ॐ ह्रीँ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नम: દર્શન પોતે કરવા પણ બીજા મિત્રો ને કરાવવા આ ને મારું સદભાગ્ય સમજુ છું.........જય જીનેન્દ્ર.......

*🌹आज का मीठा मोती🌹*

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*🌹आज का मीठा मोती🌹*

*"कदर" होती हैं "इंसान" की "जरूरत" पड़ने पर ही,*
*बिना ज़रूरत के तो "हीरे" भी "तिज़ोरी" में रहते हैं...*

*रिश्तों को "जेबो" में नहीं,,*
*हुज़ूर "दिलों" में रखिए...*

*क्योंकि "वक़्त" से "शातिर",,*
*कोई "जेबकतरा" नहीं होता.!!!*

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मोहनखेड़ा महातीर्थ

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फागण की फेरी क्यो ?

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फागण की फेरी क्यो ?
कितने सालों से चली आ रही है ?
छ गाउं की यात्रा में कौन से स्थल आते है ।
यानी मंदिर .
भगवान नेमिनाथ के
समय मे हुए .
कृष्ण महाराजा के
पुत्रों में शाम्ब और प्रध्युमन
नाम के दो पुत्र थे .
भगवान नेमीनाथ की पावन वाणी सुनकर .
शाम्ब -प्रध्युमन जी को वैराग्य हुआ .
भगवान के पास
दीक्षा लेकर भगवान की आज्ञा लेकर
शत्रुंजय गिरिराज उपर
तपस्या और ध्यान करने लगे .
अपने सभी कर्मो से
मुक्त होकर .....
फागण सुदी तेरस के दिन
शत्रुंजय गिरिराज पर स्थित
भाडवा के डुंगर उपर से
मोक्ष - मुक्ति पाये थे.
उन्हीं के दर्शन करने के लिए .
लगभग
84 हजार वर्षों से
यह फागण के फेरी चल रही है .
फागण के फेरी में आते हुए
दर्शन के स्थल.
दादा के दरबार मे से
निकलने के बाद
रामपोल दरवाजे से
छ गाउ की यात्रा प्रारंभ होती है .
उसमें 5 दर्शन के स्थल है
1 - 6 गाउ की यात्रा प्रारंभ होती ही 100 पगथिया के बाद ही
देवकी माता के 6 पुत्र का
समाधि मंदिर आता है
वो इसी स्थान से मोक्ष गयें थे .
[कृष्ण महाराज के 6 भाई का मंदिर]
2- उलखा जल नाम का स्थल आता है .
(जहां दादा का पक्षाल आता है ऐसा कहते हे वो स्थल )
यहां पर आदिनाथ भगवान के पगले है
3- चंदन तलावडी आती है
यहां पर
अजितनाथ और शांति नाथ के
पगले है .
चैत्यवंदन मे अजितशांति बोलते है
और
चंदनतलावडी पर नो लोग्गस का काउस्सग करते है .
अगर लोग्गस नहीं आता हो तो 36 नवकार मंत्र का जाप करने का .
4- भाडवा का डुंगर
पर शाम्ब प्रध्युमन की देरी
यानी मंदिर आता है.
इसी के ही दर्शन का महत्व है .
आज के दिन .
यहाँ मंदिर मे पगले है .यहां चैत्यवंदन करने का होता है .
5- सिद्ध वड का मंदिर यह मंदिर
(पालके अंदर ही है) यहां पर आदिनाथ भगवान का मंदिर है.
यह पांचों स्थल पर चैत्यवंदन करने होता है .
और
जयतलेटी - शांतिनाथ -
रायण पगला- आदिनाथ दादा - पुंडरीक स्वामी यह भी पांच स्थल पर चैत्यवंदन करने का होता ही है
यात्रा करो तो
विधि विधान के साथ.
हम फागुनी तेरस करने जाते हे
लेकिन हमें इस इतिहास की जानकारी नही है कि फागुनी तेरस क्यों की जाती है।
आप भी जाने और अपने साथियों को भी बताए
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🙏मुण्डस्थल तीर्थ ( मुंगथला ) मूलनायक श्री महावीर स्वामी 🙏

