कहानी "एक वेश्या और एक संत की"....... एक बहुत ही मनोरम स्थान पर एक बहुत सुंदर वेश्या रहती थी ,और उसके कोठे के ठीक सामने एक संन्यासी साधु का आश्रम था ,सन्यासी हमेशा विचारमग्न रहता था ,कि मैं रात-दिन प्रभु की भक्ति करता हूं उपवास के साथ रहता हूं ,व्रत और नियम का पालन करता हूं लेकिन, सामने वह सुंदर वेश्या रात-दिन नाच गाने ,में मशगूल रहती है ,उसकी जिंदगी कितनी अच्छी हैं, कई लोग आते हैं उसका भरण पोषण कर जाते हैं ,और आनंद का ,आनंद रहता है ,लेकिन मैं ,मैंने पूरा जीवन उपवास व्रत ,और नियम में ही निकाल दिया, एक दिन समय का चक्र घुमा और उस सन्यासी साधू की मौत हो गई ,उस साधु के अंतिम संस्कार में कई लोग आए लाखों लोगों की भीड़ उमड़ गई, सिद्ध सन्यासी का देहावसान हो गया है ,देवलोक गमन हो गया है उन्हें अंतिम संस्कार देना है, उन्हें समाधि देना है, लाखों लोगों ने एकत्रित होकर के उनका अंतिम संस्कार किया, लेकिन जब साधु महात्मा की आत्मा यमलोक में पहुंची, तो उन्हें नर्क का आदेश दिया गया ,यह देख साधु महात्मा अत्यंत विचलित हुए उनकी आत्मा अत्यंत विचलित हुई, और यमराज से प्रश्न करने लगी कि हे यमराज मैं तो, इतना बड़ा सन्यासी था ,लाखों लोगों ने मेरा अंतिम संस्कार किया, और मुझे मुखाग्नि दी थी ,उसके पश्चात मैं आपके लोक में आया हूं, मुझे मोक्ष मिलना चाहिए यमराज ने भगवान चित्रगुप्त को बुलाया, और कहा इस साधु के जीवन का लेखा जोखा देखिए चित्रगुप्त जी ,तब भगवान चित्रगुप्त जी ने कहा प्रभु आप थोड़ा इंतजार कीजिए निर्णय की घड़ी बहुत करीब आने वाली है ,और कुछ समय में उस सुंदर वेश्या का भी देहावसान हो गया और उस क्षेत्र में लोग आपस में बात करने लगे अरे यह तो बहुत ही बेकार किस्म की स्त्री थी वेश्या थी ,इसके अर्थी में जाना ठीक नहीं रहेगा ,तब कुछ लोग कहने लगे अरे ठीक है वह जिंदा थी तब तक वेश्या थी अब तो यह मृत शरीर है ,और हमारे शास्त्रों में लिखा है ,कि किसी भी मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार में जाना बहुत ही कल्याण का कार्य होता है, चलो हम इसकी अच्छे से अंतेष्टि कर देते हैं ,और कुछ 4 लोगों ने मिलकर उसके अंतेष्टि की और उसके पश्चात उसकी आत्मा यमलोक में पहुंची तब भगवान चित्रगुप्त जी ने उन दोनों का लेखा जोखा निकाला और यमराज के समक्ष कहां की जो स्त्री अभी-अभी यमलोक में आई है यह मोक्ष की प्राप्ति का हक रखती है, तब संत बोला नहीं नहीं यह कैसे मोक्ष पा सकती है ,यह तो मेरी कुटिया के सामने रहने वाली एक वैश्या थी ,तब भगवान चित्रगुप्त जी ने कहा हे मुर्ख संत तुम संत के लिबास में रहते हुए भी अपनी आत्मा को संत कि नहीं बना सके ,और स्वयं को ईश्वर से नहीं जोड़ सके लेकिन यह वेश्या रहते हुए भी भगवान की भक्ति में लीन रहती थी ,सदा तुम्हारे यहां होने वाले यज्ञ हवन पूजन और कीर्तन में अपना मन लगा लेती थी ,और तुम संत की कुटिया में रहते हुए भी वेश्या के ऐशो आराम की ओर ध्यान दिया करते थे, इसलिए तुम्हारी आत्मा प्रभु में न लगने के कारण तुम नर्क जीवन के भागी हो ,और यह एक वैश्यालय में रहते हुए भी प्रभु का ,ईश्वर का सदैव मनन किया करती थी इसलिए यह मोक्ष को प्राप्त करेगी, और यही तुम्हारा दंड है, तब यमराज ने भी प्रसन्न होकर उस वेश्या को आशीर्वाद दिया और सेवकों से कहा इसे मोक्ष की ओर अग्रसर करो और इस संत को नर्क में डाल दो ,इसलिए कहा गया है ,कि चित् को हमेशा स्थिर रखो जीवन को हमेशा खुला रखो और इस दुनिया में खुले मन के साथ जियो जिस प्रकार से अंदर हो उसी प्रकार से बाहर रहो ,तो इस लोक में भी मोक्ष पा ओगे ,और उस लोक में भी मोक्ष पाओगे.... बोलती कलम से....
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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