक्षेप की परंपरा का उद्भव कहाँ से होता है ?

वासक्षेप गुरू भंगवतों से किस प्रकार से लेवे ?

वासक्षेप चन्दन लकड़ी का चूरा ( बुरादा) होता है । गुलाब जल,प्रभु का अभिषेक जल भी इसमें सम्मिलित होता है ।

औरों के लिए यह मिट्टी है किन्तु एक जैन श्रावक के लिए यह गुरु द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद एवं ऊर्जा का केंद्र है l

जब तीर्थंकर प्रभु को केवलज्ञान होता है , एवं वे प्रथम शिष्य को दीक्षा देते हैं , तब इंद्र वासक्षेप का थाल लेकर प्रभु के पास खड़ा रहता है । प्रभु अपने शिष्यों और श्रावकों के मस्तक पर वह डालते हैं , वहीँ से यह परंपरा चालू हुई , ऐसा आचार्य हेमचन्द्र सूरीश्वर जी ने भी अपने ग्रन्थ में लिखा है ।

आ अवसर्पिणी काळ में सबसे पहेले वासक्षेप आदिनाथ भगवाने गणधर भगवंत ( पुंडरीक स्वामी ) के शिर पल डाला था। तब से वासक्षेप डालने की शरुआत हुई है ।

विनीता नगरी में आदिनाथ भगवाने संघपति पद पर देशना दी थी। बाद में भरत चक्रवर्तीने विनीता नगरी से शत्रुंजय तीर्थ का छली पालित संघ निकाला था। तब आदिनाथ भगवाने भरत चक्रवर्ती को वासक्षेप डाल के संघपति पद दिया था ।

महावीर स्वामी भगवाने श्री गौतम स्वामी को सबसे पहले वासक्षेप डाला था। बाद में सभी गणधर भगवंत को डाला था ।

वासक्षेप अर्थात वास ( सुगन्धित ) चूर्ण एवं क्षेप यानि डालना ।

गुरु महाराज दीपावली के दिनों में, नवरात्रि के दिनों में , ओली पर्व के दिनों में , सूरि मंत्र की आराधना के समय इस वासक्षेप को मंत्रोच्चार के साथ प्रभावक बनाते हैं ।

जब गुरु महाराज वासक्षेप देते हैं तो कहते हैं – नित्थार पारगा होह ” यानि इस संसार से तेरा निस्तारा हो , तेरा कल्याण हो ।
प्रश्न : वासक्षेप की परंपरा का उद्भव कहाँ से होता है ?

उत्तर : तीर्थंकर परमात्मा जब गणधर भगवंतों को संयम- दीक्षा प्रदान करते हैं , उस समय इंद्र महाराज वास ( सुगन्धित ) चूर्ण का एक थाल लेकर खड़े रहते है । दीक्षा देते समय प्रभु इस वासक्षेप को शिष्य के मस्तक पर आशीर्वाद रुपी चिन्ह के रूप में डालते हैं ।

तीर्थंकर परमात्मा आशीर्वाद देते हैं - "नित्थारगपारगाहोह" यानि इस संसार सागर से तुम्हारा शीघ्र निस्तारा हो ! यही परंपरा आज भी चली आ रही है एवं गुरु भगवंत वासक्षेप देते समय यह आशीर्वाद प्रदान करते हैं । शिष्य इसे तहत्ति कहकर स्वीकार करते है ।

★ त्रिकाल परमात्मा पूजा में सुबह वासक्षेप पूजा......