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🙏मुण्डस्थल तीर्थ ( मुंगथला )
मूलनायक श्री महावीर स्वामी 🙏

🙏 यह तीर्थ भगवान महावीर स्वामी के समय का माना जाता है। भगवान महावीर ने जब अपनी छद्मअवस्था में इस अर्बुदा गिरी भूमि में विचरण किया तब मुण्ड स्थल में नंदी वृक्ष के नीचे ध्यान में थे। तब प्रतिमाजी को निर्मित करवाई गई थी।

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नित्य जो प्रभु गुण गाता है वह शीघ्र मोक्ष फल पाता है

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🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸

🕉 नित्य जो प्रभु गुण गाता है
वह शीघ्र मोक्ष फल पाता है

🙏 🙏 🙏

*है अचिन्त्य महिमामयी, णमोकार यह मंत्र ।*
*इसको जपते ही मिलें, भौतिक सौख्य असंख्य ।।*

यह पंचनमस्कार मंत्र ही कल्याणकारी धर्म है, यह मंत्र ही जिनेन्द्र भगवानरूप है, यह मंत्र ही समस्त शुभ फलदायक व्रतरूप है । दूसरी बहुत सी बातें करने से क्या लाभ है । संक्षेप में यों समझ लीजिए कि संसार में यह णमोकार मंत्र ऐसा महत्वशाली है, जिसके प्रभाव से ऐसी कोई चीज नहीं, जो शुभरूप न हो सके ।


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Namo jinanam

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🙏प्रभु आदिनाथ भगवान🙏

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🔴दर्शनं मोक्ष साधनं🔴
आदि जिनवर राया , जास सोवन काया।
मरुदेवी माया, धोरी लांछन पाया।।
जगत स्थिति निपाया, शुद्ध चरित्र पाया।
केवल सिरी राया, मोक्ष नगरी सिधाया।।
🙏प्रभु आदिनाथ भगवान🙏


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यदि कोई व्यक्ति आपका बताया हुआ काम करता है तो वो आपका पुण्य हैं

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१.यदि कोई व्यक्ति आपका बताया हुआ काम करता है तो वो आपका पुण्य हैं
कृपया अपने पुण्य को खर्च मत कीजिए
अपना काम खुद अपने आप करने का लाभ लीजिए
और पुण्य की राशी को जमा कीजिए
२.पूज्य गुरुदेव या माता पिता यदि आपको कोई भी काम कहे तो वो दूसरे को मत कहिए खुद कीजिए और पुण्य का उपार्जन करने का लाभ लीजिए
३.पुण्य खर्च करना बहुत आसान हैं लेकिन उपार्जन करना कठिन हैं

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श्री पद्मप्रभु स्वामी

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जाप-ॐ र्हीं श्री पद्मप्रभु स्वामी परमेष्टिने नमः
🌷🙏🙏🙏🙏🙏🌷

जे चौद महा स्वप्नो थकी, निज मातने हरखावता,
वळी गर्भमांही ज्ञानत्रयने, गोपवी अवधारता,
ने जन्मतां पहेला ज चोसठ, इन्द्र जेने वंदता,
एवा प्रभु अरिहंत ने, पंचांग भावे हुं नमुं ।

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चौमुख रत्नमय आदिनाथ भगवान की प्रतिमा शत्रुंजय गिरिराज पर पहेले हडे कीर्तिस्तंभ जिनालय में है।

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जय जीनेंद्र
स्फटिक रत्न के आदिनाथ भगवान
गुलाबी स्फटिक के आदिनाथ भगवान
मरगज रत्न के आदिनाथ भगवान
मयुरपंख रत्न के आदिनाथ भगवान
चौमुख रत्नमय आदिनाथ भगवान की प्रतिमा शत्रुंजय गिरिराज पर पहेले हडे कीर्तिस्तंभ जिनालय में है।

