जैन रामायण के अनुसार रावण का पात्र बहुत बुद्धिशाली विद्याधारी इन्सान थे । रावण कोई राक्षस नही था अपितु उनका वंश राक्षस वंश था। और तो और चारित्रवान थे । उनका यह प्रण था की पराई स्त्री को उसकी ईच्छा के विरुद्ध हाथ नही लगाऊंगा । जो उन्होंने सीता देवी को स्पर्श नही किया ।
जैन रामायण २० वे तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी के समकालीन थी । रावण जैन श्रावक था । वो अष्टापद पर भगवान की भक्ति करने जाता था । एक बार भक्ति करते करते उनकी पत्नी मंदोदरी भक्ति भाव से संगीत पर नृत्य कर रही थी तब वाद्य का तार टूट गया तब भक्ति में विक्षेप न पड़े इसलिए अपने पांव की नस काटकर तार की जगह जोड़ कर प्रभु भक्ति जारी रखी, जिस कारण तीर्थंकर नाम कर्म गोत्र बांधा और १४ वे भव में मुक्त होकर तीर्थंकर बनेगे । ऐरावत क्षेत्र में तीर्थंकर बनेगे वर्तमान में नर्क वास भोग रहे है । ऐसे रावण को बुरा बताकर हम जैन उनका पुतला कैसे जला सकते है ।
यदि विजया दशमी के दिन कुछ जलाना है तो, हमारे शरीर, मन के अंदर रहे अहंकार, क्रोध, आडम्बर, हमारे अंदर रहे बुरे विचारो को, बदले की भावना को, किसी को निचा दिखाने की प्रवृति, किसी की निंदा करने की, अपने से निर्बल के तांडन करने की वृति, बड़े बुजुर्गो के तिरस्कार करने की वृति को जलाना होगा तो हमारा मन शरीर निर्मल होगा और आत्मा की मुक्ति होगी ।।।
BEST REGARDS:- ASHOK SHAH & EKTA SHAH
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