एक दाना चावल ! पहुंचा आबू के पर्वत पर !
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आज हमें सैकड़ों वर्ष पीछे की ओर "देखना" है.
(ये "पीछे" देखने की "शक्ति" भी मनुष्य जन्म में ही मिली है).
समझ लो कि एक मूवी ही देख रहे हैं.
(टिकट लेने की जरूरत नहीं, फ्री है).
आबू के पहाड़ पर आप और हम सब खड़े हैं
(हम भी हज़ारों की संख्या में हैं)
और ये नज़ारा देख रहे हैं :
मूवी स्टार्ट होते ही ये देख रहे हैं :
आबू के पहाड़ों पर हज़ारों शिल्पी काम कर रहे हैं.
संगमरमर को बड़ी चतुराई से छेनी द्वारा तराशा जा रहा है.
तराशने की ये मीठी आवाज पूरे गिरिराज में
मधुर संगीत की तरह गूँज रही है.
और युगादिदेव आदिनाथ का मंदिर निर्माण
अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है.
अपनी आँखों के कैमरे को "झूम" करके उस स्थान पर देखो
जहाँ तेजपाल की पत्नी "अनुपमा देवी" और
शिल्पी नायक "यशोधर" के बीच में ये बात हो रही है :
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मां,
कार्य पूर्ण होने जा रहा है.
आपके मन में कोई इच्छा हो तो
उसे भी मंदिर की दीवारों पर मूर्त रूप दे दूँ.
भाई,
ऐसा है तो एक चित्र बना दो
जिसमें एक स्त्री
अपने हाथ में पूजा का थाल पकडे हो
और उसमें "चावल का एक दाना" हो.
मां,
पर एक ही दाना क्यों?
पूरा थाल क्यों ना भरा हो?
भाई,
बचपन में कभी इच्छा थी
कि थाल भर कर भगवान की पूजा मैं भी करूँ
और
कभी मंदिर भी बनवाऊं.
तो?
पर घर की परिस्थिति ऐसी नहीं थी
कि कुछ चावल भी चढ़ा सकूँ.
बस "एक दाना चावल" ही चढ़ा सकी.
मन में ये भाव रहे कि
हे प्रभु !
ये एक दाना चावल ही मेरा सब कुछ है
और वो आपको अर्पण है.
ये चावल का एक दाना ही आप तक "पहुंचे,"
तो मैं धन्य हो जाऊंगी.
(बोलते बोलते उसकी आँखों में आंसूं आ गए).
और आज वो दिन भी आ गया कि
मंदिर बनने का कार्य पूरा होने आया है
मेरा एक दाना चावल प्रभु तक "पंहुचा" है,
इस बात की खूब ख़ुशी है.
सार :
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भक्ति में कुछ "माँगा" नहीं जाता,
"पहुँचाया" जाता है.
विशेष:
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"अनुपमा देवी" को श्री सीमंधर स्वामी के सान्निध्य में
"केवलज्ञान" हो चुका है.
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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