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अरिहंत के दर्शन करने मात्र से दुर्गति का नाश होता है!*

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जय जीनेंद्र
*अरिहंत के दर्शन करने मात्र से दुर्गति का नाश होता है!*

*अरिहंत के दर्शन का परिणाम दर्शन विशुद्धि है. दर्शन विशुद्धि का परिणाम समकित है. समकित का परिणाम मोक्ष है.*

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ના ફરવા માટે કાર જોઈએ છે

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ના ફરવા માટે કાર જોઈએ છે,
ના ગળા માટે હાર જોઈએ છે,
મહાવીર ભગવાને એક મહત્વની વાત કરી છે કે
જીવન વિકાસ માટે પવિત્ર વિચાર જોઈએ છે.
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जय जीनेंद्र ।।। रावण ।।।



जैन रामायण के अनुसार रावण का पात्र बहुत बुद्धिशाली विद्याधारी इन्सान थे । रावण कोई राक्षस नही था अपितु उनका वंश राक्षस वंश था। और तो और चारित्रवान थे । उनका यह प्रण था की पराई स्त्री को उसकी ईच्छा के विरुद्ध हाथ नही लगाऊंगा । जो उन्होंने सीता देवी को स्पर्श नही किया ।

जैन रामायण २० वे तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी के समकालीन थी । रावण जैन श्रावक था । वो अष्टापद पर भगवान की भक्ति करने जाता था । एक बार भक्ति करते करते उनकी पत्नी मंदोदरी भक्ति भाव से संगीत पर नृत्य कर रही थी तब वाद्य का तार टूट गया तब भक्ति में विक्षेप न पड़े इसलिए अपने पांव की नस काटकर तार की जगह जोड़ कर प्रभु भक्ति जारी रखी, जिस कारण तीर्थंकर नाम कर्म गोत्र बांधा और १४ वे भव में मुक्त होकर तीर्थंकर बनेगे । ऐरावत क्षेत्र में तीर्थंकर बनेगे वर्तमान में नर्क वास भोग रहे है । ऐसे रावण को बुरा बताकर हम जैन उनका पुतला कैसे जला सकते है ।

यदि विजया दशमी के दिन कुछ जलाना है तो, हमारे शरीर, मन के अंदर रहे अहंकार, क्रोध, आडम्बर, हमारे अंदर रहे बुरे विचारो को, बदले की भावना को, किसी को निचा दिखाने की प्रवृति, किसी की निंदा करने की, अपने से निर्बल के तांडन करने की वृति, बड़े बुजुर्गो के तिरस्कार करने की वृति को जलाना होगा तो हमारा मन शरीर निर्मल होगा और आत्मा की मुक्ति होगी ।।।

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जय जीनेंद्र

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🙏श्री वासुपूज्य स्वामी भगवान
श्री सुमेरु नवकार तीर्थ - वडोदरा करजण 🙏
🌹प्रभु की प्रतिमा अति प्राचीन है 💐

🙏प्रातः कालीन वंदना
ऊँ ह्रींम अर्हम् श्री असिआऊसा नमः 🙏

🙏 अरिहंते, सिद्धे, साहु, शरणं पव्वजामि
केवली पन्नतो धम्मं शरणं पवज्जामि 🙏

🙏सुबह की नवकारसी का पालन और ..
रात्रि भोजन त्याग हर जैनी को करना चाहिये 🙏

🙏लोक में विराजित
समस्त अरिहंत परमेष्ठीयों को वंदन 🙏

🙏लोक के अग्र भाग में सिध्द शिला पर विराजित
समस्त सिध्द परमेष्ठीयों को वंदन 🙏

🙏ढाई द्वीप में विराजित समस्त
आचार्य उपाध्याय साधु परमेष्ठीयों को नमन 🙏

🙏सभी संयमी जीवो का रत्नत्रय सदाकाल उत्तम रहे
सभी का दिन मंगलमय हो 🙏
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ભગવાન નથી મંદિર માં છુપાયેલો

