क्या हम परमात्मा से उतना ही प्रेम करते है जितना हम अपने आप से करते है ।
हम जब भी भक्ति करते है तब कई स्तवन और भक्ति गीत में कहते है की प्रभु तू मेरा है और मैं तेरा ।
देखे की क्या वाकई में हम प्रभु से प्रेम करते है ।
क्या हम प्रभु से प्रेम करते है ?
मेरे ख्याल से सब का जवाब होगा की हां जरूर करते है । इसमें पूछने वाली क्या बात है । उनसे प्रेम करते है तभी तो उनकी भक्ति करते है, आंगी करते है, उनकी पूजा करते है ।।
क्या प्रभु के प्रति हमारा प्रेम उतना ही सहज है जितना हम अपने परिवार वालों से करते है ।
क्या हम प्रभु से उतनी ही निखालसता से मिलते है जितने हम सांसारिक लोगों से मिलते है ।
हमे परमात्मा से ऐसे ही प्रेम करना चाहिए जैसा प्रेम और वात्सल्य हम उनसे अपने प्रति चाहते है ।
प्रेम चाहे किसी से भी करो पर प्रेम इतना सहज होना चाहिए जैसे हम साँस लेते है ।
जैसे हम साँस लेते वक़्त कभी नहीं सोचते की मैंने कितनी साँस अंदर ली या कितनी छोड़ी । बस एक सहज प्रक्रिया है जो होती जाती है । उसके लिए हमें कोई पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता । उसी तरह परमात्मा से प्रेम भी सहज है । उसके लिए भी पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता । बस हो जाता है ।
मिलने की प्यास और बिछड़ने का दुःख ।
जब हम मंदिर जाते है तब जो उत्कण्ठा हमारे दिल में परमात्मा की मूरत देखने की हो । या हम हम वापस आते है तो 2 आंसू हमारी आत्मा की आँखों से निकले वह प्रेम है ।
कभी कभी मंदिर में बैठकर या कही भी आराम से बैठ कर परमात्मा से 2 बातें करें । यह प्रेम है ।
कोई धार्मिक कार्य हो और आप बिना सोचे उनके लिए तैयार हो जाए । यह प्रभु प्रेम है ।
भक्ति करते आँख नम हो जाए । यह प्रेम है ।
मूरत को देखकर यह भाव आये की अभी उनके पास पहुँच जाऊ । प्रेम है ।
प्रभु के सामने सुध बुध खो जाए । प्रेम है ।
प्रेम हमारे मनोभाव के अतिरिक्त कुछ नहीं है । प्रेम करना हमें कोई नहीं सिखा सकता । चाहे जितने शास्त्र पढ़ लो या जितना चाहे ज्ञान अर्जित कर लो । प्रभु से प्रेम करना नहीं सिख सकते ।
यह सारा ज्ञान आपको यह जरूर बताएगा की प्रभु कैसे है या प्रभु किस राह पर चलकर परमात्मा बने । पर यह कही नहीं बताया जा सकता की परमात्मा से प्रेम कैसे हो सकता है ।
क्योंकि यह आपकी आत्मा करती है । और आत्मा दिमाग में ज्ञान अर्जन करती है पर प्रेम दिल से ही करती है । दिल जो भी काम करता है बस कर लेता है । दिल सहज है ।
और दिमाग हर कार्य सोच कर करता है । यानी की प्लानिंग करके ।
सहजता में आत्मा अपने परमात्मा से जुड़ती है और प्लानिंग में शरीर महत्वपूर्ण भाग निभाता है ।
बस इतना ही आज के लिए ।
फिर किसी रोज किसी और विषय को लेकर यह अबोध बालक आपके सामने जरूर आएगा ।।
अगर मेरें किसी भी विचार से किसी को भी दुःख हुआ हो या जिन आज्ञा विरुद्ध लिखा हो तो आप सबसे मिच्छामी दुक्कड़म ।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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