ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

जब तक आत्मा का मोक्ष नही हो, जिव ८४ लाख योनि में भव भ्रमण करता है।

Image may contain: 1 person, indoor

जब तक आत्मा का मोक्ष नही हो, जिव ८४ लाख योनि में भव भ्रमण करता है। ततपश्चात कर्म अनुसार यह जिव एकेन्द्रिय- बेइंद्रिय- त्रिन्द्रिय- चतुरिंद्रिय और पचेंद्रिय गति में जिव जन्म लेता है।

जितनी इन्द्रिय ज्यादा उतना जिव के पतित होने का कारण बढ़ जाता है।

स्पर्श इन्द्रिय के कारण स्पर्श के लालच में मानव निर्मित खड्डे में हाथी गिर जाता है, फिर मानव उसको बंदी बनाकर गुलाम बना लेता है।

स्वाद या खाने के लालच में मछली कांटे में फंस जाती है और मौत के शरण हो जाती है।

कर्ण या श्रवणेंद्रिय में मधुर संगीत सुनने के लालच में मृग संगीतकार के नजदीक आता है और शिकारी उसका शिकार कर लेता है।

घाणेंद्रिय या सूंघने के लालच में भंवर शाम को फूल में बन्ध होकर मर जाता है।

आग की लौ के प्रकास के चक्कर में परवाना जल कर मर जाता है।

तब पंचेन्द्रिय जिव याने की इंसान की गति क्या होगी?

मनुष्य को आँख मिली अच्छा अच्छा सुंदर रमणीय मनोहर द्र्श्य देख सके।
इसके विपरीत आँख से कहि गन्दे कार्य भी कर सकता हैं आँखों से गन्दी भावना से देखकर आँखे मटकाना, इशारा करना भी एक प्रकार का बलात्कार का ही रूप है।आँखों से देखकर दिमाग में उतरता है जो सकारात्मक कार्य भी हो सकता है और बुरे व्यक्ति नकारात्मक कार्य कर सकते है।

नाक से सुंगंध भी लेता है और गन्दी नशे वाली दुर्गन्ध लेकर जीवन बर्बाद भी करता है।

इस कान से भक्ति गीत सुनता है जीवन संवार सकता है और अपशब्द किसी की निंदा सुनकर,उसको समाज के लोगो में फैलाकर समाज में घृणित हो सकता है।

स्वादेंद्रिय से खाने का स्वाद लेता है इसी प्रकार जुबान से अच्छी वाणी बोलकर लोगो में समाज में पूजनीय बन सकता है।कर्कश वाणी गाली गलौज के शब्द बोलकर झगड़ सकता है।जीभ अढ़ाई इंच जितनी होती है किन्तु इसके द्वारा बोले शब्दों से लम्बा चोडा व्यक्ति भी कट जाता है ऐसे लोग कभी भी समाज में इच्छनीय नही होते निंदनीय होते है सब जगह से धिक्कार ही मिलती है।

इसी प्रकार कुदरत ने स्पर्श का गुण भी दिया है जो वंश परम्परा बढ़ाता है किन्तु आधुनिक काल में भौतिकता में पड़ कर व्यभिचारी बन गया है जिससे उसका पतन हो रहा है।

इसी सन्दर्भ में एक संस्कृत श्र्लोक उद्धृत कर रहा हूँ:-

आपदां कथित:पन्था
इंद्रियाणां असंयम:।
तज्जयं: संपदां मार्गो
येनेष्टं तेन गम्यताम्।।

अर्थात जिस व्यक्ति ने इन्द्रिय को वश में नही किया हो वोह आपत्ति को आमन्त्रण या बुलावा देता है और जिसने इन्द्रिय पर जीत हासिल कर ली है वो पूजनीय वन्दनीय बन जाता है और सम्पति का हक़दार होता है।
पशु- पक्षी योनि में जिनको दिमाग नही होता वे एक- एक इन्द्रिय के कारण उपरोक्त लिखी विपति में पड़ते है।
मनुष्य योनि जिसके पास दिमाग है, सोचने की शक्ति है, पांच- पांच इन्द्रिय का मालिक बनाया है, उसने उसका उपयोग सर्जनात्मक कार्य के लिए नही किया और दुरुपयोग किया तो इस भव में पतित तो होगा ही किन्तु ८४ लाख योनि में भटकता रहेगा।

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
LIKE & COMMENT - https://jintirthdarshan.blogspot.com/
THANKS FOR VISITING.

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.