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ભગવાન નથી મંદિર માં છુપાયેલો કે નથી મસ્જિદ માં છુપાયેલો પણ જેના દિલ માં માણસાઈ છે એના દિલ માં ભગવાન છે..* ☝🏿

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Namo jinanam

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🙏श्री सीमंधर स्वामी भगवान कतारगांव, सुरत 🙏

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जय जिनेन्द्र
🙏श्री सीमंधर स्वामी भगवान
कतारगांव, सुरत 🙏

🙏प्रातः कालीन वंदना
ऊँ ह्रींम अर्हम् श्री असिआऊसा नमः 🙏

🙏 अरिहंते, सिद्धे, साहु, शरणं पव्वजामि
केवली पन्नतो धम्मं शरणं पवज्जामि 🙏

🙏सुबह की नवकारसी का पालन और ..
रात्रि भोजन त्याग हर जैनी को करना चाहिये 🙏

🙏लोक में विराजित
समस्त अरिहंत परमेष्ठीयों को वंदन 🙏

🙏लोक के अग्र भाग में सिध्द शिला पर विराजित
समस्त सिध्द परमेष्ठीयों को वंदन 🙏

🙏ढाई द्वीप में विराजित समस्त
आचार्य उपाध्याय साधु परमेष्ठीयों को नमन 🙏

🙏सभी संयमी जीवो का रत्नत्रय सदाकाल उत्तम रहे
सभी का दिन मंगलमय हो 🙏


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तीर्थंकर परमात्मा के 34 अतिशय।

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तीर्थंकर परमात्मा के 34 अतिशय।

जन्म से भगवंत को 4 अतिशय होते है।

1) भगवंत का देह व्याधि, प्रस्वेद और मेल रहित होता है।
2) भगवंत का श्वासोश्वास कमल की तरह कोमल होता है।
3) भगवंत के शरीर के खून और मांस श्वेत होते है।
4) भगवंत का आहार और निहार अवधिज्ञानी के अलावा कोई देख नही सकता।

देवता कृत 19 अतिशय होते है।

1) भगवंत जहा जहा चलते है साथ मैं धर्म चक्र चलता है।
2) आकाश में दोनों तरफ श्वेत चामर चलता है।
3) आकाश में मणि का सफ्टिकमय सिहांसन चलता है।
4)भगवंत के मस्तक पे आकाश में 3 छत्र चलते है।
5)भगवंत के आगे आकाश में इंद्र रत्न का ध्वज ले के चलते है।
6) प्रभु के कदम सुवर्ण के कमल पे पड़ते है।
7) प्रभु को देशना देने के लिए देवता समवसरण की रचना करते है।
8) प्रभु जब देशना देते है तब पूर्व दिशा में मुख होता है लेकिन बाकि की 3 दिशा में प्रभु की कृपा से देव प्रभु जैसा अद्दल प्रतिबिम्ब बनाते है।
9)देवता प्रभु के समवसरण मैं अशोक वृक्ष की रचना करते है।
10) भगवंत जहा चलते है वहा कंटक उलटे हो जाते है।
11) पवन अनुकूल और शीतल हो जाता है।
12) रास्ते के वृक्ष प्रभु को नमन करते है।
13) समवसरण के ऊपर पंखी प्रभु की प्रदिक्षणा करते है।
14) मेघकुमार देव सुगंधित जल की वृष्टि करते है।
15) समवसरण की 1 योजन भूमि मैं 6 ऋतु के खिले हुए पुष्प की जानु प्रमाण वृष्टि होती है।
16) प्रभु के दाढ़ी मुछ बाल और नाख़ून बढ़ते नहीं है।
17) कम से कम 1 करोड़ देव कभी भी प्रभु की सेवा मैं होते है।
18) भगवंत जहा जाते है वहाँ सब ऋतु अनुकूल हो जाती है।
19) देवता देव दुदुम्भी का नाद करते है।

