ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

• अनन्तानुबन्धी हिंसा से बचो –

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• अनन्तानुबन्धी हिंसा से बचो –

कई बार लोग पूंछते हैं कि यह सही है कि हम कुछ कर्म हर समय में बाँध रहे हैं और फिर कुछ कर्मो को हर समय नष्ट भी तो कर रहे हैं; लेकिन शास्त्रों में लिखा हुआ यह कैसे संभव हैं कि हम प्रति समय अनंत कर्मो को बांध रहे हैं?
इस सम्बन्ध में गहराई से विचार करने पर मैं पाता हूँ कि –
1. जब हम हरी-हरी घांस पर एक पाँव भी रखते हैं, तब घांस की जड़ों के आश्रय से रहने वाले संख्यात जीव दब कर, कुचल कर मर जाते हैं. साथ ही मिटटी में रहने वाले अनंत निगोदिया और एक इन्द्रिय जीव भी मरण को प्राप्त होते हैं. इस तरह हमें भी अनन्तानुबन्धी के अनन्त कर्मों का बंध होता है. हम हँसते-हँसते इन्हें बांधते हैं और रोते-रोते इन्हें काटना पड़ता है.
2. जब हम अपने घर में जितना जरूरी हो, उससे ज्यादा पानी का उपयोग अगर करते हैं या उसे बहाते हैं, तब भी पानी के आश्रय से रहने वाले संख्यात जीव बह कर मर जाते हैं. साथ ही पानी में रहने वाले अनंत निगोदिया और एक इन्द्रिय जीव भी मरण को प्राप्त होते हैं. इस तरह भी हमें अनन्तानुबन्धी के अनन्त कर्मों का बंध होता है.
3. हमारे घर में जब हम बगीचा लगाते हैं या सिर्फ कुछ पौधे लगाते हैं, तब हमें बार-बार उसमें पानी डालना पड़ता है और मिट्टी को बार-बार ऊपर-नीचे करना पड़ता है. साथ ही भारी मात्रा में खाद और पानी का भी उपयोग करन पड़ता है, तब भी उनके आश्रय से रहने वाले संख्यात त्रस जीव मर जाते हैं और खाद, पानी और मिट्टी के आश्रय से रहने वाले अनंत निगोदिया तथा एक इन्द्रिय जीव भी मरण को प्राप्त होते हैं. इस तरह भी हमें अनन्तानुबन्धी के अनन्त कर्मों का बंध होता है.
4. शास्त्रों में आता है कि चारण ऋद्धि धारी मुनिराज शेर के भव में भगवान् महावीर के जीव को समझाने आकाश मार्ग से गए थे. चारण ऋद्धि होने से वे भूमि से ऊपर ही चलते हैं, ताकि उनके निमित्त से पैदल चलने से होने वाली हिंसा न हो. हमारे द्वारा उपयोग किये जाने वाले दो या चार पहिया, रेल और हवाई मार्गो से पैदल चलने से भी कई-कई गुना बहुत-बहुत ज्यादा हिंसा होती है. अतः हमें जितना जरूरी हो, उससे ज्यादा आवागमन अगर हम करते हैं, तो भी हमारे ऐसा करने से हवा के आश्रय से रहने वाले अनंत निगोदिया तथा एक इन्द्रिय जीव भी मरण को प्राप्त होते हैं. इस तरह भी हमें अनन्तानुबन्धी के अनन्त कर्मों का बंध होता है.
5. जब कोई व्यक्ति कुल्ला कर रहा होता है और उसके छींटे अगर मेरे ऊपर पड़ जाते हैं, तो मुझे बहुत बुरा लगता है. लेकिन जब मैं खुद वाश-बेसिन में कुल्ला करता हूँ, तब उसके पाइप और नाली के आश्रय से रहने वाले संख्यात त्रस जीवों पर मैं थूकता हूँ, तो वे वहीं पर तड़फते रहते हैं, बिलबिलाते रहते हैं एवं कुछ मर भी जाते हैं और साथ ही उन के आश्रय से रहने वाले अनंत निगोदिया तथा एक इन्द्रिय जीव भी मरण को प्राप्त होते हैं. इस तरह भी हमें इस मनुष्य भव को धारण करते हुए अनन्तानुबन्धी के अनन्त कर्मों का बंध होता है.
6. अगर कोई व्यक्ति मुझे मारे, तो मुझे बहुत गुस्सा आता है; लेकिन अगर कोई व्यक्ति मेरे पूरे शरीर पर, सर पर कूदे, लात रखकर कुचल दे, तो आप समझ ही सकते हैं कि मेरा क्या हाल होगा. लेकिन जब हम जमीन पर बिना देखे चलते हैं, बगीचों में दौड़ लगाते हैं, तो हम मिट्टी और घांस के आश्रय से रहने वाले त्रस जीवों के शरीर पर, सर पर कूदते हैं, लात रखकर कुचल देते हैं. इस तरह आप समझ ही सकते हैं कि उनका क्या हाल होता होगा? वे कुचल कर मर जाते हैं और जो बच जाते हैं, वे अंग-भंग अवस्था में घायल हो घंटों तड़फते रहकर मर जाते हैं. इस तरह भी हमें इस मनुष्य भव को धारण करते हुए अनन्तानुबन्धी के अनन्त कर्मों से ऐसी अनंत गतियों का बंध होता है, जिसमे फिर हम भी कुचल कर अंग-भंग अवस्था में घायल हो घंटों तड़फते रहकर दुःख पायेंगे. पूर्व में इन जीवों ने भी ऐसा ही किया होगा.