प्रभु चरणोमें सदा वास रहे
प्रभु चरणोमें सदा स्थान रहे
प्रभु चरणका सदा शरण रहे
दिनभर शुभ आचरण रहे

★ सामायिक पौषध मे श्रावक श्राविकाओ कल्पसूत्र या आगम प्रत की या कोई यंत्र की वासक्षेप पूजा नहीं कर सकते ।

★ परमात्मा की वासकेप पुजा सुबह सामायिक के कपडों में मुखकोश बांधकर, परमात्मा को स्पर्श किएँ बिना की जा सकती हैं ।

★ प्रभु वीर ने २ बार श्री सुधर्मा स्वामीजी को वासक्षेप किया ।

★ ज्ञानपंचमी के दिन जिनालय में जाकर बच्चों द्वारा ज्ञान के साधन: पुस्तक काँपी, पैन, पैसिल आदि चढवाकर ज्ञान की वासक्षेप से पुजा जरूर कराये ।

"वासक्षेप गुरू भंगवतों से किस प्रकार से लेवे ...... हमे अपने गुरु के आशीर्वाद मिले इसलिए उनसे वासक्षेप लेते है ।

परीक्षा में पास हो जाउं, धंधा अच्छा चले , मुसाफरी में विघ्न न आये , योग्य पति व पत्नी मिल जाय, लग्नजीवन बराबर चले , संतान का सुख मिल जाय , संतान का ब्याह हो जाय, संतानको नोकरी मिल जाय - ऐसी अनेको संसारिक इच्छाऐ पूरी हो जाये इसलिए गुरुभंगवतों से वासक्षेप लेने (डलवाने) बहुत आते है । यह उचित नही है । गुरुभगवंत 'भव संसार से मुक्ति मिले , आपको मोक्ष मिले ' इस प्रकार से आशिर्वाद देते है । आने वाला व्यक्ति मात्र अपनी इच्छापूर्ति जितना ही आशीर्वाद लेकर चला जाता है और बाकि के आशीर्वाद का फल उसको नहीं मिलता है । सो रूपये की प्रभावना हो रही हो और मात्र ऐक रूपया लेकर रवाना हो जाना कहाँ तक उचित है ।

गुरु भगवंतो के पास वासक्षेप के लिए जब भी जाए तब ज़रूर से गुरू पूजन - ज्ञान पूजन द्रव्य रख कर करे । गुरुभंगवत पक्षपात नही करते है कि किसी ने ज़्यादा द्रव्य अर्पण किया तो उसे अधिक आशीर्वाद दे ओर कम द्रव्य रखा हो तो कम सभी को समान आशिर्वाद प्रदान करते है । फिर भी अलग अलग जीव अपनी इच्छा व योग्यता अौर भाव के अनुरूप फल पाते है । इसलिए अपनी शक्ति के अनुरूप ज़रूर से द्रव्य को रखकर वासक्षेप करवाना चाहिए ।

गुरुभंगवत वासक्षेप के माध्यम से आशीर्वाद देते है , तब तहत्ति कहना चाहिये इसका अर्थ यह होता है कि आपको गुरूभंगवत की बात स्वीकारी है ।

गुरूभंगवत के व संघ के वासक्षेप से गुरुपूजन करने से अल्प लाभ की प्राप्ति होती है । गुरु भंगवत के वासक्षेप से उनका ही पूजन-करना उचित नहीं लगता है इसलिए शक्य हो तो अपने वासक्षेप से ही पूजन करना चाहिये ।

परीक्षा में पास होने के लिए वासक्षेप न करवा के परीक्षा में चोरी करने का मन न हो इस हेतु से वासक्षेप करवाना उचित है ।

धंधा अत्छा चले उस लिये वासक्षेप न करवा कर धंधे में नीतिमत्ता आये इसलिए वासक्षेप करवाना उचित है ।

बहुत कमायी आवे इस लिए वासक्षेप न करवा कर संतोष आये इसलिए वासक्षेप करवाना उचित है ।

दुश्मन पर विजय मिले इस लिए वासक्षेप न करवा कर क्षमा रखने का सामर्थ्य मिले इसलिए वासक्षेप करवाना उचित है ।

लग्नजीवन अच्छा व्यतित हो इस लिए
वासक्षेप न करवा कर सदाचारी ब्रह्मचारी बने इसलिए वासक्षेप करवाना उचित है ।

संसार बढे इसलिए वासक्षेप न करवा कर
धर्म बढे इसलिए वासक्षेप करवाना उचित है । ......✍🏻

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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