केवलज्ञान के बाद भगवंत को 11 अतिशय होते है।

1) भगवंत का समवसरण 1 योजन का होता है फिर भी करोडो लोग का समावेश हो सकता है।
2) भगवंत की देशना सभी जिव अपनी भाषा में समजते है।
3) प्रभु के मस्तक के पीछे हज़ारो सूर्य से भी तेजस्वी भामंडल होता है।
4) प्रभु जहा विचरते है वहा के 125 योजन विस्तार में कोई रोग नहीं होता।
5) 125 योजन विस्तार में वेर भाव का नाश होता है।
6) 125 योजन विस्तार में अतिवृष्टि नही होती।
7) 125 योजन विस्तार में अनावृष्टि नहीं होती।
8) 125 योजन विस्तार में भय का नाश होता है।
9) 125 योजन विस्तार में अकाल मृत्यु नहीं होती।
10) 125 योजन विस्तार में दुकाल नहीं होता।
11) 125 योजन विस्तार में चूहे या तीड़ जैसे जीव उत्प्पन नही होते।

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lanchan n temple of Kilpauk sanskar vatika vargoda on Munisurvat Swamy🙏

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जैन धर्म में जो "पांच परमेष्ठी" हैं

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जय जिनेन्द्र
💫जैन धर्म में जो "पांच परमेष्ठी" हैं,
उनमें से किसी "एक" को ही "परम आराध्य" बनाना हो,
तो "अरिहंत" ही उनमें सबसे प्रथम हैं

अन्य सभी की "उपस्थिति" भी उन्हीं के "कारण" हैं.
इसीलिए सिद्ध-चक्र के यन्त्र में
"केंद्र" में "अरिहंत" होते हैं.

यदि उन्होंने "धर्म" की "स्थापना नहीं की होती,
तो अभी "धर्म" का स्वरुप कैसा होता,
सोच कर ही सर चक्कर खाने लगता है.

दीक्षा लेने के कारण "अरिहंत "साधू" भी हैं
"श्रुत-ज्ञान" की अविरत धारा बहाने के कारण "उपाध्याय" भी हैं
"संघ संचालन" के कारण "आचार्य" भी हैं
"निर्वाण" के बाद मोक्ष हो जाने के कारण "सिद्ध" भी हैं.

ऐसे "अरिहंत" के गुणों को भला "कहने" में कौन समर्थ है?

इसलिए जो सम्प्रदाय ये मान बैठे हैं कि उनके गुरुओं ने
धर्म संघ की "स्थापना" की है, वो बहुत बड़े भरम में हैं.
और ये भरम अपने अनुयायियों में फैला रहे हैं.

जैन धर्म "अरिहंत" से "पहचाना" जाता है.

असली "पिक्चर" तो अरिहंत के "जीवन चरित्र" हैं.
"दिगंबर और श्वेताम्बर" तो उसके मात्र "ट्रेलर" हैं.

सावधान:
********
जो प्रथम आराध्य "अरिहंत" को ना मानकर
"गुरु" को मान बैठे हैं,
उनका नवकार का प्रथम पद
"नमो अरिहंताणं" गुनना व्यर्थ है.

ये बात इसलिए कहनी पड़ रही है
कि "व्यवहार" में तो वो "अर्हम~" का उच्चारण करते हैं
परन्तु "अंतर" में उनके "गुरु" बसे हुवे हैं.

यदि "अर्हम~" का "वास्तविक स्वरुप" जान लिया होता
तो "गुरु महिमा" अरिहंत से ज्यादा "गहरी" नहीं हो पाती.

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