7. हमें जरूरत के अनुसार ही थोडा सा पानी छान कर गर्म करके फिर गर्म पानी को कम से कम डालकर ही शरीर शुद्धि करना चाहिये; क्योकि वे जीव जो मेरी सांसों की गर्मी से भी मुरझा जाते हैं, फिर उनका इस पानी की गर्मी से क्या हाल होता होगा, यह हम समझ ही सकते हैं. लेकिन कुछ लोग वाटर हीटर में अनछना पानी गर्म करते हैं और उसे ठन्डे पानी में मिलकर शावर का मज़ा लेते हैं, तो उस पानी में रहने वाले त्रस और पानी के आश्रय से रहने वाले अनंत निगोदिया तथा एक इन्द्रिय जीवों का क्या हाल होता होगा? वे जल कर मर जाते हैं और जो बचे रह जाते हैं, वे जली हुई अवस्था में घायल हो घंटों तड़फते रहकर मर जाते हैं. इस तरह भी हमें भी अनन्तानुबन्धी के साथ इस मनुष्य भव को धारण करते हुए अनन्त कर्मों को बांधते हुए ऐसी अनंत गतियों का बंध होता है, जिसमें फिर हम भी जल कर मरेंगे या जली अवस्था में घायल हो घंटों तड़फते रहकर दुःख पायेंगे. पूर्व में इन जीवों ने भी ऐसा ही किया होगा.
8. हर घर में आजकल आम तौर पर बर्तन साफ़ करने के लिये मेड सर्वेंट रखते हैं; जो रात्रि के बचे हुए बर्तनों को सुबह साफ़ करती है. मेरा मानना है कि अगर रात भर जूठन और पानी पड़ा रहा, तो संख्यात त्रस और अनंत एक इन्द्रिय तथा निगोदिया जीव पैदा हो जायेंगे, जो बर्तन के धुलने पर मरण को प्राप्त होंगे. यह भी देखा गया है कि कुछ घरों में जूठन के बर्तनों में चीटियाँ भी आ जाती हैं, जो बर्तनों के धुलने के साथ ही घंटों तड़फते रहकर मर जाती हैं, क्योकि कामवाली को तो इन्हें बचाने का ख्याल भी नहीं आता है. इस तरह भी हमें भी अनन्तानुबन्धी के साथ इस मनुष्य भव को धारण करते हुए अनन्त कर्मों को बांधते हुए ऐसी अनंत गतियों का बंध होता है, जिसमें फिर हम भी घंटों तड़फते रहकर दुःख पायेंगे. पूर्व में इन जीवों ने भी ऐसा ही किया होगा.
9. हमारे कुछ बंधु बाजार से पिसा पिसाया सामान और मसाले लाते हैं, और उन्हें बिना शोधन के काम में ले लेते हैं. कई बार तो पिसी वस्तु में फंगस भी लग जाती है. अतः हमारी लापरवाही से भी संख्यात त्रस और अनंत एक इन्द्रिय तथा निगोदिया जीवों की हिंसा होती है. इस तरह हमें भी इस मनुष्य भव को धारण करने के कारण अनन्तानुबन्धी के अनन्त कर्मों को बांधते हुए ऐसी ही अनंत गतियों का बंध होता है, जिनमें फिर हम भी ऐसे ही अनंत दुःख पायेंगे; क्योकि पूर्व में इन जीवों ने भी ऐसा ही किया था.
10. “मेरी आलोचना” में हम सभी ने पढ़ा है कि नदियन बिच चीर धुलायो, कोसन के जीव मरायो. जब हम एक चीर या वस्त्र भी नदी या घर में धोते हैं, तब कई किलोमीटर तक के जीव मर जाते हैं. अतः हमे जितना सफाई के लिये जरुरी हो, उतना ही साबुन, डेटोल आदि का प्रयोग कर ध्यान रखना चाहिये ताकि हमारी लापरवाही से भी संख्यात त्रस और अनंत एक इन्द्रिय तथा निगोदिया जीवों की हिंसा न हो. इस तरह भी हमें इस मनुष्य भव को धारण करने के कारण अनन्तानुबन्धी के अनन्त कर्मों को बांधते हुए ऐसी ही अनंत गतियों का बंध होता है, जिनमें फिर हम भी ऐसे ही अनंत दुःख पायेंगे; क्योकि पूर्व में इन जीवों ने भी ऐसा ही किया था.
11. अगर हम अपनी जरुरत से ज्यादा बड़े घर में रहते हैं, तो उसको बनवाने और उसकी साफ़-सफाई में बहुत-बहुत संख्यात त्रस और अनंत एक इन्द्रिय तथा निगोदिया जीवों की हिंसा होती रहती है. जो नौकर-चाकर की हम फौज लगाते हैं और वे जो भी हिंसा कर रहे होते हैं, उसका भी दोष हमे ही लगता है. इस तरह भी हमें इस मनुष्य भव को धारण करने के कारण अनन्तानुबन्धी के अनन्त कर्मों को बांधते हुए ऐसी ही अनंत गतियों का बंध होता है, जिनमें फिर हम भी ऐसे ही अनंत दुःख पायेंगे; क्योकि पूर्व में इन जीवों ने भी ऐसा ही किया था.
इस तरह हम हर समय, हर पल इस शरीर को धारण करते हुए बहुत-बहुत संख्यात त्रस और अनंत एक इन्द्रिय तथा निगोदिया जीवों की हिंसा करते रहते हैं.
क्या हमें अब भी इस शरीर को धारण करने पर अभिमान और घमंड करना चाहिये?

BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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