ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

*पानी की बूँद और कठोर पत्थर* *(सफलता का रहस्य)*- Shree Sahastrafana Parasnath Bhagwan

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*पानी की बूँद और कठोर पत्थर*
*(सफलता का रहस्य)*

एक नल में से पानी की एक बूँद हमेशा नीचे जड़े हुए पत्थर पर टपकती रहती । पापी की बूँद नीचे पत्थर पर टपकते ही चारों तरफ बिखर जाती, तथा सूर्य की गर्मी और हवा के प्रभाव से तुरन्त ही सूख जाती । यह घटना प्रतिदिन सतत चलती रहती ।

एक दिन पत्थर ने पानी की बूँद से पूछा - "अरे ओ मूर्ख जलबिन्दु ! किसलिये तू रोज हमेशा टपकती रहती है ? बेकार में क्यों अपनी शक्ति बर्बाद करती है ? तेरे टपकने से मुझे तो कुछ भी नुकसान होता नहीं है, बल्कि उल्टे तू ही बिखरकर सूख जाती है, तेरा ही नाश हो जाता है ।"

पहले तो जलबिन्दु ने नम्रता से पत्थर को कहा - "भाई ! मैंने निश्चित किया है कि मुझे तेरे अंग में एक छेद करना है और मैं अपने ध्येय को सिद्ध करने के लिए ही नियमित रूप से टपकती रहती हूँ ।"

नन्हीं कमजोर दिखने वाली जलबिन्दु की बात सुनकर पहले तो कठोर पत्थर अभिमानपूर्वक जोर से अट्ठाहास करके हँसा और उपहास करते हुए बोला - "अरे ! तुझमें शक्ति ही कहाँ है, जो तू मेरे कठोर शरीर पर छेद कर सके ? मेरे कठोर शरीर के साथ टकराकर बेकार में तू अपनी शक्ति का नाश कर रही है । तेरे समान हल्की-फुल्की बिन्दु क्या मेरे वज्र शरीर में छेद कर सकती है ? यदि तू अपना भला चाहती है तो ऐसी मूर्खता का काम छोड़ दे ।"

तब जलबिन्दु कहने लगी - "ऐसा कैसे बन सकता है ? मैंने जो कार्य अपने हाथ में लिया है, उसे मुश्किलों को देखकर छोड़ दूँ, तब तो मैं कायर कहलाऊँगी । मैंने तो निश्चित कर ही लिया है कि या तो कार्य सिद्ध करूँगी या कार्य सिद्धि के लिए अपनी जान दे दूँगी ।"

पत्थर जलबिन्दु की बात सुनकर अभिमानपूर्वक पुनः हँसा और फिर तिरस्कार के स्वर में बोला - "यदि तुझे मरना ही है तो मर । मैं क्या कर सकता हूँ ।"

यहाँ जलबिन्दु ने भी पत्थर के तिरस्कार या उपहास पर ध्यान नहीं देते हुए अपने टपकने के कार्य को चालू रखा ।

समय बीतता गया, जलबिन्दु ने अपना टपकने का काम जारी रखा । एक दिन पत्थर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उसने देखा कि उसके वज्रशरीर की छाती पर बिन्दु ने एक छेद कर ही दिया है । पत्थर का अभिमान रफूचक्कर हो गया और तब उसने नम्रता के साथ जलबिन्दु से उसके कार्य सफलता का रहस्य पूछा । उस समय जलबिन्दु ने पत्थर को यह जवाब दिया ।

"भाई ! इसमें आश्चर्य करने जैसा कुछ भी नहीं है । किसी भी ध्येय को सिद्ध करने के लिए जरूरत है - एकाग्रता और आत्मविश्वास की । भय को स्वीकार किये बिना, असफलताओं की शंकाओं से डरे बिना, जो ध्येय-सिद्धी के लिए एकाग्रचित्त होकर आत्मविश्वास पूर्वक कार्य करता है, वह कठिन से कठिन कार्य में भी सफलता पा सकता है ।"

उस दिन पत्थर को सफलता का असली रहस्य जानने को मिला । एकाग्रता और आत्मविश्वास के बल से कठिनतम कार्य भी सिद्ध हो सकता है । सफलता की यह कुंजी उसके ह्रदय पर टंकोत्कीर्ण हो गई ।

*शिक्षा*- *जलबिन्दु की सफलता का रहस्य बताने वाली इस बोधकथा के द्वारा जिज्ञासु साधर्मी भाई-बहन आत्मविश्वास और एकाग्रचित्त परिणाम से अपनी आत्मसाधना के ध्येय में नियमितरूप से आगे बढ़ो....सफलता जरूर मिलेगी । चैतन्यरस क बिन्दुओं के सतत अभ्यास से मोह का कठोरतम पत्थर भी छिन्न-भिन्न हो जायेगा ।*

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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